पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/२१

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जमनी-जपमाला भो वा फन नहीं मिलता। चतन्ययुस मनि एक | जपमाला (मस्त्री .) अपस्य अशा माला। नपके धार पोछे जप करते हो जपकर्ताको अन्यिभेद सांग | निमित्त व्यवहत होनेवाली माना, जिस मालाको पर्व उद्धि, पानन्द, प्रय, पुलक, देहावेश और सहसा नबन कर जप किया जावे काम्यभेदसे जपमाला नाना गदगद भाषा हो जाती है। | प्रकार वन मकती है। . .. पन, स्वस्तिक वा वीरासन प्रादिम व नप करना | ____ प्रधानतः जपमाला तीन प्रकारको ई-करमाला, चाहिये, पन्यथा वह निष्फल हुमा करता है। वर्ण माला और पचमाला । ( मयसूज) सर्जनौ, पुण्यक्षेत्र, नदोतीर, गिरिगुहा, गिरिराङ्ग, तीर्थ स्थान, मध्यमा, अनामिका और कनिष्ठा इन चार पहानियां मिन्धुमङ्गम, यन, उपवन, विषयके मूल, गिरितट धारा मालाको कल्पना करना पड़तो है । कमिष्ठान लि. देयमन्दिर, ममुद्रतीर पथमा जहाँ चित्त प्रसन्न हो सके, 1 के तोन पर्व, अनामिका तोन पर्व, मधमाका एक पर्व । यहां जप करना उचित है। निर्जन हमें सो गुना, | पौर तर्जनोके तीन पर्य मम मिला कर दश पर्व की एक गोठम लाग्न गुना, देवालयमें करोड़ गुना और गिवके | माला बनती है। इस मालाके मेरु से मध्यमारलीके सविधानमें अनन्त पुरष लाम होता है । गुरुके मुश्वरी । पपर दो पर्व समझना चाहिये। (अननुकमारस०) सो. माम मन्य हो सर्य सिद्धिदायक है। पच्शकमसे सुन का नाम करमाला है। उममें जप करने का काम इम पघया कोगनमै देख किंवा पत्र पर लिखित मन्च अभ्यास प्रकार है-पनामिकाके मध्य पर्यसे पारम्भ कर कनिष्ठाके पूर्वक जप करनेमे कोई पनयं नहीं उठता। किन्त। ३ पर्व से फममें तनोके म तपर्य पर्यन्त १० पर्व पर पुस्तकमे लिखा है, मन्य देख जो जप करता, बुद्धाहता जप करना पड़ता है। एसे हो नियममे दम दार जय नैमा उसको पाप पड़ता है। करने पर एक पत संख्या हो मातो है। पटादश, जपजी (हि.पु.)मिका एक पविव धर्म ग्रन्य । इस | प्रष्टाविगति, अष्टोत्तर शत प्रभृति पटाधिक जपके स्पस्त नयका नित्य पाठ करना पे अपना कर्स प्य समझते हैं पर पनामिकाके म मन पर्व से प्रारम्भ कर कनिष्ठाके २ जपतप (हि.पु.) पूजापाठ । पर्व' ले कमय: मनोके मध्यपय पर्यन्त ८ पर्ष में पाठ अपता (स• मनोर) जपस्य जपकारकस्य मायः तल्टाए। बार जप करते हैं । ( सनत्कुमारी) १ जप करने का काम । २ जप करनेका भाव । गतिमन्त्र जप, करमाला अन्य प्रकार है। उसमें पनामिकाके ३ पर्य, मध्यमाके ३ पर्य, कनिठा ३ पर्व पोर अपन (म० की.) जप भावे स्य ट जय । गप देखो। तर्मनीका मूलपर्व १० पर्य से कर एक माला बनती है। "न्यास एव पेदान्ते वर्तठे सपने प्रति ।" तर्जनीका मध्य पर्व पीर पय पर उस माताका मेरुमा . (मारत शाति ११६म.) | कल्पित होता है। मेरके स्थान जप निपिसमें पाना कि किसी वाक्य वा याक्यांगको धोरे| पनामिका मध्य पर्यमे पाmu : पनामिका मध्य पर्यगे प्रारम्भ कर कनिष्ठा मोके . धीर देर तक पाना या दोहराना।२ सा जाना, अन्दो३ पर्य ले क्रममें मध्यमाके ३ पर्यमे तमोके माल पर्यस जल्दी निगल जाना।किमी मन्चका माध्या, या वा] १. पर्व जप करते हैं। उम प्रकारको मामाम पाठ बार 'पना पादिक ममप मम्यानमार धोरे धोरे पार घार अपनेचे म्पन पर पमामिका पानीको सड़मे पारम्भ उधारप करमा। करके कनिष्ठा पोर ने कर कमा मध्यमाई मन नरमी (हिप्पो०) माना ! २ गोमुखो, गुमो। पर्व प मा ८ पर्व में पाठ यार जप करना पड़ता है। अपनोय ( जि.)-पमीयर । जप करने योग्य, जो त्रिपुरासुन्दरी मप मम पीर को करमान्ता होतो अपने सायको | है। उसमें मघामाका मन एवं पप, अनामिकामा ' अपराय( पि०अप एव परमयन पाययो यम्य म.मसया प्रम, कनिष्ठा चौर समीका मम, मा यामी. अपामा सपनमोस्त, भो तप करसा शे। । सया पय पर्व १०पर्व को मामा मनात सापनामिकाका . ..