पृष्ठ:हिन्दी भाषा की उत्पत्ति.djvu/२३

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हिन्दी भाषा की उत्पत्ति।

पश्चिम, गुजरात में, रहने लगे। आज-कल के पारसी उन्हीं की सन्तति हैं। पर यद्यपि भारत के शाकद्वीपीय ब्राह्मण और पारसी ईरानियों के वंशज हैं तथापि न तो वे ईरान ही की कोई भाषा बोलते हैं और न उनकी कोई शाखा ही। इनको इस देश में रहते बहुत दिन हो गये हैं। इसलिए इनकी बोली यहीं की बोली हो गई है।

मीडिक भाषा

मीडिक भाषा-समूह में बहुत सी भाषायें और बोलियाँ शामिल हैं। ईरान के कितने ही हिस्सों में यह भाषा बोली जाती थी। ये सब हिस्से, सूबे या प्रान्त पास ही पास न थे। कोई-कोई एक दूसरे से बहुत दूर थे। मीडिया पुराने ज़माने में फ़ारिस का वह हिस्सा कहलाता था जिसे इस समय पश्चिमी फ़ारिस कहते हैं। मीडिया ही की भाषा का नाम मीडिक है। पारसी लोगों का प्रसिद्ध धर्मग्रन्थ अवस्ता इसी पुरानी मीडिक भाषा में है। बहुत लोग अब तक यह समझते थे कि अवस्ता ग्रन्थ ज़ेन्द भाषा में है। उसका नाम ज़ेन्द-अवस्ता सुनकर यही भ्रम होता है। परन्तु यह भूल है। इस भूल के कारण एक योरोपीय पण्डित महोदय हैं। उन्होंने भ्रम से अवस्ता की रचना ज़ेन्द भाषा में बतला दी। और लोगों ने बिना निश्चय किये ही इस मत को मान लिया। पर अब यह बात अच्छी तरह साबित कर दी गई है कि अवस्ता की भाषा ज़ेन्द नहीं। भाषा उसकी पुरानी मीडिक है। अवस्ता का अनुवाद और उस पर भाष्य ईरान की पुरानी भाषा पहलवी में है। इस