पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/१८०

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महागौर भी हाथो पर चढ़ा कर यहां लाया गया ।* मार दिया गया। परन्तु प नमनको मृत्युक विषयमें शेख फरीदको पुरस्कार स्वरूप मुस्ताज खाको उपाधि किम्बदन्ती इस प्रकार है कि, एक दिन वे 'चन्द्रभागा दी गई। विपासाके निकटवर्ती जिन जिन जागीर । नदीमें मान करते करते अकस्मात् प्रहगा हो गये। दारोंने खुसरूको पकड़नेमें सहायता दी थी, उन सबको सिखोंके मतसे अर्जुनमल को उनके श्रेष्ठ भोर प्रथम फिर जागीर' माल हुई। इन जमींदागेमसे कमाल माणगुरु है तथा उनकी मृत्यु होने के कारण हो यह चौधरीके दामाद कनानने ही विशेष सहायता दी थी। शान्तिप्रिय सिख जाति संपाम प्रिय हो गई है। सिखोंके चतुर्थ गुरु अर्जुन माल ( आदिग्रन्य म कल खुसरूको दूरवर्ती किसी कारागारमें नहीं भेजा गया। यिता ) इस अभियोगसे कि उन्होंने विद्रोहौ खुसरूको बादशाहने उन्हें अपने साथ होरखा । धर्मवलमे बलीयान् किया-अभियुक्त हुए। पाखिर | ____ नहागोरने लाहोरमें हो मम्बाद पाया कि, फजल इनको भी निर्जन स्थानमें कैद कर विशेष यन्त्र या हारा वासिमने कान्दाहार पर चढ़ाई की है। उन्होंने गानो- ' पंजाबके इतिहासष्टेखक सैयद महम्मद लतीफ कहते हैं । वेगको अधोनतामें एक दल सेना भेज दी। कुछ दिन : कि, पुराहकी माता अपने बेटे की दुर्दशा देख न सकी और इसी बाद ये खिलजी खाँ, मिरन सदर और जहांगोर मरोफ- दुःखमें उन्होंने महर सा कर अपने प्राण गमा दिये। अक | के कपर लाहोरको रक्षाका भार दे कर खुद काबुलको पर नामाके लेखक यह लिखते हैं कि, मानसिंहकी बहन और तरफ चल दिये। शहकी माता जोधायाई सलीम (जहाँगीर ) की प्रिप्तमा १५०६.ई० में ( १०१५ हिजरा ) में वादशाह काबुल भार्या धीरे भन्तपुरस्थ किसी भी स्त्री की प्रधानता नहीं सह | की तरफ गये। जहांगोर. दिग्नामेज सद्यानारे चार सकती थी। एक दिन सलीम के शिकार खेलने के लिए चले जाने | दिन ठहर कर हरिपुरमें पाकर ठहरे। वहम किर पीछे अन्त पुर की किसी स्त्री के साथ जोधापाईकी कलह हो गई। जहांगीरपुरको पाये। यहां जहांगीर पहले गिफार 'जोधाबाई इस अपमानको सह न सकी और अफीम खा कर | खेला करते थे। इस ग्रामके पाम सम्राटके प्रादेशी उन्होंने भात्म हत्या कर लो। जहोगीर शिशरसे लौटे तो उन्हें मृगको कत्रके उपर एक ममजिद बनो घो। म मृगको भोपाबाई जीवित न मिली। इनके शोफसे जहांगीर बहुत दिनों जहांगीरने खुद पकड़ा था और इसो लिए. वह उनका तक उदास रहे थे । भाखिर अकबरने भा कर पुत्रको सान्त्वना | बहुत पार हो गया था। यह मृग अन्य मृगों को बता दीदी । किन्तु जहाँगीर स्वरचित जीवनवृत्तान्तमें जोधाबाई की ) लाता था। मसजिदको दोवार पर मुशा महम्मद हुमेनकी मृत्युका कारण सरा ही यतलाते हैं। वे लिखते हैं कि, 'मेरे बाद लिखी हुई एक वारत मिलती है-"इस पानन्दमय शाह होने से पहले खुशरू की माता अपने पुत्र (बुशरू )के भनद स्थान भादगाइन र उद-दोन महम्मद द्वारा एक मृग व्यवहारसे अत्यन्त मर्माहत हुई और इसी कारण उन्होंने भकीम | पकड़ा गया था और वह एक महिने खुद हिल गया साकर आत्मपात कर लिया। यह मुझं (जहांगीरको) प्राणों | था वह बादशाहका बहुत पारा था। जहांगोर पारसे 'भी उपादा प्यार करती थी। और तोपा, या मेरे एक केशके । उमको राजा कह कर पुकारते थे।" कुछ भी हो बाद- लिए सैकडों पुत्रों और प्रातागोको छोड़ने में रा भी आनाकानी शाइने प्रबको बार यहां पाकर मरे हुये मृाक मारणार्टी न करती थी। वह हमेशा खुशरूको मेरे अनुमहकी बात कहती शिकार न किया। उन्होंने धीरे धीरे अग्रसर होकर जयन थीपरन्तु एशक उनकी बात पर जरा भी ध्यान न देता था। खाँ कोकाके पुत्र जाफर खां को पामरादि पोर पाटकके अप देखा , पुनका चरित्र किसी तरह मौ परिवर्तित न होगा। सरकार प्रदेशका सामनकर्ता बना दिया और यह एकम हब नोंने यह सोच कर कि-शायद मेरे मरने पर पर दिया कि, यादगाहो फोजके लाहोर सौटनसे पहले ही अपनी भूलोको पकर सके और घर आय-मेरी अनुपस्थितिम खातुरकै सदारोको ग्रान्तावा कर कैद कर दिया जाय। अपरिमित अफीम सा कर अपनी रखा कर माती (10 सिन्धुनदके किनारे पहुंचने पर महावताको २५०० हिजरा,.२६ असहज्ज) मेमाका पधिनायक यमा दिया। बादगाह पेशावर Vol. VIII.!