पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/१३२

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जलना-नलपथ ११६ • जलमय, . जलविडाल, नीराम, पानीयनकुन और समुद्र के किनारे गये और ममुद्रमे पूछने लगे कि, "यह वशी है। किसका पुत्र है ?" ममुद्र ने कहा-" मेरा पुत्र है, आप जलना (हिं० कि० ) १ दग्ध होना, भरा होना । २. ले जाइये और नातकादि मम्पन्न कोजिये।" प्रयाको अधिक गरमी लगने के कारण किमी पदार्थका भाफ था। गोदमें पति को वह बालक उनको दाड़ी पकड़ कर कोयले आदिके रूप में हो जाना । ३ अनसना, भौं मना।। खींचने लगा, जिसकी पीड़ास ब्रह्माकी अखिम पासू ४ बहुत अधिक डाहके कारण चिढ़ना। टपकने लगे। ब्रह्माने उम बालकका जलन्धर नाम जलनिधि (स.पु.) जग्लानि निधीयन्त ऽस्मिन्-धा-कि। रख कर इस प्रकार कर दिया- यह वालक पर्यशास्त्र. जलानां निधिः था। १ समुद्र। चारको मख्या। । वत्ता और रुद्र मिवा ममूर्तीका अवध्य छोगा।" इसके जलनिर्गम ( स० पु०) जनानां निर्गमः वहिर्गमनः। साद या ब्रह्माकं हारा असर गन्यमें अभिपित हुए । यस्मात् भाये अप। जननिःसरणार्ग, पानोका । इन्होंने कालनेमि सुता इन्दा साप विधाह किया। इसके निकास । इसके पर्याय-वम, वक्र और पुटमेद है। । उपरान्त इन्होंने एन्द्र को परास्त कर अमरावती पर अधिः जलनीम ( हिं० स्रो०) जलाशयों के किनारे दलदलो कार कर दिया। इन्द्रने राज्यच्य त हो कर महादेवकी भूमिमें उत्पन्न होनेवाली एक प्रकारको नोनिया । इमका | शरण ली। शिव इन्द्रको पक्ष ने कर इनसे लड़ने लगे। स्वाद कड़वा होता है। धन्दाने पतिकी रक्षा के लिए विश्णुको पूजा प्रारम्भ कर जलनीलिका ( सं० सी०) जलनोलो स्वार्थ कन, स्त्रिय दी। विष्णु जलन्धरके रूपले वृन्दाके पास पहुंचे, जिसमे टाप शैवाल, सेवार। धन्दानि पतिको अक्षत लौरा जान विष्णुको पूजा बिना जलनीलो (स' स्तो०) जलं नीलयति तत् करोति णिच । पूर्ण किये हो छोड़ दो इससे जलन्धरको मृत्यु हुई। ततो अग्ण गौरादित्वात् डोप। शैवाल, मेवार । धन्दा विरण के उक्त कपटको जान कर शाप देनकी उद्यत जलनेव (म.पु. ) जालमधूक, जल- महुआ। हुदै । विपणुने उन्हें अनेक मान्वना देकर कहा-"तुम जालन्धम (स.पु.) जन धमति या खग । दानवभेद, । सहमता होयो। तुम्हारी भस्मसे तुलमी, धात्री, पन्ताश एक राक्षसका नाम । २ मत्यमामाके गर्भसे उत्पन्न । पौर अश्वत्थ वे चार सन उत्पन्न हरी । ( पद्मपुराण) २ एक ऋपिका नाम। ३ योगाङ्ग बन्धभेद, योगका कणकी एक कन्याका नाम । एक बम ! ( काशीसंद 14. ) जलन्धर (स.पु.) जलं ब्राह्मनेवध्युताश्रुजल धरति ध. जलपचो (म मु०) जलस्थितः पक्षी। जनचर पक्षो, खुच सतो मुम् । १ असुरविगेप, एक परारका नाम । एक जनके प्रामपास रहनेवालो चिड़िया। दिन इन्द्र शिवलोक दर्शन करने की इच्छामे वहां गये । वह जलपति (सं. पु०) जनस्य पतिः, ६-तत् । १ वरुणने काशी. उन्होंने एक भयानक पाशतिका मनुपा देखा । इन्द्रने | तीर्य जा शिवम् ति स्थापन कर पन्द्रह हजार वर्ष उसे देख कर पूछा- भगवान भूतभावन महम्वर कहा शिवकी धाराधना की। गियने मन्तुष्ट हो कर उनसे हैं?" किन्तु उन्होंने कुछ भी उत्तर नहीं दिया। इस पर कहा-"मैं तन्हागे तपस्यामे सन्तुष्ट हुआ, तम वर इन्द्रने गुस्से में या कर वध धारा उन पर प्रहार किया। मांगो।" वरुपने कहा-"यदि मुझ पर सन्तुष्ट ही . इससे उता पुरपके लम्नाटसे अग्नि निकल कर इन्द्रको दग्ध हुए हैं, तो मुझे जनाधिपति बना दोजिये ।" इस पर करनेका उद्यम करने लगो । इन्द्रमे उन्हें रुद्र समझ कर शिवने "याजसे तुम ममम्त जलके अधिपति हुए" इतमा . नाना प्रकारमे सति कर उन्हें परितुष्ट किया। महादेवने | कह कर प्रस्थान किया। (शीखंड ११ २०१२ समुद्र । इन्द्र पर सन्तुष्ट हो कर उस अग्निको सागरसङ्गममें ३ पूर्वाषाढा नक्षत्र । . . . . निक्षेप किया। उस.अग्निमे एक बालक जनमा पोर । अन्नाथ (स.पु. ) जलमेव पन्या-पच । १ जलमार्ग, यह बड़े जोरसे रोने लगा। इसके रोनिये दुनिया वहरी जल.यहनेझा गम्ता जलस्य पन्या, तत् । २ मणालो, हो गई । म रोदन स्थिर हो कर ब्रह्मा देवों सहित । मान्तो। ... .. .