पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/१७८

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१६१ नहागौर भी हाथो पर चढ़ा कर वहां लाया गया । मार दिया गया। परन्तु पर्जुनमतको मृत्युके विषयमें शेख फरीदको पुरस्कार स्वरूप मुरताज खाँको उपाधि किम्बदन्ती इस प्रकार है कि. एक दिन वै चन्द्रभागा दी गई। विपासाके निकटवर्ती जिन जिन जागीरः । नदीमें मान करते करते अकस्मात् अदृशा हो गये। दारीने खुसरुको पकड़ने में सहायता दी थी, उन सबको । मिखों के मतले अर्जुनमल हो उनके थे और प्रथम फिर लागीरे माम हुई। इन जमींदारोमिमे कमाल | माणगुरु है तथा उनकी मृत्यु होने के कारण हो यह चौधरीके दामाद कनानने ही विशेष सहायता दी थी। शान्तिप्रिय सिख जाति संगम प्रिय हो गई है। सिखोंके चतुर्थ गुरु अर्जुन मल्ल ( प्रादिग्रन्य मकल समरूको दूरवर्ती किसी कारागारमें नहीं भेजा गया। यिता ) म पभियोगसे कि उन्होंने विद्रोही खुसरूको | बादशाहने उन्हें अपने साथ होरक्सा । धर्मवलमे वलीयान् किया-अभियुक्त हुए | आखिर । जहाँगीरने लाहोरमें हो मम्बाद पाया कि, फजन्न इनको भी निर्जन स्थानमें कैद कर मिशेष यन्त गाहारा | बासिमने कान्दाहार पर चढ़ाई की है। उन्होंने गाजो-

  • पंजाब के इतिहासदेषक सैयद महम्मद लतीफ कहते हैं | वेगकी प्रधानतामें एक दल सेना भेज दो। कुछ दिन :

कि, अशककी माता अपने बेटे की दुर्दशा देख न सकी और इसी बाद ये खिलजी खां, मिरन सदर और जहांगोर सरोक- दुःख उन्दोंने जहर खा कर भरने प्राण गमा दिये। अक के ऊपर लाहोरको रक्षाका भार दे कर खुद काबुलको पर नामाके लेखक यह लिझते हैं कि, मानसिंहकी बहन और तरफ चल दिये। पुरारूकी माता जोधायाई सलीम ( जहांगीर ) की प्रितिमा) १६.६.ई में (१.१५ हिजरा ) में बादशाह कानुन भार्या थी।रे अन्तपुरस्थ किसी भी स्त्री की प्रधानता नहीं सह की तरफ गये। जहांगोर दिलामेज सयान, चार सकती थी। एक दिन सलीम के शिकार खेलनेके लिए चले जाने | दिन ठहर कर हरिपुरमें आकर ठहरे। वहां फिर पीछे अन्तःपुरकी किसी स्त्री के साप जोधाबाई की कलह हो गई। जहांगीरपुरको पाये। यहां जहांगार पहले शिकार जोधाबाई इस अपमानको सहन सकी और अफीम सा फर | रखेला करते थे। इस ग्रामके पाम सबाट के श्रादेशमे उन्होंने भात्म हत्या कर ली। जहांगीर शिमरसे लौटे तो उन्हें | मृगको कनके उपर एक ममजिद नो थी। इम मृगको ओषापाई जीवित न मिली । इनके शोकसे जहांगीर बहुत दिनों | नहाँगीरने खुद पकड़ा था और इमो लिए वह उनका वक उदास रहे थे । साबिर असमरने भा कर पुनशे सान्त्वना | बहुत पार हो गया था। यह मृग अन्य मृगी को बहका दो दी। किन्तु जहाँगीर स्वरचित जीवनवृत्तान्तमें जोधायाईफीलाता था। मसजिदको दोवार पर मुहा महम्मद सुनती मृत्युका कारण पूरा ही बतलाते हैं। वे लिखते हैं कि, मेरे बाद लिखी हुई एक इवारत मिलती है-"इस मानन्दमय काह होने से पहले खुशी माता अपने पुत्र (सरू )के भनद । स्थानमें बादशाह नर-उद-दोन महम्मद द्वारा एक मृग व्यवहारसे अत्यन्त मर्माहत हुई और इसी कारण उन्होंने भीम पकड़ा गया था और वह एक महिने जुन हिल गया तालयावर मझे (जहाँगीरको) प्राणों या वह यादगाइका बहुत पारा था। जहांगोर पाारसे भी ज्यादा प्यार करती थी। और तोपा, वह मेरे एक केशके उसको राजा कह कर पुकारते थे।" कुछ भी हो बाद- लिए सैकडों पुत्रों और भ्राताओंको छोड़ने में जरा भी भानाकानी शाहने प्रवको बार यहां पाकर मोहये मृगके स्मरणारी म करती थी । वह हमेशा मुशरूको मेरे अनुग्रहकी बात कहती शिकारन किया। इन्होंने धीरे धीरे अग्रसर होकर जयन थीं, परन्तु अशक उनकी यात पर जरा भी ध्यान न देता था। खाँ कोकाके पुत्र जाफर खां को भामरादि और पाटकके पर देसार, पुनका परित्र किसी तरह भी परिवर्तित न होगा| सरकार प्रदेशका मामनकर्ता बना दिया पौर यह एकम हम नहोंने यह सोच कर कि शायद मेरे मरने पर शुश दिया कि, यादगाहो फोजके लाहोर मोटनमे पहलेहो भपनी भूलोंको पका है और सुधर जाय-मेरी अनुपस्थिति में ! खातरफे सदाको गालावर कर कैद कर दिया जाय। अपरिमित अफीम सा कर अपनी हल्ला कर साली । (१०१ सिन्धुनटके किनारे पहुंचने पर मावतावाची २५०० हिजरा, २६ शत्र) सेनाका पधिनायक बना दिया। . वादगाद पेशावर Vol. VIII. I प