आज बहुत छोड़ है यह दूसरी बात । "भीड़ नहीं है' कहने से यहाँ अर्थ निकलता है कि खिच-पिच नहीं है। परन्तु 'छीड़ है' कहने से समझा जाता है कि वहुत दूर-दूर लोग बैठे हैं। 'छोड़' शब्द 'भीड़' के वजन पर ही गढ़ा जान पड़ता है; पर जव तक ठीक पता न लग जाय कि 'भीड़ शब्द कहाँ से आया और पहले वना कि नहीं तव तक स्पष्टतः कुछ नहीं कहा जा सकता। सम्भव है--'भीड़' तथा 'छीड़' ये दोनों हो शब्द स्वतंत्र हों; कोई भी किसी के वजन पर गढ़ा हआ न हो। ___ अनेक वार लोग गलत निरुक्ति कर के शब्द-प्रयोग में गलती करने लगते हैं। हिन्दी का 'फुटकर' प्रसिद्ध शब्द है, जिसे कुछ लोग 'फुटकल' कर के भी लिखते हैं। यहाँ तक तो खैर थी; पर इसके आगे 'स्फुट' पर बात पहुँची । 'फुटकर ठीक है या 'फुटकल' इस विचारणा में पड़कर जव गोते खाने लगे, तो 'स्फुट' को पकड़ा। 'फटकर' के अर्थ में 'स्फुट' लिखने लगे ! 'स्फुट' का अर्थ है विशद' या 'स्पष्ट । 'स्फुटमने व्याख्यास्यते'--आगे स्पष्ट व्याख्या की जायेगी। परन्तु स्फट' का 'कट' देखकर लोगों ने समझा कि इसी से 'फटकर' बना है ! बस, लिख चले अखवारों में-- 'स्फुट प्रसंग' । आचार्य द्विवेदी ने मुझे एक पत्र में लिखा था-"आप ने अनेक गलत शब्द-प्रयोगों की ओर जाते हुए प्रवाह को बदला है; पर 'स्फुट को क्यों भूल गये ? इसे लोग 'फुटकर' के अर्थ में लिखते हैं।" यह एक उदाहरण है । शब्द-साम्य मात्र से निरुक्ति का महल खड़ा नहीं होता । अर्थ का चूना या सीमेंट' चाहिए। ३४-अनेकया निरुक्ति बहुत पुराने शब्दों का विकास कभी-कभी दुरनुसन्धान हो जाता है । निश्चित रूप से तब उन शब्दों की निरुक्ति नहीं बतलायी जा सकती और यह नहीं कहा जा सकता कि इसी शब्द से यह शब्द वना है। एक व्यक्ति उस शब्द की उत्पत्ति किसी शब्द से मानता है, तो दूसरा किसी दूसरे शब्द से । विचार चलने पर निश्चय होते-होते हो जाता है। यही नहीं, एक ही विचारक किसो शब्द की अनेकधा व्युत्पत्ति बतलाता है। इसका मतलब यह कि वह निश्चित रूप से नहीं कह सकता कि ठीक बात क्या है। अर्थ का अनुधावन करके अनेक जगह ठहरता है। खट्टा साग खाकर यदि न जान सकें कि अमचूर