पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/१६

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जन्मतिथि-जन्मपत्री · गुग्गल, नीम के पत्ते, सफेद सरसों, दूब और गोरो ज्योतिषक मतसे स्वीस सर्ग परित्याग और यथाविधि चना, इनका एकत्र पुट बना कर- स्नान करनेसे प्रभोष्ट सम्पद प्राम. होती है । ब्राह्मणोंको . "लोक्ये यानि भूनानि स्थावराणि चराणि च । | मत्स्यदान करने और जोवित मत्स्य पानोमें छोड़ देनेसे ब्रह्मविष्णुशिवः सार्द्ध रक्षा कुर्वन्तु तानि मे || आयुको हधि होती है। इस दिन जो सत्तू खाता है, इस मन्त्रको पद कर दक्षिण भुजामें जन्मग्रन्धि वा उसके शत्रु ओंका क्षय, तथा जो निरामिष भोजन करता रमाग्रन्यि धारण करना चाहिये। है वह दूसरे जन्ममें पण्डित होता है। जन्मतिथि के दिन निताकियामे निमत्त हो कर स्वस्ति । हिन्दुओंको तरह स'सारको अन्यान्य प्रधान जातियों में वाचमादि पूर्वक "अद्येयादि जन्मदिवसनिमित्तकगुर्यादि। मो देशमें प्रचलित प्रथाके अनुसार जन्मदिनमें उत्सव पूजनमहं करिष्ये ।" अथवा "अद्येत्यादि शुभवर्षस सकलमंगल ! हुमा करता है, जिसे वर्षगांठ मनाना कहते हैं। 'सम्पलितदोघीयुष्यकामो मार्कण्डेयादिपूजनमहं करिष्ये" | जन्मद (स' पु०) जन्म ददातोति जन्म-दा-क। पिता । इत्यादि रूपमे म कल्प कर गणेशादि देवताओंकी पूजा जन्मदिन ( स ली. ) जनमनो दिन दिवस । जन्म. करने के उपरान्त, गुरु देव, अग्नि, विप्र, जन्मनक्षत्र, पिता, दिवस, वह दिन जिसमें किधीका जनम हुआ हो, य. मासा भोर प्रजापतिकी यथाविधि पूजा करनी चाहिये। गाँउ | जन्मतिथि देखो। "द्विभुजं जटिल सौम्ये सुद्धं चिरजीविनम्। जन्मनक्षत्र (स० को०) जन्मनी नक्षत्र । जन्म समयका दण्णाक्षसूत्रस्तच मार्कण्डेय विचिन्तयेत्।" (मार्कण्डेय यान) नक्षत्र । गोपयेजन्मनक्षत्रं धनसारं गृहे मलं" ( विष्णुध०) उत प्रकारसे मार्कगड़े यका ध्यान कर "ॐ मां मार्कण्डे. मन्मनक्षत्र किसीको कहना नहीं चाहिये । ज्योतिपके • याय नमः" इम मन्त्री पूजा करनी चाहिये, फिर मतसे जन्मनक्षत्र में यात्रा और नौरकर्म निषिद्ध है। "को भायुःपूद महाभाग सोमवंशसमुद्भव । विपाधोत्तरमें लिखा है कि प्रतिमास जनमनक्षत्रक महातप मुनिश्रेष्ठ मार्क देय नमोऽस्तु ते ॥" दिन यथाविधि मान कर चन्द्र, जन्मनक्षत्र, अग्नि, समवसे पुष्पाञ्जलि देकर- विष्णु प्रभृति देवों और ब्राह्मणोंको पर्चना करनो "चिरजीवी यथा त्वं भो भविष्यामि तया मुने। चाहिये। रूपवान रित्ताधेर श्रिया युक्तश्च सर्वदा। जग्मना (हिं० कि०) १ जन्मग्रहण करना, पैदा होना, मार्कण्डेय महामाग सप्तकरसान्तजीवन। जनम लेना। २ आविर्भूत शेना, अस्तित्वमें पाना । आयुरिष्टार्थसियमस्माकं वरदो भव ॥" जन्मप ( स० पु० ) जन्म जन्मलग्न' पाति पाक। इस मन्त्र द्वारा प्रार्थना करना उचित है। इसके उप- १जन्मलग्नपति । २ जनमराशिक पधिपति। रान्त व्यास, परशुराम अखत्यामा, कृपाचार्य, वलि, जन्मपति (संपु.) १ जनमलग्न के स्वामो । २ जनमः महाद, इन मान और विभीषणकी पूजा कर "ओं पो राशिके अधिपति। षष्ठ्ये नम:" दम मन्त्री दधि और ग्रंक्षत द्वारा षष्ठीदेवीकी जन्मपत्र (स' की.) १ जनम विवरण, जीवनचरित। पूजा तथा “मातृभूतासि भूनानां ब्रह्मणा निर्मिता पुरा, सम्मनाः! पुत्रवत्कृत्या पालयित्वा नमोस्तु ते" इस २ कोठी, जन्मपत्री। ३ किसी वस्तुका पादिसे अन्त तसे प्रणाम कर। विशरणादिकी पूजा करनी चाहिये। बादमें पूजित तक विवरण। देवतापोको लक्ष्य कर तिलहोम करने के उपरान्त दक्षि- जन्मपत्रिका ( स० स्त्री०) जनमसूचकं पत्रकन टाप । पान्त और विष्णुस्सरमा करना चाहिये। कोष्ठी, जन्मपतो। . स्कन्दपुराणके मतसे जन्मतिथि के दिन नख केशादिका | जन्मपत्री (सं. स्त्री० ) वह पत्र जिसमें किसीको . कटवाना, मैथुन, दूर गमन, श्रामिष भक्षण, कलह और उत्पत्तिके समयके ग्रहाको स्थिति, उनकी दशा, अन्त. . हिंसा नहीं करना चाहिये। .. . ] था पादि दिये हों। ...