पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/१४०

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नलप्तावित-जलभाल । १२० इसकी वास्तविकताको परीक्षा की जा चुकी है। किन्तु | जलबन्नु ( म० पु० : जल बन्धुय स्य, बहुबो । मत्स्य, यादवलमें जो समस्त विषप्लावित होनकी बात लिखी मछली । है, यह ठीक नहीं जचती। वास्तव ने समस्त विश्व | जलयालक ( मपु०) जनन बलयति जीवयति स्वायित- सावित नहीं हुपा था, किन्तु उ8 जनमायनसे एगिया नादीन् । जलं बाल इव यस्य वा. वल णिच-गान । का अधिकांश और य रोपका किञ्चिदंश मान सावित विध्य पर्वत, मिथ्याचल पहाड़। हुआ था। इसी प्रकार भूतत्वविदोका यह भी कहना जलवालिका (सं. स्त्रो०) जलस्य बालिकय । विद्य.न. है कि, सार्वभौमिक जलमावन एक समय में हो ही नहीं। विजली । सकता। क्योंकि सार्वभौमिक जलप्लावन होनसे समम्त जलबिन्दुजा (ग'• स्त्री०) यवनाल शर्करा नाम्को दस्ता. जगत् एक तरहसे नष्ट ही हो जाता है। पुरातत्वविद् वर। इमे फारसौमें गोरखिम्त कहते हैं। मण कहा करते है कि, पुराणादिमें जिप्स जलशावनको जलबिम्ब (म• पु० की.) अन्नस्य बिग्धः। जलधुवुद, कथाएं पाई जाती है वही यांशिक जलभावन है। । पानोका बुलबुला। माल मोता है इसीलिए भित्र भित्र देशवासी जल जलबिल्व (१०) जलप्रधानो विल्व ५। १ कट, सावन के बादसे नाव बांधनेके मिन मित्र स्थानोंका निर्देश केकड़ा।२ जलचत्वर, वह देश जहाँ जल कम हो। विया करते हैं और इसो लिए पुराणीम हिमालय भोर | जलवुवद (सं.की.) जलस्य बुदबुद, ६ जनविम्य, बायसमें भाराराट पर्वत निर्दिष्ट हुधा है। हिमालयके पानौका बुल्ला, बुलबुला। जिम स्थान पर मनुकी नाव बाँधी गई थी, अब वह बलत (हि.पु.) एक प्रकारका घेता यह जलाशयोंकि स्थान नौबन्धनतीर्थ के नाम प्रसिद्ध है। काश्मीर के निकटकी भूमिमें पैदा होता है । इसका पेड़ लतामा मौलमापुराणमें भी नीबन्धनतीर्थ की कथा वर्णित है। होता मी पत्ते बांसके सटग होते । इसमें फल काश्मीर के कोसनाग नामक अति उच्च पर्यतशिखर पर फल नहीं लगते हैं इसके छिन्न किरो वारसियां वैच यह नौबन्धन तीर्थ धवस्थित है। अब भी बहुतसे यात्री | इत्यादि बनो जाती हैं। बफको भेद कर उस तीर्थ के दर्शन के लिए जाया जलयाहो (मं स्त्रो०) जले ब्राह्मी व १ हिलमोचो करते हैं। शाक, हुरहुर साग । २ वाकुची। जैनोंके तत्वार्थ सत, गोम्मटमार, पिलोकसारादि सभी | जन्नभंगरा (हिं. पु०) पानो या जलाशयोंके किनारे प्राचीन धर्म ग्रन्थों में लिखा है कि, समस्त पृथिवीका होनेवाला एक प्रकारकका भगरा। कभी भी प्रलय नहीं होता, प्रत्युत भरतक्षेत्रमें ( प्रथम. जलभंवरा (हि. Yo ) कालेरं गका एक कोड़ा। यह विगीकालके अन्त में ) ही, वह भी खगड़-(प्रसम्म ण) | न्म पानी में बहुत तेजीसे दौड़ता है। कोई कोई इसे भंवरा प्रलय होता है। सडप्रलय शब्दमें जैनमतानुसार देखें।। भो कहते हैं। जलसावित (स त्रि०) जलन सावित, ३.तत् । जलम जनभाजन (सं० लो०) जलस्य भाजन, ६ तत् ! जलपान, मग्न, पानोमे तर वतर। पानी रखनेका बरतन। जस्तफल (0 ली.) जलनात फल। गाटक, सिंघाड़ा। जलभाल (हिं० पु०) पाठ या नी हाय लम्बे आकार का अलवन्ध (सं. पु०) जल बध्नाति जीवनवत्यै निवन्धेन एक जैतु । यह सीलको नातिका होता है। इसका मास परिकल्पयति बन्धःपच् । मत्स्य, मछलो। शरोर लम्वे लम्बे वालोंसे ढका रहता है। यह सडोंमें अलबन्धक (म पु० ) जल वनाति बन्ध राखु ल । जन- रहता है। इसका मिर्फ एक नर ७०-८० मादायक स्रोतके प्रतिरोधक दायशिलादि निर्मित मेत, पत्थर महो । झगड़में रहता है। यह पूर्व तथा उत्तर-पूर्व एगिया धोर पादिका बाध जो किसी जलाशयका जल रखने के लिए प्रशान्त महासागरके उत्तरीय मागोमें अधिकतामे पाया बनाया जाता। जाता है।