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हिन्दी-निरुक्त : ६१
 

'गढ़ना-जड़ना' क्रियाएँ हैं। सो, ये कृदन्त शब्द पुल्लिङ्ग-स्त्रीलिङ्ग में समान है। उस 'झ्या स्त्री-प्रत्यय का यहाँ कोई लगाव नहीं । भ्रम की गुंजाइश नहीं। हां, 'पुरबिया, 'जयपुरिया आदि में 'इया' अवश्य तद्धित प्रत्यय है, जो एक संज्ञा से दूसरी संज्ञा या विशेषण बनाता है। परन्तु उस स्त्री-प्रत्यय ' इसे 'इया बिलकुल भिन्न है और इसीलिए उभयथा प्रयोग में आना है 'पुरविया स्त्री', 'परविश आदमी'। इस 'इया का विकास भिन्न मूल से है। संस्कृत के 'पूर्वीय.', 'जयपुरीयः आदि से 'ई' निकाल कर हिन्दी ने एक प्रत्यय बना लिया: आग के 'य' का लोर करके - 'पूरवो', जयपुरी', 'कानपुरी आदि । यह ई तद्धितप्रत्यय है। संस्कृत ईय' का संक्षिप्त संस्करण । परन्तु हिन्दी के दूसरे क्षेत्र ने "ईय.' का 'इया के रूप में विकास किया--पूर्वीयः-पुरविया, जय- पुरोय -जयपुरिया। संस्कृत स्त्रीलिङ्ग पूर्वीया, 'जयपुरीवा' का 'ईया' हो हिन्दी में 'इझा होकर आया है। सो, कनपुरिया औरत ठीक है। विशेष्यों के कारण सन्देह या 'भ्रम की गुंजाइश नहीं। आप का इतना समय प्रत्ययों के झमेले में चला गया। परन्तु प्रासंगिक चर्चा थी। भापा के विकास में प्रत्ययों का विकास भी एक महत्त्वपूर्ण चीज है, जिसकी और अभी तक ध्यान ही नहीं दिया गया है। जब हमने 'ब्रजभाषा-ब्याकरण' में पहले महल यह मत प्रकट किया कि हिन्दी की 'न' विभक्ति का विकास सस्कृत 'बालकेन आदि म स्थित 'एन' अंश को लेकर और वर्ण-व्यत्यय से सिद्ध है तो उसकी आलोचना अंग्रेजो-पत्र 'लीडर' में श्री 'डी० वर्मा ने छपायी और हमारी उद्भावना को एक दकियानूसी विचार बतलाया; यद्यपि उस तरह खिल्ली उड़ाने का कोई आधार उनके पास न था। हमारे मत को उड़ाने में कोई युक्नि उन्होंने न दी थी; न यही बतलाया था कि तो फिर हिन्दी में यह 'ने' विभक्ति आयी कहाँ से ! श्री डी वी के उस लेख का मैंने समुचित उत्तर दिया, जिस पर वे चुप रहे। इस पुस्तक में-- हिन्दी-निरुक्त में--तो कई अन्य विभक्तियों के विकास पर भी प्रकाश डाला गया है। गृह' से 'घर' बन गया; इतना कह देना ही भाषा-विज्ञान नहीं है। यह नो शब्द-विकास की एक साधारण चीज है। हिन्दी में संजाओं नया क्रियाओं की विभक्तियाँ कहाँ से किम तरह आयीं: यह सब भी भाषा-विज्ञान में ही बताना होगा और यह