पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/१२२

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जल १११ - मसभा जाना है। ऐसोजगह इष्टिका जन्न, फिल्टर द्वारा । तरफ जाता रहता है, इस तरह से प्रसव के निकट उप - शोधित जलके समान है । नगर प्रादिके निकटवर्ती । स्थित होते ही बल उसे खींच लेता है। 'स्थानका बरसाती पानी छान कर अथवा उबाल कर __स्तरके अनुसार प्रसरणके जल में भी लवणोश रहता काममें लाया जाता है। विशेषतः इम पानो को किसो है। भावनायूक्त स्थानसे निकने हुए जन्नमें 'नेमे शहरों सोसेमे पात्रमें रखनमे वह ट्रवणीय भोपण सोसक लवण के कुएं यादि ) कोराइड अफ सोडा मिथित रहता (Salt of leaul . द्वारा कलुपित हो जाता है। है। जिस स्थान खड़िया-महो रहती है वहकि अन्नमें शिशिर और दृष्टिके जलमें विशेष कुछ पाय क्य कार्वनेट अफ लाइन देखा जाता है। किसी किसो नहीं है। शशिरजलमें सिर्फ घायुका भाग कुछ लवण-खान से निकले हुए प्रसवण के जलमें अरुणक यधिक है। प्रथन अवस्थामें बर्फ के पानो और टिके (मायोडाइन) और ब्रोमाइन् मिश्रित रहते हैं। और तो पानी मेद रहता है, बर्फ में बिलकुल वायु नहीं क्या, मस्रवणका जन्न यदि क्रिमो मो खनिजपदार्थ में हो कर जाय, तो प्रायः उसमें थोड़ा बहुत खनिज पदार्थ हता, इसलिए उसमें मछनो आदि साम नहीं ले मयुक्त हो जाता है। इस प्रकारके जल को खनिज वा सकती हैं। यही कारण है कि बर्फ के पानो में स्वाद खनिजप्रस्रवण जन कहते हैं। और गन्ध नहीं रहतो। किन्तु वायुम योग होने में हो ___कभी कभी जिस गिरिगिलामें अम्ल, लावाणिक और वह यथापरिमाण शोषण करती रहती है। तुपारका | पार्थिव पदार्थ मयुक्त रहते हैं, उस गिरिगिलाके ऊपरसे जल भी बफ के समान है। लवणम युता खनिजन प्रवाहित होने पर भो उममें हटिम हो उस वा प्रसवणको उत्पत्ति है । पृथियो। अग्लादि नहीं पाये जात। ओर आदिमस्तरमे जा के किसो पोले परतसे हष्टि का जल भीतर घुसता है, और खनिज जल निकला है, उसका उत्ताप अधिक है तथा अन्तम रसावट पाते हो वह अपरको चढ़ता रहता है। प्रधानतः उममें गन्धकित उदजान वाप, अङ्गारकाम्ल इमोको मनवा करते हैं। इसमें प्रस्रवणके जलमें भी पाप ववक्षा (carbonite of soda) के सिवा मोडा, वष्टिक ममुदाय उपादान रहते हैं। उत्पत्ति स्थान और मिकता और अविशद क्षार रहता है, घोड़ा बहुत लोहा स्तरके अनुसार होमस्रवण जलके गुए न्य नाधिक विशुद्ध भी पाया जाता है, किन्तु कहीं कहीं का निन्द प्राफ होते हैं। छोटोको अपेक्षा बड़े बड़े प्रसवगा का जल हो लारम् बिस्कुल नहीं रहता। प्राचीनतर हितोय युगस्तर समधिक परिष्कार होता है । आदिम अन्धरयुगी स्तर (-0 der Secon iary fornations ) मे जो जल अथवा अग्निप्रस्तर ओर कड़ी में से जो प्रस्रवण होता निकालता है उमका अधिकांश शेपोश जल के समान है, है, उसका जल अत्यन्त विशद है। इसका अापतिक अपरम गरम मालूम पड़ने पर भो उमका पाभ्यारिक गुरुत्व शोधित जलके समान है। उत्ताप कम होता है। इममें अङ्गार काम्न वाष्प थोड़ा ___ सभी प्रस्रवण-जालमें थोड़ो बहुत अङ्गारकास वा बहत रहतो भो है, किन्तु गन्धकित पानजान बिल्कुल मिथित रहतो है। अतारकाम्न सलग्न होने के कारण ये नहीं रहता । इसमें क्षारलब ए योड़ा है किन्तु सन फैट

है--नि:बाम, दाहन प्रादिके जरिये वायुमण्डलमें पङ्गा पफ लाइम ज्यादा पाया जाता है। किमो किलो स्थान.

रकाम्स माता है पोर मभी जलमें अङ्गारकाम्न चूमन्ने ने में किश्चित् शिकता (Silica ) भी पायो जाती है। की शक्ति होती है, इसलिए वायुमण्डलमें पहुंचते हो | पृथिवोके अभिनव हितोय वाटतोय युग स्तरका (the वह दष्टि जलके साथ मिल जाता है। इसी तरह जहां never secondary and tertiary fornations ) मृत जन्तु बाउनिज पदार्थ पड़े रहते हैं, उसके ऊपर• जन्न शीतन होता है, उसमें पारकाम्न वाध नहीं है। से भी जल जानसे उसमें प्रारकाम्ल मयुक्त होता है। कानेट और सन फैट अफ लाइम, सन फैट, अफ इसके मिवा पृथिवोके अभ्यन्तर प्रदेशमें पधारकाम्ल । मंगसिया और प्राइड फ. पायरन् इम नलके धमाके साथ मिल कर आभ्यन्तरिक उत्ताप दारा तरको पादान हैं।