स्वम् |
त्वम् |
कितने ही वैदिक छन्द तक अवस्ता में तद्वत् पाये जाते हैं। इन उदाहरणों से साफ़ ज़ाहिर है कि वैदिक आर्य्यों के पूर्वज किसी समय वही भाषा बोलते थे जो कि ईरानी आर्य्यों के पूर्वज बोलते थे। अन्यथा दोनों की भाषाओं में इतना सादृश्य कभी न होता। भाषा-सादृश्य ही नहीं, किन्तु अवस्ता को ध्यानपूर्वक देखने से और भी कितनी ही बातों में विलक्षण सादृश्य देख पड़ता है। अतएव इस समय चाहे कोई जितना नाक-भौंह सिकोड़े, अवस्ता और वेद पुकारकर कह रहे हैं कि ईरानी और भारतवर्षीय आर्य्यों के पूर्वज किसी समय एक ही थे।
विशुद्ध संस्कृत का उत्पत्ति-स्थान
इस विवेचन से मालूम हुआ कि आर्य्यों के पंजाब में आकर बसने तक, अर्थात् उनकी भाषा को "पुरानी संस्कृत" का रूप प्राप्त होने तक, उनकी और ईरानवालों की मीडिक भाषा में, परस्पर बहुत कुछ समता थी। पुरानी संस्कृत कोई विशेष व्यापक भाषा न थी। उसके कितने ही भेद थे। उसकी