पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/१३३

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१२० जलपाई-अलपाईगुड़ो जलपाई-एक प्रकारका वृक्ष । भारतवर्ष में प्रायः सर्वत्र कि यहां जम्पीके अधिदाताके रूपमें प्राचीनतम शिवतिर । हो यह पेड़ उपजता है । इमे कनाड़ोमें पेरिकट और जस्पीश नामसे प्रसिब हुए है। जलीरा देश। सिंहलमें घेरल कहते हैं। इसके फल में गूदा बहुत होता | सम्भवतः यह स्यान भगदत्त गोय प्रागज्योतिप है और उसकी तरकारी बना कर खाई जाती है। यह | राजाओं के अधिकारमें था। ईसाको वीं सदी में भी हम रुद्रासके पेड़मे छोड़ा, पर उससे मिलता जुलता होता भगदत्तशोय कुमारराज भास्करयर्माको यहाँके पशि है। प्रासामके लोग इसके फलको खूब पसन्द करते हैं। पति पाते हैं। परन्तु उनके बाद इस प्राप्त का राज्य किसने जलपाईगुड़ी-१ बङ्गाल प्रान्तका एक जिला । यह पक्षा० किया. इसका कुछ पता नहीं चलता। मभर है परयों २६ तथा २० उ. पोर देशा० ८८२० एवं ८८.५३ | कामरूप वा गोड़के राजाओंने जनाईगुड़ो का मामः ।। प्र०के मध्य प्रवस्थित है। क्षेत्रफल २०३२ वर्गमोल किया हो । किन्तु पहले यहां सिर्फ असभ्य लोग हो रहते । है। इसके उत्तरमै दार्जिलिङ्ग एवं भूटान राज्य, दक्षियमें थे और कभी कभी जल्पीश महादेव के दर्शनार्थ कुछ दिनाजपुर, रङ्गापुर तथा कोचविहार, पथिममे दिनाज | उच्च जातीय हिन्दुप्रोका आगमन होता था। पुर, पुरनिया एवं दार्जिलिङ्ग और पूर्व में सझोस नदी है। किसोका मत है कि, पहले यहां पृथ्वी राय नामक भूटानकी ओर पर्वतके पाददेशम प्राकतिक दृश्य अतोय किती राजाका राज्य था । कोचक. जातिने श्राफर मनोहर है। कई नदियां पहाडसे निकल करके प्रायो। उनको रोजधानो पर आक्रमण किया । राजाने पममा... है। यहां तांबा पाया जाता है। जङ्गली हाधी, भैसे, के अधीन रहनेको पपेवा मथ को थेय . समझा पोर गैंड, चीत, सूअर, भाल और हरिण बहुत हैं । सरकार रजप्रासादके मध्यस्थित एक दोघि कामें कूद कर अपने को तर्फ से कुछ हायो पकड़े जाते हैं। प्राण गमा दिये। इस समय उक्त राजधानीका कुछ मग यहां मलेरिया, मोहा, यकृत् भोर उदारामय ये रोग | योदा और कुछ संग बैकु गठपुर परगनके अन्तर्गत है। प्रधान है। पार्वत्य प्रदेशमें गलगण्ड रोगको प्रबलता भय चार परिखा और चार प्राचीरो निर्दशन मात्र है। ' . है। वसाके मेनानियासके देशीय सैनिक सर्वदा शीतादि | प्रथम परिखाको पाचोर मिट्टो को है, उमको नम्बाई '.. रोगगे धाकान्त होते हैं। बहुतों का अनुमान है कि, दोघ करीब ७००० गज पौर चोड़ाई ४००० गज है। जगह व्या वर्षाकालमें ताजे फलमूलादि न मिलने के कारण जगह टूटी हुई ईटें भी दोष पनो है। वहुताका ही यह रोग होता है। फिलहाल यहां हैजाका भी। अनुमान है कि ये ईटें देव मन्दिरादिका को भग्ना- .. वशेष है। प्रकोप होने लगा है। इमके सिवा संन्यामोकटा नामक तालुकम भो कुछ ____ जन्तपाईगुड़ो जिले में सब जगह पन भो लयणका | भग्न मन्दिर हैं। इन मन्दिरों के सम्बन्ध प्रवाद नि, .. व्यवहार नहीं होता। प्रायः सभी लोग एक प्रकारका वर्तमान रायकतयगर पादिपुरुष गिरादेव घा गिव. . पारजल काम लाते हैं, जिसको वाक लोग "हेका" कुमारने यहां दो किम्लों का बनवाना शुरू किया। किन्न । कति है। को भीय पोदने के ममय जमोमसे एक मन्यापो निशम् । .. इतिहास-जलपाईगुड़ोके माचोमतम इतिहासके , संन्यामो ममाधि थे। बोदनेवाले ने बिना जाने उनके विषयमें यिप वर्णन नहीं मिलता। कालिकापुगणके शरीर पर पम्ताघात किया था। परन्तु धान मन होने . पढ़नेगे जात होता है यह स्थान पूर्य कालमै कामरूप मन्यामोने उनने कुछ न कदा, करने लगे कि "मुझे राज्य के पन्तर्गत था। या िनम्पोश नामक महादेवका पुनः नमोनम गढ़ दो" मरने उनका पादेश पानम पियरप्प भो कालिकापुराणमें पर्णित है। किया। गिरदेवने वर्धा एक मन्दिर धनपा दिया । रवी (कालिछ• ४५.) उस स्थानका नाम 'मन्यामी कटा' पड़ गया। जलपाईगुड़ी माम के मे पहा, यह भी मानम नहीं कोचविधारक यधार्य इतिहास मायनों बनवाई... को ममता। हां, इतना पक्षम्य कहा जा सकता है। गुड़ीके यधार्य इतिहासका मारम्भ होता है। . ..