पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/१३५

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१२२ नलपाईगुड़ी '१६८७ ई० में उनका गरोरान्त हो गया। उनके ममयो । होरायकत होने की बात थो, किन्तु पिताको मृत्यु हो रायफत वगको घरम उन्नति हुई थी। किन्तु उनको अव्यवहित काल पयात् उनका जन्म हुमा था: मलिए .. मृत्युके बाद ही मुगलों के अत्याचारसे वैकुण्ठपुर राज्य | राजपरिवारने भूपदेवके मध्यम सहोदर विक्रमदंषको ... करद हो गया। रायकत बमाया। इनके समय में भी भूटानियोंने घनसा भुजदेयके कोई पुत्र नहीं था। उमके याद यज्ञ स्यान अधिकार कर लिया और अत्याचार करते रहे। . देवके दो पुत्र विशुदेव और धर्मदेवने ययाक्रममे राय १७५८ ई० में विक्रमदेवको मृत्य हो गई । मते समय कत पद प्राप्त किया। वे एक पुव छोड़ गये थे। इनके माथ. रायकोंकी १५८७ ई० में विशुदेव रायकत हुए। दमके कुछ स्वाधीनता लुम हो गई। पूर्ववर्ती रायकाने गाम दिन वाद हो ढाकाकै सूवेदार इब्राहिमखाँके पुत्र जवर. | मात्रके लिए मुसलमानों को भधोनता स्वीकार की यो दस्तग्यांने वैकुण्ठपुर के दक्षिांश पर धाया किया। राज्य सम्बन्धी सभी वातमि उनको मापूर्ण स्वाधीनता विशद य विलासी और एग्पोक थे, युद्ध विना किये ही प्राम यो। किन्तु इष्ट इण्डिया कम्पनी के दिनोखरगे यहा में कर देने के लिए राजी हो गये । कुछ दिन बाद भूटा- लकी दीवानी पास करनेके वाद में फुगठपुरक राजा भी गर्क रानाने भो मुगलों के अाक्रमणके डरमे पूर्व शता, टिश गवर्मेन्टके अधीन हो गये। . भून कर ये कुण्ठपुर और कोचविहार राज्यमे मेल कर | ___विक्रमदे वर्ष बाद उनके छोटे भाई दर्पदेय राय लिया। फिर तीनों शक्तियों ने मिल कर मुगलोंम युद्ध | कत हुए । इनके समय में राज्य के नाम पर देवराज किया। मुगलने विपक्षक मैनिकों के सिर काट कर एक और दक्षिणाश पर महम्मद अलीने प्राक्रमण किया। जगह बाम पर लटका दिये । तयमे उस स्थानका "मुण्ड- राज्यको रक्षाके लिए दर्पसे बहुत लई, पर पन्तम ये माला नाम पड़ गया । और जहां मुगल सेना मारी गई मुसलमानोंमे परास्त हो धन्दो हो गये । पीछे अधिक कर थी. उन स्थानों का नाम "तुर्ककटा" और 'मुगलबाटा" | देनेको स्वीकारता दे मुसा हुए। इसके बाद ही वं. हो गया। हम युद्धम रायको की बहुत सेना मागे | सेना मझारमें प्रत्त हुए । देवरागने भी उनमे सन्धि गई, जिससे वे दुर्वल हो गये। मी ममयम मुगलोंने कर लो और उन्हें पूर्वाधिशम स्थान लौटा दिया। प्रसाद बोदा, पाटग्राम और पूर्व भाग पर दान कर लिया। है कि, देवराजने दर्पराजको सहायतामे कोचविहार १७०८ ई में गिरादेवकी मृत्यु हुई। उनके बाद | पर पाक्रमण किया था।१:०३ ई में योचविहार के जोष्टपुन चानक मुन्ददेव गजाभिपिश हुए ; किन्तु । नाजिरदेवमे देवराज पीर डन्डिया कम्पनीम मन्धि धर्मदपने पडयन्स रच कर मनोजेको मरया ना कर ली। उसके अनुसार देवराजने कोचविहार छोड़ पौर स्वयं राजा अधिकार कर रायकत हो गये। । | दिया ; किन्त दयंदेव रायकत उम गघड़के मुसकारण धर्मदेवके राजवकानमें ममलमान सोग पौर भी थे, इमलिए तयमे सिर्फ जमींदार गिने जाने लगे। पत्याचार करने नगे। इसी समय यं कुन्ठपुरका दलियांग कोनविदारके राजकार्य में हस्तक्षेप करनेका समको मापूनरुपमे मुमतमानक अधिकारमें चला गया। पधिकार न रहा। गन्धिके वाद हो देवरात्रके माय धर्मदे यने १७११ में अबरदस्तखकि माघ एक मन्धि | दर्पयका झगड़ा हो गया। देवराजको मातर करने फर ली घोर मुगीक अधिकृत ममम्त भूभागके लिए के लिए एट इण्डिया कम्पनीने धकुण्ठपुरको घसमो - पार देने को राजी हो गये। १०२४ ई में धर्मदेवकी जगह उन्हें दे दो। इममे दपदेश अत्यन्त पमबाट हो । मदन मोने पर उनके जाठपुर भूपदेव रायकत हुए। गये। उन्होंने युद्ध कर भूटानियों मे यहतमो भूमि कीम र दिन याद को उनके माध भूटान देवराजका सो। देवगलने यात व नामे कर दो। चयन झगड़ा हो गया। अध्यक्ष ने देवराजको मन्राष्ट कर निए, इन मांगे ... १०३५ में भूपदेषकी मृत्यु हो गई। उनके पुरके ! ए स्थान उन्हें दिये। अनेक अभियोगकि बाद .