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हिन्दी भाषा की उत्पत्ति।


चतुःसीमायें ये लिखी हैं। उत्तर में हिमालय, दक्षिण में विन्ध्याचल, पूर्व में प्रयाग, पश्चिम में सरहिन्द। इस मध्य देश के एक छोर से दूसरे छोर तक सरस्वती नदी की पवित्र धारा बहती थी। वैदिक समय में उसी के किनारे नवागत आर्य्यों का अड्डा था।

संस्कृतोत्पन्न आर्य्य-भाषाओं की दो शाखायें

संस्कृत से सम्बन्ध रखनेवाली जितनी भाषायें इस समय हिन्दुस्तान में बोली जाती हैं उनकी दो शाखायें हैं। वे दो भागों में विभक्त हैं। एक शाखा तो ठीक उस प्रान्त में बोली जाती है जिसका पुराना नाम मध्य-देश था। दूसरी शाखा इस मध्य-देश के तीन तरफ़ बोली जाती है। उससे निकली हुई भाषाओं का आरम्भ काश्मीर में होता है। वहाँ से पश्चिमी पंजाब, सिन्ध और महाराष्ट्र देश में होती हुई वे मध्य भारत, उड़ीसा, बिहार, बंगाल और आसाम तक पहुँची हैं। गुजरात को हमने छोड़ दिया है, क्योंकि वहाँ की भाषा मध्य-देशीय शाखा से सम्बन्ध रखती है। इसका कारण यह है कि पुराने ज़माने में गुजरात प्रान्त मथुरा से जीता गया था। मथुरा के नवागत आर्य्यों ने गुजरात के पूर्वागत आर्य्यों को अपने अधीन कर लिया था। मथुरा मध्य-देश में था। और बहुत से नवागत आर्य्य गुजरात में जाकर रहने लगे थे। इसी से मध्य-देश की भाषा वहाँ प्रधान भाषा हो गई। हिन्दुस्तान भर में एक यही प्रान्त ऐसा है जिसके निवासियों ने अपने विजयी नवागत आर्य्यों की भाषा स्वीकार कर ली है।