पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/१२

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जन्म जन्मकुण्डलो • इसके कारणकी खोज कर उन लोगों ने स्थिर किया | अवलम्बन करते हैं और परस्परके पभावपूरक ( Spor: है कि, जन्म हो मृत्युका कारण है। जन्मनेसे ही मरना| ogony ) भावको धारण कर दो खतन्त्र जीवमूत्तिम पड़ता है। कीटाणुप्रोका जन्म नहीं होता; एक परिणत हो जाते हैं। इनमें परस्परको स्वाभाविक मिलने. लीवका शरोर विभव हो कर भिन्न भिन्न जीवों का च्छा अत्यन्त प्रवल होती है। जिस समयसे लोव जगत्में आविर्भाय हुआ करता है. इसी तरह उनको मख्या इस तरह के दो परस्परमें मिलनेच्छ, विभिन्न प्राकृतिक बढ़ती है। उच्च पीके जोय माताके गर्भ से उत्पन्न होते | जीवों का आविर्भाव हुपा है, तभीमे स्त्री-पुरुषका भेद है, इसीलिए उनको मृत्यु होती है। अब यह देखना | देखा गया है, तया परस्पर समागमके बिना नवीन चाहिये कि, जीव जगत्म जन्मका आविर्भाव कैसे हुआ? जीवका उद्भव होना असम्भव हो गया है । इसके बादसे • मोनर ( Moner ) के पिता माता नहीं हैं, एक झामिक विकासमार्ग में एक जीवसे और नये जोव उत्पत्र मोनर विभक्त हो कर दो स्वतन्त्र जीवरूपमें परिणत नहीं होते। इस प्रकारके समागमसे जितने भी जीवों होता है। का आविर्भाव होता है, उन सबको कुछ दिन माताके एमिया स्फिरोकोकास् (amaeba sphaerococus) | गर्भ में रह कर पीछे जन्म लेना पड़ता है। जीव-जगतमें नामक और एक प्रकारके अति शुद्र जीव हैं, उनकी इस तरहसे जन्म प्रकरणका प्राविर्भाव हुआ है। संख्या वृद्धिका क्रम मोनरको अपेक्षा कुछ जटिन्न है। पहले कहा जा चुका है कि, मोनर आदि कोटाणु. इस तरह एक शरोर विभत हो कर भिन्न भित्र गण पहलेहोसे पूर्णावस्थाको प्राप्त हो कर प्राविभूत जीवोंका आविर्भाव होता है और वे एकबारगो पूर्णा होते है, किन्तु जोय-जगत् क्रमशः उवति लाभ कर वस्थामें विच्छिन्न हो जाते है। इनको शैशवावस्था । जितना हो स्त्री-पुरुषभेदके समीपवर्ती होता जाता है, नहीं भोगनी पड़ती। शरीरविभाग प्रणालीके बाद | उतना ही जोवको शैशवमें निसहाय अवस्थाम पड़ना मुफुल्लोइममणाली (Gemmation ) का क्रम है। यह पड़ता है। इस प्रकार उतिपथके पूर्ण सीमा पदा- प्रणाली और भी जटिल है, वृक्षसे पुष्पका उहम तथा पंग करते ही जीव संपूर्ण निःसहाय हो जाता है। प्रपालादि कोटीको हदि इसी नियमके अनुसार हुआ सोलिए मनुष्य आदि उच्चश्रेणीके जोव शैशवकालमें करती है। इसके बाद बीजोहमप्रणालो होतो है । इस संपूर्ण रूपसे असहाय रहते हैं। जीव, परजन्म, अंत:सत्ता, प्रणालीके अनुसार माताके शरीरमें नो बीजापुर विद्य- गर्म, मृत्यु आदि शब्द देखो। मान रहते हैं वे ही उद्भिय हो कर भिव शरीर धारण जनौने जीवों की उत्पत्ति नहीं मानी है, जीव संधार• करते हैं। यहां तक जोय सिर्फ एक ही जीवके शरीरसे में घनादिकालमे हैं और अनन्त काल तक रहेंगे। इनकी आविर्भूत है। संख्या अनन्त है, बराबर मुक्त होते रहने पर भी जीयो का इसके बाद जलक्रमसे जोव-जगत्में जिन जीवोंका पन्त नहीं हो सकता। जोय अमर है, सिर्फ पायुकर्मके विकास हुआ करता है उनमें स्त्री पुरुषकी पावश्यकता अनुमार शरीर बदलता रहता है। जीव देखे।।। होतो है, बहुतसे प्राणी ऐसे भी हैं, जो उद्भिद थेपो या जन्मकाल (संपु०) जन्मनः कालः, ६ तत् । जन्म जीवये पीके अन्तर्गत हैं इसका निर्णय करना अत्यन्त कठिन है। ऐसा प्रमाण मिला है कि, दो कुरों | जन्मकील (सं० पु.) जन्मनः कोल इव रोधक इव । ( Cells) के एक न समावेशये इन लोगों को उत्पत्ति विष्णु । पुराणके पनुसार मनुष्य विष्णुको उपासना कर होतो है। ये विभिन अइ रहय समधर्मी (Homo. मोक्ष प्राप्त करता है, उसे फिर जन्म नहीं लेना पड़ता। ganeous) होने पर भी कभी कभी भिव प्राकृतिक हो इसीसे विष्णुका नाम जन्मकोल पड़ा है। जाया करते हैं, जीव-जगत्में इस प्रकारका क्रमिक | जन्मकुण्डली (सं० स्त्रो.) एक प्रकारका चक्र जिससे विकाय होते होते कालान्तरमें दो बार विभिन्न धम ! किमीके जन्मके समयमें ग्रहों की स्थितिका पता चले। ___Vol.VIII. 3