पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/१९८

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महान १७० पद्मपाधिमे प्रार्थना कर रहे हैं, ऐमा उमेर है । समुद्रः। अध्यवहित पूर्व में महावीर मिकन्दर शाहने पनाब प्रदे. यात्राविषयक उत्कीर्ण चित्रोंमें, सम्भवत: नो चिव पुराने | गर्म बहुतसे जहाज फ किये थे। उसके बाद उनके है। कितने युग बीत गये, कितने तूफान हो गये, किन्तु । मेनापति नियरकम्ने भारतवर्ष में म्वदेश लौटते माय उनका गोर र अब भी उचल और अक्षुग्ध है। इसकी। जितने भी जहाज या बड़ोगावे देखी थी, मनको अपने दठी और ७वीं शताब्दीमें ये अशित हुए थे। अजन्ता काम लगाया था। परियन (Arrion ) ने स्पष्टरुपमे गुहाको २य गुहाम हो जहाज के चित्र अधि ह हैं । उस कहा है, कि Xathroi नामक जाति तोम डष्ठियाने युगमे भारतवर्ष के जहाज अत्यन्त गौरवान्वित थे।। जहाज बना कर, उन्हें भाड़े पर दिया करतो घो। इम- ग्रिफिथका कहना है, कि वे माचीन भारतके वैदे- के मिषा उन्होंने जहाज बांधने के लिए धन्दर बनाये शिक वाणिज्य उज्ज्वल मासी हैं। एक चित्रम विजयः। जाने का भी उल्लेख किया है। की सिंहलयात्राका वर्णन अदित है । चित्रों के अधिकांग मौर्य युगमे जहाज बनाने के कार्य में भारतवामी जहाज बहुतसे पालों और लम्बे लम्यं मस्त लोमे सुशो- विशेप यववान थे। किन्तु ये कार्य राष्ट्रकी देखरेखम भित है। देखने में उनके सुजहत् होनमें जरा भी मन्देह हुआ करते थे। ग्रोक दूत मेग स्थिनिसने कहा कि नहीं रह जाता। एक जाति सिर्फ जहाज बनाने का ही काम करती यो। - प्राचीन भारतवासी किस तरह जावामै पनिवेश । | किन्तु वे साधारणके वेतनभोगी कर्मचारी न थे अर्थात् स्थापन करने के लिए गये थे, एक चित्रमें यह मनोति | राजकार्य के मिया पन्य किमोका भी कार्य न करते अहित किया गया है। हम चित्रमें मल्लाद लोग मोड़ी थे । यायोका कहना है कि ये जहाज व्यवसायी वणि. लगा कर पाल चढ़ा रहे हैं, यह देख कर उनके साहम कोका भाड़े पर दिये जाते थे। और बौरवका यथेष्ट परिचय मिलता है फिनाड़े लफि रन जहाजोक लिये राष्ट्रमें एक स्वतन्य विभाग या के म्य जियममें जापा-वासो हिन्दुओं के एक जहाजका खोलना पड़ा था। धारको पोर मगस्थिनिम्के सिवा नमूना रखा गया है, जिसको लम्बाई ६० फुट चौर फौटिल्यने अपने पर्यभानमें इस विभागक विषयमें चौड़ाई १५ फुट है। मदूगके मन्दिरमें एक चित्र है। बहुतसो बात लिखी हैं। इस विभागका सम्पण भार जिसमें पान चढ़ा कर ममुद्रमें जाना हुया जहाज उसके अध्यक्ष अपर था। वे ममुद्रयावाविषयक दिखाया गया है। समस्त कार्यमि कतत्व करते थे। इसके मिया नदो, ईमाको २य और श्य शताप्दोके अग्ध राजानों को कुछ इद, पादिका भार भी उन्होंके पर था। बन्दरमें मुदामि महाजको प्रतिलिपि है । ऐतिहामिक भिनसंट जिसमे सब तरहको कर सुचारू रूपमे वमूल हो, इस स्मियका कहना है कि जहाजके चित्रों के रहनेमे ऐसा पर भो दृष्टि रखते थे। वर्तमान समयमै पोर्ट कमोगनर पनुमान होता है कि यनपोका माम्राज्य सिर्फ भूमिभाग पर जिन कार्योका भार है, वह विभागके पक्षाच पर हो पायद नहीं था। जिस युगमें भारतवामियने भणे य- भो उन्ही कार्यों का भार या। समुद्र तीरवी पामो से यामके मुख्य का स्मरण कर सिक में भी उसका चित्र पहिला एक प्रकारका विशेष कर वसूल किया जाता था। रणि किया था, हम युगमें भारतवर्ष धनधान्यमे परिपूर्ण होगा, कगण धन्दर के नियमानुसार कर देते थे। रामकीय इसमें पायर्य ही क्य! ! पान्ध मुद्रा महाजका चित्र अहानी पर आनेवाले यात्रियों से काफो भाड़ा लिया देख कर मेघेलने कक्षा है, कि उस समय भारतवर्ष का जाता था। पथिम एगिया, योम, रोम, मिमर और चीन के माय जन- ‘पय और स्थन्नपथ में शापि पचलिन था। पनव • frigerint Grretteer, Ner Edition. Vel. II, p. 85. मापों के मिर्क में भो जहाजका चिव देखने में पाता है "तमामुद्धतं परकमा गिमोद मौर्ययुगमें भारतीय जहाजोवे मरस्पा-मौर्य सामन मानावेतन रामनौमि Ra".. Vol. VIII. 45