पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/१४४

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जलव्यंघ-जलत होम और नप करनेसे उता दोषोंकी शान्ति होती है। जलस स्मार (स.पु.) १ धोना, पधारमा १२ मुरदेको (वृहत्स० ४६ म०) । पानोमें वना देना। स्माग करना, नहामा। जलव्यय (म'पु. ) मत्स्य विशेष, एक प्रकारको मछनो। जनसन्ध (स.पू.) तराष्ट्र के एक पुत्र इन्होंने साथ.. जलव्यध ( म० पु. ) जन विद्यति व्यध-अच् । कद्दोवोट किके माय भोषण दुर कर तोमरके प्राधातसे उगको 'मत्स्य, क'कमोह या कोपा नामकी मछलो। | बाई भुजा देद दी थी। पन्त, साताकिके हाथमे हौ जलव्याघ (मपु०) दक्षिण सागरमें सेटलैंड सके ये मारे गये थे। (भारत 198 ) पास होनेवाला एक प्रकारका जन्त । यह सौलकी | जलसमुद्र ( स० पु०) जलमयः समुद्रः। लयाणादि सात जातिका होता है। यह बहुत कुछ जलभान्त में मिलता। समुद्रमिसे अन्तिम समुद्र। जुलता है, किन्तु इसके शरीर परके बाल ललभात में मममरस (म' लो.) मलमेन स । सरीवर विशेष, कुछ छोटे होते हैं। चीतको तरह इसके शरीर पर भी एक तालान । दाग या धारियां होती हैं। यह बड़ा कर और हिंमक जलसर्पिणी (स. स्त्री०) जन सर्पति गच्छति सप. यिनि-डोप । मलौका, लोक। अलष्याल (म0पु0) नसस्थितो व्याला हिंस्र जन्तुः। जलसा (अ.पु.) १ किमो उपलक्षमें बहुत से मनुष्यों का १ अलगद सर्प, पानी मेंका मांय ! २ रकर्मा जलजन्तु । एकत्र होना जिसमें साना, पीना, गाना, बजाना, नाच जलशय (निपु०) जले शेते गे प्रच् । विष्णु। रंग और श्रमिक तरहके आमोद प्रमोद किये जाते हैं। जलगयन (4. पु. ) जले सोरोदसलिम ते शोल्य ८ २ सभा समितिका बड़ा अधिवेशन इसमें सब साधारण जल गयन यस्य वा । वि। ! सम्मिलित होते हैं। जलशय्यो-एक प्रकारके संन्यामी। ये लोग सूर्योदयसे जलसिंह (म' पु०) अमेरिका पौर एशियाके बोध कमम. लगा कर सूर्यास्त पर्यन्त पारीरको पानी में रख कर करका :पदीप तथा का रायन्न प्रादि दीपोंके पास पास ' तपस्या करते हैं । ऐमी तपस्याको जलगय्या और उसके | मिलनेवाला सीलकी जातिका एक प्रकारका मनजन्तु । पालक तपस्वियों जलशय्यी कहते हैं। विशेष विवरण मलहस्ती सन्दर्भ देखो। जलधारातपस्वी देसो। जन्नसिरस (Eि. पु.) एक प्रकारका सिरम वृक्ष । यह जलगायो (सं० पु.) जले शेते शो-णिनि । विशु। जलाशयके समीप पंदा होता है। कहीं कहीं इसे टाटीम जलशिरीष (म' पुष-स्त्रो०) शिरोपभेद, टिंदिणी। भी कहते हैं। जनशक्ति (म स्त्री० ) जलचरी: शतिः । शम्बूक, धौधा । जलसीप (हि. मो.) एक प्रकारको सीप जिम में मोती इमक पर्याय-धारिशक्ति कमिशति, तुलिका, गायका, होता है। मरपति, मुटिका और तोयशक्तिका है। इसके गुप- जन्नसूकर (म'• पु.) १ कुंभीर । २ जंगली पर । काट, निग्ध, दीपन, गुस्मदोप और विपदोषनागक, जलस्यि ( सं• पु०) जले सुचिरिय अभिधानात पुस्त। रुचिकर, पाचक तथा वस्तदायक है। १ का नोट मत्सर, क कमोट या कोचा नामकी महलो। मनशचि (म.पु.) शृनाटका, सिंघाड़ा। | २ शृङ्गाटक, सिघाड़ा । ३ शिशमार, स्' । ४ क्रौञ्च जलशूक (स.की. ) जलेशूक सूक्ष्माग्रमिय । शंघाला : पक्षी (स्त्री) ५ जलौका, जोक ! ६ काफ, कीमा। सेवार। ७ कप, कापा। मलशूकर ( स० पु.) जलस्य शूकर इव । कुम्भीर, कुंभीर जलसूत (स.पू.) नारुपा रोग। या नाक नामक जलजन्तु । | जलमेनी (म. पु०) मसाविशेष, एक प्रकारको महती। जलश्यामाक (स.पु. ) धान्यविशेष, एक प्रकारका जलस्तम्भ ( स. पु०) एक नैसर्गिक वा देयो घटना, घाना । मूहो। म नमोय वाप्प सभाकारमें दिखाई देता