पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/१५०

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मलात क्यों न हुआ हो-थोड़े स्थानके विषाक्त होने पर भी हो बढ़ने लगते हैं। पहले पानी देखते हो उसकी मांस यह रोग पैदा हो सकता है। सभी पशुको लार एकसो बन्द हो जाती है, पोछे पानोका नाम याद पनि या विषैली नहीं होती। क्षिप्त कुकुरको अपेक्षा क्षिप्त | एक पात्रमे टूमरे पावमें पानो टालनेका शब्द सुनते हो ध्याघ्रको लार कहों अधिक विषाक्त होती है। एक | उसे माल म होने लगता है कि उमको दम बन्द होतो कुत्तेने २१ पादमीको काटा था, जिनमें से एक आदमी भाती है । पन्तमें ऐमा होता है कि, वह पानोको नरह को जन्लातङ्ग रोग हुआ और एक व्याधने १० आदमोको चमकनेवाले किसी भी धाके पावको देख कर मृत्य- काटा, तो १० आदमी जलातभर रोगसे यमराजके घर कालीन वासरोधको यन्त्रणाका अनुमव करने लगता है। पहुंच गये। पहले किमों चीजके पोते या खाति समय शिरा-कर्यगा ____ यह रोग पानी पर ही अधिक आक्रमण करता | होता है, धोरे धीरे यह साइविक उत्तेजनामें परिणत मनुष्य बहुत थोड़े ही इस रोगसे प्राकान्त होते हैं। हो जाता है। रोगी सर्वदा अस्थिर और भयमे विस शरीरके भीतर क्षिप्त माणोकी लार प्रविष्ट होनेके | रहता है उमको प्रति चारो तरफ घूमती रहती हैं और बाद सभी के एक ममयमें जलातक रोग प्रगट नहीं। वह बराबर घंटसट बकता रहता है। रोगको दक्षिके होता । क्षिप्त प्राणीके काटने के उपरान्स किसीको सोलह । माय उसका शारीरिक पाक्षेप ( कंपकंपो ) भी बढ़ता दिनमे, किमीको अठारह दिनमै और किसी किस | रहता है। यति मृदु शब्द, और तो क्या निवाम के अठमठ दिनमें जलातक रोग होता है। लालाके प्रधेशो शब्दमे हो उसका पिता कण उत्तेजित हो जाता है, करने के बाद कब यह रोग होगा धमका कुछ नियय नाड़ोको गति द्रुत हो जाती है, गिर:पाडा पोर भोग्न नहीं। हो, साधारणत: यह देखनमें पाता है कि. ३० भाषाको मात्रा बढ़ जातो है। नमाधिक्य प्रयुक्त रोगोको और ४० दिन के भीतर इस रोग के लक्षण दिखाई देने । निश्वास क्रिया कक जातो , इमलिए रोगी जी पहले से लगते हैं। किन्तु कही कही १८ मास बाद भी इसका ही खासरोधका अनभव कर रr.उसकी माat भी प्रकोप होते देखा गया है। कोई कोई कहते हैं कि । बढ, जातो है।इम कष्टसे परिमाण पाने और सुचारु वित प्राणीके काटने पर यदि किमो तरहको भौषधिका | रूपसे निवाम ग्रहण करनेके लिए रोगी खाममा प्रारम्भ प्रयोग न किया जाय ; तो दो वर्ष विना बीत इसका भय ! करता है, तथा कर्कश और उस शब्द करता है। मो. दूर नहीं होता। ऐमा सुना गया है कि, काटनेके उप. लिए लोगोंको धारणी भो हो गई है कि, रोगोको जो रान्त बारह वर्ष पीछे कोई कोई व्यशि इस रोगसे जानवर काटता है वह उमो जानवरको तर भौंकने पाक्रान्त हुए हैं। सगता है। बड़े भारी परियम करने के उपरान्त लोग ___ कोई शिर मापीहारा दंशित होने पर यह आरोग्य | जिम तरह निद्राभिभूत हो नासे , जतात रोगो भो साम कर सकता है, यह कोई प्रमाध्य रोग नहीं है। पन्तिम कई एक घण्टे तक उसो तर मोसा पोर जतातडके लक्षण प्रकट होने से पहले क्षत स्थान फल / कोई कोई रोगी सोता भी नहीं, तो वह चुपचाप पड़ा कर लाल हो जाता है, और बड़ी वेदना होती है। उस ! रहता है। इस नोंदसे उठते ही पहले से कुछ मृदु भाव- स्थानको तमाम नाम इस तरहका दर्द होता है कि, | में उसका कण्ट अथषा सारा शपर कांपता हैमिके मानो सभी स्थान विपम इतम परिणत हो गया हो। बाद ही वह मर जाता है। पोछे रोगीको सिरको पोड़ा होती है, उसका शरीर जलाता रोगसे आक्रान्त होने पर रोगो दिन हमेशा प्रसस्थ रहता है, भूख नहीं लगती पौर किमी अधिक नहीं जीता, माधारणतः २४ घण्टे के भीतर ही भी तरल पदार्थ देखने से पापौर भय उत्पन्न होता है। उसोको प्राणवायु निकल जाती है। ऐसी दशामें ममझना चाहिये कि, गेगी जलातन्मे जमात रोगो कठिन से कठिन पदार्य को भी मान- पीड़ित है। ये लक्षण एक बार प्रकाशित होने पर शोघ्र में खा जाता है। विशोके दारा काटे ए जलाता ____Vol. VIII, 35