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हिन्दी-निरुक्त  : ७७
 

कहा ! वह जब देखो तब पड़ा ही तो रहता है-सुल्त ! बछड़े या बछड़े की तरह चुस्त तो क्या होगा; किसी के भी बच्चे से अधिक सुस्त! इसीलिए उसे 'पड़ा' नाम मिला। स्त्रीलिंग-पड़ी' या 'पडिया' । इसी तरह स्थान' शब्द अर्थ-भेद से-थान, थाना, ठिकाना, ठीहा, अस्टान आदि रूपों में विकसित हुआ है। ___ पक्ष' से 'पंख' और 'पाख' अर्थ-भेद से ! 'शुद्ध' का 'सूध', 'सूधा', सीधा', 'सुधरा' तथा 'सुथरा' आदि के रूप में विकास आप पहले ही देख चुके हैं। इसी तरह शतशः शब्द-भेद आप को मिलेंगे। आवश्य- कतानुसार प्रति अर्थ शब्द-भेद करके हिन्दी ने अपनी नैसगिक वैज्ञानिक पद्धति का परिचय दिया है। ३३-ढरे पर गढ़े शब्द ___ कुछ शब्द ऐसे भी हिन्दी में हैं, जो किसी दूसरे शब्द के डरे या वजन पर गड़े गये हैं। इसे हम विकास न कहकर नवनिर्माण कहेंगे। 'मिष्ट' का 'मोठ' और पुं-विभक्ति लगाकर 'मीठा' बना लिया, तव 'फीके' के अर्थ में 'सोठ' या 'सीठा' भी चला। मीठा' के साथ 'सीठा' जितना जमता है, उतना ‘फीका' नहीं । हाँ, अकेले 'फीका आये, तव वैसा फीका नहीं लगता--'सरस होय अथवा अति फीका' । 'सरस' से बहुत दूर जाकर 'फीका है; इसलिए बेमेल होने पर भी उतना अखरता नहीं ! समीप तो 'सरस-नीरस' ही जंचेगा । खैर, मतलब यह कि ढर्रे पर भी नव-निर्माण हिन्दी ने किया है। इसी तरह शब्द निर्माण अन्यथा भी होता है। 'मा' के ही समान-'मा-सी' । 'मासी' का पुल्लिग 'मासा' कुछ जचा नहीं। वह तो 'पिता सा' है न ! दूसरे, एक निश्चित तोल को भी ‘माशा' तथा 'मासा' कहते हैं । इसलिए मासी का पुल्लिग 'मौसा' कर दिया गया। तब 'मौसा' का स्त्रीलिंग 'मौसी चला । 'मासी' की नकल पर 'मामी', 'चाची', 'भाभी', 'दादी' आदि समझिए। 'ताती' तो गरम समझी जाती; इसलिए 'ताई' हो गया और पुल्लिग 'ताऊ' । 'वावा भी चला; पर उसका स्त्री लिंग 'बाबी' न चला । 'दादी' वोलते हैं । “दीदी पृथक है। इस तरह 'मा' के बाद ये सब हैं। ____ भीड़' प्रसिद्ध शब्द है, जिसका उलटा 'छीड़ मेरठ-परिसर में प्रसिद्ध है । गाड़ी में आज भीड़ न थी यह एक बात है और गाड़ी में