पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/१९६

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पद्यपाधिमे प्रार्थना कर रहे हैं, ऐमा उल्लेख है । ममुद्रः । प्रत्ययहित पूर्व में महावीर मिशन्दर गाने पन्नाय प्रदे. यावाविषयक उत्कीर्ण चिमि, सम्भवतः नौ चित्र पुराने गर्म बहुतमे जहाज इकट्ठे किये थे। उसके बाद उनके हैं। कितने युग बीत गये, कितने तूफान हो गये, किन्तु मेनापति नियरकसने भारतवर्ष मे स्वदेश लौटते माय उनका गौरव अब भी उन्चन और अतुगा है। इमकी। जितने भी जहाज या बड़ी नाय देनी थी, मरको अपने ६ठी और ७वीं शताब्दीमें ये अशित हुए थे । अजन्ता-1 काम लगाया था। परियन ( Arrion ) ने स्पष्टरूपमे गुहाको २य गुहाम ही जहाजके चित्र अधिक है । उस कहा है, कि Tatarai नामक जाति नीम डहियाले युगमे भारतवर्ष के जहाज अत्यन्त गौरवान्वित थे। जहाज बना कर, उन्हें भाड़े पर दिया करतो घो। इम- ग्रिफिथका कहना है, कि वे प्राचीन भारतले वैदे-1 के मिया उन्होंने जहाज बांधनेको लिए धन्दर बनाये शिक वाणिज्यक उज्ज्वल साती है। एक चित्र में विजय-} जाने का भी उल्लेख किया है। को मिहलयात्राका वर्णन अङ्गित है । चिकि अधिकांश मौर्य युगमें जहाज बनाने के कार्य में भारतवासी जहाज बहुतमे पालों और लम्बे लम्बे मस्त नोंसे सुगो । विशेष यात्रवान थे। किन्तु ये कार्य गष्ट्रकी देखरेखमें भित है। देखनेसे उनके सुजहत् होनेमें जरा भी मन्देह हुआ करते थे । योक दूत मेग स्थिनिम्न कहा है कि नहीं रह जाता। एक जाति मिझ जहाज बनाने का ही काम करती थी। ___प्राचीन भारतवामी किस तरह जावाम पनिवेश किन्तु वे साधारणक वसनभोगी कर्मचारी न थे अर्थात् म्यापन करने के लिए गये थे, एक चित्र में यह मनोमांति | राजकार्य के सिवा पन्य किसोका भी कार्य न करते अहित किया गया है। इस चित्रमें मलाइ लोग मौही। थे। स्टायोका कहना है कि ये जहाज व्यवसायी पणि. लगा कर पाल पढ़ा रहे हैं, यह देख कर उनके माहम कीका भाड़े पर दिये जाते थे। पीर योरत्वका यथेष्ट परिचय मिलता है फिन्लाई लफिः । न जाजीक लिये राष्ट्रमें एक स्वतन्य विभाग या म्य जियममें जावा-वासो हिन्दुओं के एक जहाजका खोलना पड़ा था। स्ट्रारबो पोर मेगस्थिनिस्के सिषा नमूना रकवा गया है, जिमको लम्बाई ६० फुट और । फोटिल्यन पपने पर्थ यास्त्र में इस विभागक विषयमें चौड़ाई १५ फुट है। मदूगर्क मन्दिरमें एक चित्र है, बहुतसो बात लिखी हैं। इस विभागका सम्पण भार जिसमें पान चढ़ा कर ममुद्रमें जाना हुया जहाज उसके अध्यक्षके अपर था। वे समुद्रयावाविषयक दिखाया गया है। समस्त कार्याम कसत्व करते थे। इसके मिया नदो, ईसाको २य और श्य यताप्दों के अन्य राजानों को कुछ दुद, प्रादिका भार भी उन्हीके अपर था। वन्दरमें मुदायोम जहाजको प्रतिलिपि है । ऐतिहासिक भिनसंट जिससे सब तरहको कर सुचारु करमे धमन हो, रस स्मियका कहना है कि जहाजके चिकिरहनसे ऐसा पर भो दृष्टि रखते थे । वर्तमान ममयमें पोर्ट कामोगनर पनुमान होता है कि यनोका मामाज्य सिर्फ भूमिभागमे पर जिन कार्याका भार है, उस विभागके प्रवास पर हो पाया नहीं था। जिस युगमें भारतवामियने अर्णव- भी उग्दी कार्योका भार था। समुद्र तोपर्ती पामोमें यानके मूपका स्मरण कर मिक में भी उमका चित्र प्रति एक प्रकारका विगेप कर वसूल किया जाता था। बगिण. किया था, हम युगौं भारतवर्ष धनधान्यमे परिपूर्ण होगा। कगण बन्दर के निरमानुसार कर देते थे। राजकीय में पापर्य ही क्या ? प्राध-मुद्रा जहाजका चित्र जहाज पर जानेवाले यात्रियों में काफो भाड़ा लिया देख कर मेवेलने कक्षा है, कि उस समय भारतवर्ष का जाता था। पथिम एपिया, योस, रोम, मिमर और चीन के माय जल- . पय भोर स्थलपयसे वाणिज्य प्रचलित या! * पसष. .lingerial Gaxitterr,Ver Edition. Vai. II,P.85. राजापों के सिर में भो जहाजका चित्र देखने में प्राता है "पत्तमाय एकमार्ग निरोप" . मौर्ययुगमें भारतीय प्रदानी भवस्था~मीय मामनावेतनं मनौमि पम्मतन्तः।" Vol. VIII. 45