पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/१३८

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मलपुष्ष-अलप्लावन १२५ जलपुष्प (म. ली. ) जालनात पुष्प'। १ पन प्रमति | अंशमै मपा वर्णित नोयाको जलनावमसे रक्षाको कया जलजपुष्य, अलमें उत्पन्न होनेवाले कमल प्रादि फल। सर्वजनप्रमिद है। २दलदलो भूमिमें होनेवाला एक प्रकारका पौधा । यह हमारे शतपथब्राह्मण, महाभारत तथा मम्य, भागवत, • लज्जातीसे बहुत कुछ मिलता जुलता है। पम्नि आदि पौराणिक ग्रन्थोंमें जलभावनको कथा जसपूर (म.पू. ) जलपूर्ण नदो, पानोसे भरो हुई नदो। वर्णित है। इनमेंसे शक्रयजुर्वेदीय शतपथनाहाएका जलपृष्ठजा ( म स्त्रो०) जलस्य पृष्ठे उपरि प्रदेश जायते. जगऽस्त्रिया टाप । जवान. सेवार । ___ शतपथमायण में लिखा है कि, एक दिन मनुने हाथ जलप्रदान ( म. ली. ) तादिभ्यः जलस्य प्रदान । मन धोने अलमें मे एक मझलो पकड़ी। वह मछली बोलो- या पितर प्रादिको उदकक्रिया, तर्पण । "मुझे यन पूर्व वा रक्खो। मैं तुम्हारी रक्षा करगी।" जलप्रदानिक (म' लो० ) जल प्रदान युद्धाहताना उद्दे। मनुने पूछा- "क्यों मेरी रक्षा करोगो? मछलीने शेन जलप्रदान छन् । स्रोपर्वके अन्तर्गत जलपदानिक उत्तर दिया-"जलप्लावनमे सभी जीव-जन्तु बह जायंगे, 'पर्याध्याय। उस समय मैं तुम्हारी रक्षा करूंगी।" जलपपा (सं. खो० ) जलस्य जलदाना प्रपा । जलदान. इसके उपरान्त मछलीने पहले एक मिट्टी के बर्तनम का यह वह स्थान जहां सर्व साधारण को पानी पिलाया । फिर सरोवरमें और उससे भी बड़ी होने पर समुद्र में छोड़ "जाता है, पोमर, मनील। देने के लिए कह दिया। इसके बाद कुछ ही दिन पोछ जलप्रपात (म' पु०) जलपतन । नदीका स्रोत गिरिशृङ्गा वह मछली बड़ो हो गई और मनुको सम्बोधन कर - में मुह हो कर जल प्रबल वेगमे ऊँचे स्थानसे नोचेको कहने लगी-"इन कई वर्षों बीत जाने के उपरान्त गिरता है. इसीको जलप्रपात कहते हैं। प्रधान शम्दगें । महाशावन होगा। एक नौका बनामी पौर मेरी पूजा विस्तृत विवरण देखे। करो। जब जल बदने लगेगा, तब तुम उम पर बैठ जलप्रान्त (स.पु.) जलस्य मानाः, तत्। जन्लका | नाना। मैं तुम्हारी रक्षा करूंगी।" मछली के कथनानु : 'ममीप स्थाना जलाशय के प्रासपामको जगह। मार मनुने नाव बनाई मस्तीको समुद्र में छोड़ दिया जलपाय ( स० को०) जलस्य प्रायो बाहुल्य यत्र । जल और उसकी पूजा करने लगे । पृथ्वीमण्डल जलसे सावित बहुलस्यान, अनुपदेश, जहां जल पधिकतामे हो। हो गया। मनुने मक्लोके सींगसे अपनी मावको रस्सी जलप्रिय (सं० पु.)जन प्रिय यस्य । १ घातकपचो, बाँध दी। नाव उतरगिरि (हिमालय )के ऊपरसे बहने पोहा । २ मस्य, मछलो। ३ धाया। ४ हिल लगी। अन्तमें उन म राजने एक नमे नौका योधन मोचिका । (त्रि.) ५ जो जल बहुत चाहता हो। को कहा और खुद भी जल के साथ नीचे चली गई। नरालय (म पु० ) जले प्रवते हु मच ।' जलमकुन्न, जद मनुन हदसे नावको बाँध कर चारों ओर देवा. कि, "बिन्लावा , सभी जीव जन्तु पानीके श्लेमें बह गये हैं। मिर्फ में अन्नसावन (सको• ) जलस्य सायन, नत् । १ बाढ़, ही बचे है। प्रजाको सटिके लिए उन्होंने यज और पानीमे किमो एक देशका डूब जाना, जैयेनदीको तपस्याम मन लगाया। पहले एक स्त्रो उत्पन्न हुई, उमने बाद । २.प्रलयविशेप, एक प्रकारका प्रलय जिससे महा मनुके पास पा कर कहा-"मैं आपको कन्या है।" हेश मादि ममस्त हो पानी में न जाते है। उसके साथ मनुने महयाम किया, फिर ये मजाको __ जगतमें कितने बार इस प्रकारका जलप्लावन हुमा इच्छामे याग यज्ञ करने लगे। उस स्त्रीमे मनुको सन्तान है, इसका कोई ठीक नहीं। प्रायः सभी ममा जातियों में की प्रामि हुई। यही पुत्र फिर मानव नाममे मसिहमा • जलमापनका प्रसाद प्रचलित है। उनमें से हिन्दू शास्त्रीय महाभारत में लिखा है-मनु एक दिन नदी के किनारे

येषत मनु, पारमिक शास्त्रीय न और बाइबल के प्राचीन तपस्या कर रहे थे, इस समय एक मझलीन था कर

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