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६० : हिन्दी-निरुक्त
 

नाने में काम आता है-लोटा से 'लुटिया' आदि । पुं-विभक्ति 'आ' (घ) में और इस स्त्री-प्रत्यय 'इया' में बहुत अन्तर है। फिर भी, खड़ी बोली के क्षेत्र ने इस 'इया' को वैसा नहीं अपनाया; क्योंकि यहाँ खड़ी पाई (1) का पुल्लिग में अत्यधिक प्रयोग है । कहीं किसी को भ्रम न हो जाय ! इसीलिए 'इया'-प्रत्ययान्त शब्द यहाँ कम चलते हैं; ब्रज तथा अवध में अधिक; जहाँ पुं-विभक्ति 'आ' का साम्राज्य नहीं है। ___'आँख' से 'अँखिया' यहाँ भो चलता है, जो अल्पार्थक 'इया' से नहीं; कोमलता-व्यंजक 'इया से है। आँखें दो हैं; अत. 'अँखियाँ बहुवचन ही प्रयुक्त होता है। स्त्री-लिङ्ग शब्द से जव 'इया' होता है; तो प्रायः कोमलता के लिए; या 'स्वार्थे' । 'बहू' और 'बहुरिया' एक एक हो बात है। वही 'इया' प्रत्यय है--'बहू' से । 'र' का आगम और 'ऊ' को ह्रस्व । 'र' का आगम सन्देह मिटाने के लिए। अन्यथा 'बहू' से 'वहिया' बन जाने का डर था। 'बहिया दुर्दाम नदी-पूर; जिसे अंग्रेजी में 'फ्लड' कहते हैं। व्युत्पत्ति तो उसकी भी हो जाती, जो सब को बहा ले जाय-को जग जाहि न ब्यापी माया ?' परन्तु शब्द-भ्रम तो होता ही । इसीलिए 'का आगम करके 'बहुरिया' है । उकारान्त या अकारान्त शब्दों से 'इया' प्रत्यय बहुत कम देखने में आता है। इकारान्त या ईकारान्त स्त्री-लिङ्ग संज्ञाओं से वराबर 'इया' होता है, स्वार्थे या मृदुता में-मुंदरी-मुदरिया आदि । परन्तु तकिया' में यह 'इया' प्रत्यय नहीं है ! वह 'इया' एक तरह का तद्धित प्रत्यय है, जो संज्ञा-शब्द से होता है। पर, 'तकिया' वना-बनाया ऐसा ही शब्द है। 'तक कोई संज्ञा नहीं, जिससे यह बना हो। इसीलिए स्त्री-लिङ्ग नहीं है । 'घटिया', 'बढ़िया' आदि विशेषण पुल्लिङ्ग-स्त्रीलिंग में समान रूप से चलते हैं-बढ़िया घड़ी, बढ़िया कपड़ा और घटिया धोती, घटिया भोजन : ‘इया' प्रत्यय यहाँ वह नहीं है, जो (स्त्रीलिङ्ग) ऊपर कहा गया है। वह 'इया' संज्ञाओं से ही होता है, धातुओं से नहीं; संज्ञा बनाता है, विशेषण नहीं। 'घटिया' और 'बढ़िया में कृदन्त 'इया' प्रत्यय है--किसी से घटकर घटिया' और बढ़कर 'बढ़िया'। कदन्त प्रत्यय धातुओं से होता है। घटना-बढ़ना क्रियाएँ हैं । 'गढ़िया' और 'जड़िया' भी ऐसे ही (कृदन्त) शब्द हैं-'और कवि गढ़िया, नन्ददास जड़िया ---गड़ने का काम करे, सो गढ़िया-साधारण सुनार; और, जो वढ़िया जड़ाऊ काम करे, जड़ने की कारीगरी करे, वह 'जडिया'।