पृष्ठ:हिन्दी निरुक्त.pdf/९

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हिन्दी-निरुक्त:११
 

हिन्दी-निन्वत : ११ इसी तरह 'हब' का हरम' बन गया । 'य' का लोप और 'र' के आगे 'अ' का आगम-हरम'-राज-महल । व्यंजन का आगम सस्वर भी होता है और अकेले भी। 'बनाना' में बतलाना बन गया। वीच में 'ला' आ गया। इसी तरह कहलाना' भी है। कहना' की प्रेरणा 'कहाना' है। एक 'ला' और आ धमका--'कहलाना' । यही सब 'वर्णागम है। स्वर या व्यञ्जन वर्णो के इधर-उधर होने को स्थान परिवर्तन को 'वर्ण-विपर्याय वा 'वर्ण-व्यत्यय कहते हैं। संस्कृत में हिंस' से सिंह बन गवान इधर और उधर स्वर जहाँ के तहां जमे रहे । 'सिंहो वर्ण- विद्ययात् । सोचने से पता लगता है कि संस्कृन के 'नख' आदि भब्द भी वर्ण-विपर्यय में ही बने है: यद्यपि इधर किसी ने ध्यान नहीं दिया। "छन्' धातु खोदने' अर्थ में है। जिससे खोदें, खनन करें, यह वन। जानवर नाखुनों ने ही मिट्टी खोदते हैं। मनुप्य ने खोदना तो छोड़ दिया है, पर बुरचता तो है ही। ये खन' प्रकृति ने अंगुलियों के अन भाग में जड़ दिये हैं. जो आगे चलकर- वर्ण-व्यत्यय सेनख हो गये। एक वर्ण की जगह दूसरा वर्ग आ जाय; या एक वर्ग दुसरे वर्ण के रूप में परिणत हो जाय, परिवर्तित हो जाय, तो उसे 'वर्ण-विकार' कहते हैं । 'पैसा' को पैहा' हो गया, तो हम कहेंगे, वर्ण-विकार हुआ। 'स' काह' हो गया। 'काक' का काग' बन गया, तो 'वर्ण-विकार, हुआ। वर्ण का नाश या लोप तो स्पष्ट ही है-क्रिनी बद' में किसी अक्षर (स्वर या व्यञ्जन) का एकदम नुप्त हो जाना ! संस्कृत स्नेह का स्' उड़ गया और अवधी तथा ब्रजभाषा में 'नेह रह गया। पूर्वी हिन्दी के 'हमार' का 'ह' उड़ गया, बंगाल पहुँचते-पहुँचने, और है.' के वियोग से तदाधार 'अ' ने लम्बी साँस खींची—'अ' में आ ही गया । हमार' का दन गया---'आमार' । यही सब भब्द-विकास का विषय है। अर्थ में फेर-फार हो जाने को अर्थ-विकास कहते हैं। उदाहरण के लिए संस्कृत की पच्' धातु का हमारे यहाँ-(हिन्दी में)-अर्थ-विशेष में प्रयोग हुआ। हिन्दी में कोई भी धातु व्यं जनान्त नहीं है, लव सस्वर हैं । संस्कृत की 'पच् हमारे यहाँ 'पत्र' हो गयी और अर्थ भी कुछ