पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/१५८

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१६३ जलावर्ग पूर्णवर्त उत्पन्न होता है इसमें विशेषता यह है कि प्रवाहको परस्परकी किया हारा उत्पन्न होते हैं । परन्तु इसका मोत पर्यायकामसे ६ घण्टे तक उत्तर दिशासे | वहाक जलायत्त माटजनक नहीं होते । उक जलावत प्रवाहित हो कर फिर ६ घण्टे दक्षिण दिशामे प्रवाहित एक काठका टुकड़ा या बहुतमे टण डाल देनेसे अत्त. होता है । चन्द्रो उदय और पस्त के साथ स्रोतकी गति | की पूर्णायमान गति रुक कर यहाँका पानी महज धव भी पर्यायक्रमसे परिवर्तित होतो है। जिस समय मन्द | स्थापन्न हो जाता है । इसलिए यदि नौका पर चढ़ कर मन्द हवा चलती है, उस समय जहाज प्रादि पर सवार | यहाँसे जाना हो, तो पहले उप्त जगह काठका कहा हो कर इस जगह जानेमे विशेष कुछ अनिष्ट होने की तो या बहुतमे ण डान्न कर निर्विघ्नामे आ सकते है। सम्भावना नहीं, पर पानी के माथ माय लहाजको घूमना नदीम जो जलावत होता है, यह माइलाकार अवश्य पड़ता है। जिस समय प्रवल वेगमे वायु चलती) प्रवाहित होता रहता है। नदीजल के स्तर के किसी हो म ममय यदि कोई छोटे अहाज या नाव पर चढ़ प्रशके नत होने पर अयवा सोर्ण होने पर स्रोत कर वहां जाय तो वह इवे विमा नहीं रह सकता और नदो रेखाके साथ समान्तगल अवस्थामे नहीं जा सकता, यदि जहाज खूब बड़ा हो, तो वह तरङ्ग और मोतके | प्रत्युत असरल भावसे मध्य की पोर परिवर्तित हो कर वेग स्टलो देशके उपकुलको तरफ चला जाता है और मगइलाकारमें प्रवाहित होता है और नदी के ऊपरी भाग वहां पहुंचते न पहचते सिफला नामक पर्व तमे टकरा का पानी तटरा प्रतिष होता है। यह तार कर उसका जकमाचर हो जाता है। असमान्तराल स्रोतका पानी भिन्न भिन्न जल हारा चालित धमते हुए पानीके धात प्रतिधातस तरह तरहके | होता है। इस वकरी खिश गति के कारण स्रोतमे मध्या- ' शब्द उत्पन हुआ करते हैं। पेलोरो पन्तरीके पासके | पमारी गति उत्पन्न होती है, इसलिए प्रावत के केन्द्र पर्वतये टकरा कर वहांका पानी कुत्ते के भी कनेके समान स्थलका पानी नदी के अपरी भाग पानोके ममान सम. सध्द करता है। इसी लिए शायद यूरोप के लोगों में ऐसो तल नहीं होता। कहावत प्रसिह है कि, पेलोरी अन्तरोपके पास एक कल्पना करो कि, किमो मदीका निम्नस्तर क्रमश: राक्षसो वसि जानेवाले सलाहों को खाने के लिए- सचित हो रहा है, अब उस स्थानके एक पारमें क कुछर और व्याघोस परिवेष्टित हो कर सर्वदा वहाँ रहा। विन्दु और दूमरे पारमें ख :विन्टुको मोर उसके पास करती है। .. पास जहां नदी मन्यन्त स्तमायतन हो वहाँ के खं 'नौरव उपफूलवर्ती जन्नराशि एक प्रबन्तवेगयुस । बिन्दुको कल्पना करी। नहीको प्राक्कति पीर स्रोतको प्रवाहके हारा पर्यायनमय दक्षिण और उत्तरको तरफ गतिमे तट के क क महाश कुछ अगों में जलका प्रमाहित होतो है, वह प्रवाह वाय द्वारा प्रतिबद्ध होने | प्रवाह प्रतिरह होता है, निकटवत्ती जनको अपेक्षा पर भीषण शब्द करता है, जो समुदसे बहुत दूर तक अधिक मचा हो जाता है और यही प्रतिक्षिम हो कर सनाई पड़ता है। इस पूणीयत का नाम मेलट्रम है। कैग की तरफ चालित होता है। अनके माधारण वायु का प्रकोप न रहने पर वहां जहाज आदि निरा धर्मानुमार क ख स्थानके पानी के बैंको अपना सूक्ष्म पदसे जा-मा सकते हैं। परन्तु प्रधन वाग रहने पर रखण्ड के पानोका वेग ज्यादा होता है। क ग ग स्थान. जहाज भादिको बचा कर ले जाना चाहिये। अन्यथा | का पानी क के ग को तरफ धावित होता है पोर य सोतके वेग या भंवरमें पड़ कर खून जानेका पूरा पूरा | स्थानमे पानी वहां पाता है। इस तरह क ग की तरफ भय है । उस स्थान के पानी का वेग इतना ज्यादा होता एक स्रोत प्रवाहित होता है और घविन्दमे गक पौर है फि, कभी कभी सिमि और अन्यान्य मच्छ मरे हुए ग से कर्ग को तरफ पानी जाता पाता रहता है। म उपकूलमें देखे गये हैं। . . विभिन्न प्रभारी स्रोतके घात प्रतिवातसे जलरागि मण्ड. - पनो उपदीपोंके. बोचके जनायत्त , वायु .पौरसाकार घायमान होती है। इस प्रकारमे नदीक