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६४: हिन्दी-निरुक्त
 

के लिए भिज्ञ' चलाया जा रहा है ! इसी तरह 'इस्तीफा' को लोग 'स्तीफा लिखने लगे हैं; यह समझकर कि 'इ' तो उच्चारण-सुविधा के लिए लोगों ने चिपका ली है ! यह नहीं समझे कि 'इस्तीफा' ही शुद्ध शब्द है; फारसी 'इस्तीफे' का तद्भव रूप । अब इस 'इस्तीफा' को और क्या शुद्ध किया जाय ? अच्छे ताये हुए घी को, और अधिक शुद्ध करने के लिए जलाओगे, तो बदबू देने लगेगा, खराब हो जायगा । सो, इस तरह के 'भिज्ञ' लोग यदि भाषा-'संस्कार' का काम छोड़ कर, अपना 'स्तीफा' दाखिल करके, कुछ और काम करें तो अधिक अच्छा हो। सारांश यह कि 'शब्द' या पद के प्रारम्भ में स्वर-लोप का विषय सावधानी का है। जरा-सी भूल हो जाने से रग पर नश्तर' लग जाने का डर रहता है ! इसलिए हिन्दी के 'डाक्टर' यदि तेजी से हाथ न चलायेंगे और सावधानी से काम लेंगे, तो अच्छा होगा। ___आदि में स्वर का ही नहीं, व्यंजन का भी लोप होता है-स्नेह- नेह । परन्तु इसो अनुकरण पर यदि कोई 'स्तुति' को 'तुति' या 'स्तव' को तव' कहेगा, तो अपनी भूर्खता का परिचय देगा। हाँ, 'स्फूति' का 'फुरती' और 'स्फुरण' का 'फुरना' नैसर्गिक है। 'हृषीकेश' का 'ऋषीकेश' आपके सामने है। ह,' उड़ गया। कभी-कभी आदि का वर्ग ज्यों का त्यों रहता है और उसके अनन्तर बैठा हुआ उड़ जाता है ! 'स्वामी' से 'साई' बन गया। 'व्' तथा 'म' का लोप और 'ई' सानुनासिक ! 'म्' अपना प्रतिनिधि छोड़ गया है। आद्य स्वर में ज्यों का त्यों रह कर अपने आगे के व्यंजन का बलिदान कभी-कभी कर देता है। 'उत्' उपसर्ग से हिन्दी का 'उ' उपसर्ग इसी तरह बना है-उठना, उचटना आदि। निस् या निर उपसर्ग के अन्त्य व्यंजन का लोप कर के हिन्दी 'नि' उपसर्ग की निप्पत्ति है--निकम्मा, निपटना, निगोड़ा (निर्गुण) आदि । शब्द के अन्त में संयुक्त व्यंजन हो, तो पूर्व व्यंजन का लोप प्रायः देखा जाता है और तब आद्य स्वर दोघं हो जाता है-सप्त-सात, तप्त-तात, भक्त-भात, रिक्त-रोता आदि । 'रीता' एक लड़की का भी नाम है, जिसके 'पण्डित' पिता ने सुन्दर नाम 'ऋता' रखा था। -'ऋतं च सत्यं च' से 'ऋत' ले कर स्त्रीलिङ्ग प्रयोग--'ऋता'। इस 'ऋता को अंग्रेजी समाचार-पत्रों ने 'RITA' छापा, जो ठीक ही