पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/१२८

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जलतराई-जलधका हलकी मुंगरीसे प्राधात कर तरह तरहके नीचे चे| रादि वाद्यभेद, यापी द्वारा नन्तम शब्द करना। स्वर उत्पाव किये जाते हैं। जलदागम ( समु० ) जलदानां मेघानां प्रागमः पागमन जलतरोई (हि. स्त्रो.) मस्य, मछली। यत्र । वर्षाकान्त, बरसात । जलताविक ( स० पु०) जलतापिन् सज्ञायां कन् । १ जलदाशन (सपु. ) जलदैरश्यते सक्ष यते प्रश कम पि हेल मछली । २ काकची मत्स्य, एक मछली। ३ जल ल्युट । शालवृक्ष, गाय का पड़ । प्रवाद है कि यादल ताल, हिलसा मछल्लो। शाखूको पशियां ग्वाते हैं, इससे साख का यह नाम जलतापी (स० पु०) जलता रूदेगरूपसे हमलमयता पड़ा है। प्राप्नोति, जले तपति प्रकाश्यति इति वा। जलताप जलदुर्ग (स ली.) जलवे रितं दुर्ग। दुर्गभेद, एक जिन वा जल-तप पिनि । केन नामक मछली। प्रकारका दुर्ग जो चारों ओर नदी भील भादि जलताल ( ४०) जलताये प्रति पर्याप्नोति अल सुरक्षित हो । दुर्ग देखा। अ। मत्स्यविशेष, छेल मछली। जलदेय (सं० पु. ) जल देवो अधिधात्रोदेवता अस्य । जललिलिका (सस्त्री० ) स्वल्पा तिक्षा तितिका, नन्न । १ पूर्वापाट नक्षत्र । अश्लेषा देखें। प्रधाना तिलिका । शलको वृक्ष, सलईका पेड़। । २ केतुग्रह युक्त नक्षत्रका नाम । जलदेव के रा ग्रहके जलना ( स० स्त्री०) जलात् जायते वै-क। १ छव, साथ मिलने पर कायोपतिका नाश होता है। छाता २ जङ्गमक टो, वह कटो जो एक स्थानसे हटा ३ जलस्थित देवता, वरुण । कर दूसरे स्थान तक पहुंचाई जा सके। जलदेवता (सं० स्त्रो०) जलस्य अधिष्ठात्री देवता । जलबास ( पु.) जलात् तमित् वाम मोऽस्य वा।। वा जलस्थित देवता, वरुण । जलसे भय, पानी देख कर डरखाना। कत्ते, शृगाल | जलदोहो (हि.पु.) काईको तरहका एक पौधा । यह अादिक काटने के बाद अल देग्व कर अत्यन्त भय लगता | भी पानी पर फैलता है। इसके शरीर में लगनेसे खजली है, उसको रिष्ट कहते है । ऐसी अवस्थामै काटे हुए मनुः | पैदा होती है। प्यका बचना काजनक है। अलतिक देखो। . जन्लट्रव्य ( स० ली.) जलस्थितं यत् द्रव्य । मुता, पंख मलद ( म० पु. ) जल ददाति दा-क। १ मेघ प्रभृति समुद्रमात द्रव्य । वादल । २ मस्तक, मोथा।३ कपूर, कपूर । ५ शाक- जलद्राधा (स. स्त्री०) जले द्राक्षा व । शालिनी थाक, दीपक अन्तगत वर्ष विशेप, पुराण के अनुसार शाकदीप- एक प्रकारका साग । के अन्तर्गत एक वर्ष का नाम । (भारत २/११/११) (fa) जलद्रोणो (स. स्त्री० ) जलस्य जलसेवनार्थ द्रोणीय।। ६ जलदाता, जल देनेवाला । (१०) ७ कारस्करहत, नौकाका जल फे कनेका पात्र-विशेष, नावका पानी कुचलेका पेड़ ८ पोतबालक, हरीवाला। बाहर निकालनेका डोल । २ डोल, डोलवी । जलदकाल (मपु. ) जलदस्य कालः, तत्। वर्षा जलदीप (मपु.) जलप्रधानो होपा।दीपभेद, एक दीप. काल बरसात। नाम। जलदक्षय ( पु.) जलदानां यो यत्र । शरत्काल, | जलधका- उत्तर बङ्गालको एक नदी। यह नदी भूटान- .शरद रत। से निकल कर भूटानगज्य और दार्जिलिङ्ग जिलेके सीमा जलतिताला (हि. पु.)तविताली रागिणी विशेष, । प्रदेश होती हुई नत्पाईगुड़ी में गिरती है। फिर यहाँस • एक साधारण तिताला ताल । इसकी गति साधारणसे | पूर्व की और कोचविहार हो कर बहती हुई धरला नदी. कुछ तेज होती है। कोई कोई कहते हैं कि यह कोया. से मिल गई है। यह नदो अपने उत्पत्तिस्थानसे कुछ मोसे कुछ विन्तीवित होता है। दूर तक डि-घु और उसके बाद सिद्रीमारी नाममे पुकारी जन्तदष्टुर (म. पु. ).जल दहर इव । जलरूप दर्दु जाती है। पराल चु, रच भौर माचु उपनदियां दार्जि Vol. -VIII. 80