पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/१३१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

लनकुल - जलधर-जलनकुल लिम, मति पीर टोना जलपाईगुड़ो में और मुजः । समुद्र । २ दय गर, सख्या, दग म या एक सो नाई, मतङ्गा, दुदया, दोलङ्ग योर दलालोया कोचविहार लाख करोडको एक जलधि होती है। ' . में प्रवाहित हैं। यह नदो बहुत चौड़ी है किन्तु गहरो | जन धगा (स. स्मो०) जलधि समुद्र' गच्छति गम कम है। 'स्त्रियां टाप । १ नदो। २ लक्ष मी। अलधर (मपु०) धरतीति धरः धृ मच जलस्य धरः | जलधिन (स'. पु. ) जलधौ जायते जन-ड। १ चन्द्र, . १ मेघ, बादल | २ मुम्तक मोथा। ३ समुद्र । ४ तिनिशा चांद ! (त्रि०) ममुद्रजात द्रय, समुद्र में मिननेवाला पदार्थ . . वृक्ष, तिनसका पेड़ (वि.) ५ जलधाक, जल रखने जलधेनु (म' स्तो०) जल कल्पिता धेनुः। वह धेनु या वाला। गाय जो दानके लिए कल्पित को गई हो । वराहपुराणमें जनधरकेदारा ( स० स्त्रो.) मेघ और केदाराके योगसे दानका विधान एम प्रकार लिखा है-पुण्य के दिन यया- उत्पन्न एक रागिणोका नाम । विधिसंयतचित्त हो कर जो जनधेनु दान करता है, वह जलधरमाला (म० स्त्रो०) जलधरस्य माला, तत् ।। विणुलोकको जाता है और उसे अक्षय वगैको प्रामि . . १ मेघय गो,वादलों को पति २छन्दोविशेष,एक छन्दवार होती हैं । भूभागको गोमय द्वारा परिमार्जन कर चर्म नाम। इसके प्रत्येक चरगामें १२ अक्षर होते हैं। ४धा कल्पना करो। उनके बीच में एक कुगा रख कर उमे और प्यो अक्षर यति होता है | ५, ६, ७ र ८वां वण' जलसे परिपूर्ण करो और उसमें चन्दन, प्रगुरु भादि । लघु होता है, बाकोके वर्ष दोघ होते हैं। गन्धट्रय डान्न कर उसमें नुको कल्पना करो। पनन्ता जलधरी ( म० बी० ) पत्यर या धात प्रादिका बना और एक हत पूण कुम्भमें धोको दूर्वा पुष्यमाला पादिसे हुमा अधी। इसमें गिनिङ्ग स्थापित किया जाता है, | भूपित कर उसमें वस्यको कल्पना करो। उम घड़े पर जलहरी। पञ्चरत्न निक्षेप कर मामो, उगोर, कुछ, शैलेय, मालुका जलधार (सं० पु.) जलं धारयति धारिरण, उप. शाक। प्रायन और परो निक्षेप करो। इसी तरह एक घृत, होप स्थित पर्वत। (दि०)२ जलधारक । (स्रो०)३ एकमें दधि, एकमे मधु और एकमें शर्करा भर कर नलसन्तति । रखे पोछे उनमें सुयर्ण धारा मुख और चतु, रुणागुरु अन्नधारा (सी .) १ जलमयाह पानीको धारा।२ | द्वारा शृङ्ग प्रशस्त पत्र द्वारा कर्ण, मुतादल हारा चतु, एक प्रकारको तपस्या । इसमें कोई मनुथ तपस्या करने. ताम द्वारा पृट, कांग्य द्वारा रोम, सुन धारा पुचछ, शक्ति पान पर बगवर धार यांध कर जन्न डालता रहता है। हारा दन्त शर्करा पारा जिवा, नवनीत हारा स्तन पौर अलधारा तपम्खो-एक प्रकारके संन्यामो। ये येठने के योग्य इक्षुधारा रीको कल्पना कर गन्धपुप धारा शोभित करो किसी एक निर्दिष्ट स्थानमें गड़ा खोद कर उस पर मञ्च इसके बाद उन्हें सणाजिनके ऊपर स्थापन कार वन हारा' धनाते है, उस मशके ऊपर एक बहु छिद्रयुजा जलका पाच्छादित करो। पीछे गन्धपुष्पमे अर्चना कर उन्हें येद.. पास रहता है। मन्यासो इन गड़हे के भीतर बैठ कर पारग मामण को दान कर देना चाहिये। इस प्रकारको सपस्या करते है। पोर उनका कोई गिव उम पानी | जलधेनु दान बारनेवाला ब्राह्महत्या, पिटया, सुरापाना । परापर जन्न भरता रहता है। इस प्रकारको तपस्या ये गुरुपत्रीगमन इत्यादि महापातकी मे विमुमा हो जाता है राधिमें करते हैं। गोत ममें भी मका यह नियम ! पौर दान लेनेवाले मामा का भी महापाता नष्ट होता : भद्रा नहीं होता। परन्तु जर ये तपस्यामः कर उठते है।(पराहपुराण) तब इनके शरीर पर कुछ भी नहीं रहता। जलन (हिं. स्त्री० ) १ यदुन अधिक पा । २ अम्लनेको ... अन्नधारो ( म.मि.) १ जल का धारण करनेवाला, जल । पीड़ा या दुःख । धारक (पु.)२मेघ, यादन। जनगान (म.प्र.) जलने कुल एव । नलजन्तुविगैया, अनाधि (म'• • ) जलागि धीयन्त दिम जन-धा-कि I ) कविलाय। इसके पर्याय-उद्र, जनमाजार, अशाखा .