है। अन्यत्र सब कहीं सविता, पूषा, मित्र, वरुण, अग्नि, सोम और कहीं-कहीं श्रेष्ठ मनुष्यों के लिए भी "असुर" शब्द का प्रयोग किया गया है। उदाहरण के लिए ऋग्वेद के पहले मंडल का ३५ वाँ, दूसरे का २७ वाँ, सातवें का दूसरा और दसवें का १२४ वाँ सूक्त देखिए। इससे स्पष्ट है कि बहुत पुराने ज़माने में असुर शब्द का अर्थ बुरा नहीं था। और चूँकि अवस्ता में असुर (अहुर) की उपासना है, और वह पारसियों का पूज्य ग्रन्थ है, अतएव हमारे पारसी-बन्धु असुरोपासक हुए। याद रहे ये लोग भी उन्हीं आर्य्यों के वंशज हैं जिनके वंशज पंजाब में आकर बसे थे और जिनको हम लोग अपने पूज्य पूर्वज समझते हैं।
वैदिक देवताओं और याज्ञिक शब्दों की तुलना अवस्ता से करने पर यह निर्विवाद सिद्ध होता है कि वेद और अवस्ता की भाषा बोलनेवालों के पूर्वज किसी समय एक ही भाषा बोलते थे। प्रमाण:—
वैदिक शब्द |
अवस्ता के शब्द |