पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/२१४

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नागोरदार--मागुलो १६१ सम्राट शाह मालमने भी छना सनद कायम रखी। जिम स्थानमें चारों तरफ भृगटपणा (पर्थात् मरीचिका भागोरदार (फा. पु.) व जिमे जागीर मिनो हो। वालुकामय स्थान ) हो, वृक्षों का ममूह पत्यर्थ शोन जागुड़ (स.पु.) नगुड़े तदात्यया पनि देगे भव | हो. सूर्य की किरण पति प्रखर हो, पुफरिणी अलमे इत्या । १ देविशेष, एक प्राचीन देशका नाम ।२ शून्य हो, कुर के पानीस मय काम होत हो, जहाँके कुडाम, केसर (वि० ) ३ जागुड़ देगका निवामी। मोगीका शरीर सूखा एपा हो, धानादि समस्त जाररवि ( पु.) जागर्ति साक्षियरूपतया जाग्ट-किन्।। हिमपतनजात हो. ऐमे स्थानका नाम भी जाइल है। १ अग्नि, प्राग।२तृप, राजा(वि.)३ जागरण इस स्थानके गुण-वातपित्तकारक, रून पोर उच। शीश, जागने वाला। ४ सदा निज कार्य में प्रमत्त, जी यहां जलके गुण-कर, लवणयुल, लापथ, पग्नि इमेगा अपने काम में सावधान रहता हो। और कफविकारकारक। जाग्रत ( स० वि०) १ जागरणशील, जो जागता हो। (वि) ४ उक्त स्थान में रहनेवाले 101 ये हिरम, २ जिसमें सब बातोंका ज्ञान हो ऐसो अवस्था । बारहसि पाढिके भेदसे बहुत प्रकारक होते है। जापति ( स्त्री०) जागरण, जागनिकी क्रिया। शु देखो । हरिण, एण, कुरा, ऋपा, पता जानिया (म. स्त्री०) जाट मात्रै गरिडादेशः । जागरण, न्या, गजीव तयादि। इनका माम मावप्रकाशके निद्राका प्रभाव । मतमे मधुर, कक्ष, कपाय, मधु, वाल्य, ह, य, टोपन, जाधनी ( म स्त्री०) जघनस्य ममोपं जघन-प्रण ततः दोपहारक, मूस-गदचिन-वाधियनाशक, कपि, छर्दि, सियां डोप । ऊन, घा, जांघ । जघनस्याई जघन का । प्रमेह, मुखज रोम.लीपद, गलगएर और वायुनायक देशे भवः अण डोप । २ पुपयाण्ड । माना गया है और राजवासभके मतमे यह शोसल और जापुरो-अफगानिस्तानकी एक जातिका नाम। यह मनुपाके लिए हितजनक है। हामारायौकी एकागो मात्र है। ये लोग इधर काउल. | जागान्पथिक (म०वि०) जङ्गलम्यः पन्या प्रममामान्तः । और गजनीको सोमामे हिरात तक और दूमरी तरफ । १ जहाल पय द्वारा प्राहम, जगालके रास्ते मे मुलाया हुवा। कान्दाहारमे बाल ख तक, हम चतुःसीमाके भीतर रहते हैं। २ जङ्गल पथ-गमनकारक, जनन के रास्ते में जानेवाना। • माल ( म० को०) जलेपु स्थल जपाविशे येषु भव।। जागलि (म. पु.) यह लोप पड़ता हो, मंपिंग। जङ्गल-भण । १ मांस, गोम्त । ( हेम० ) (पु० ) जङ्गल २ विषय था, वह लो मापका बहर उतारता हो । भवः जन्त-मण । २ कपिञ्जन्न पक्षी, तोतर । ३ वारि. होन देश, यह देश जहां पानी कम हो। नहा राक्ष जागतिक ( स० पु. ) नागलो विषविद्या तामधोते रति और पानी कम हो, शमो, करोल बेल, मदार, पोल ठन् । विषवेध, सापका जहर उतारनेवाला। .भन्न ), फर्कन्ध (येर ) आदि नाना प्रकार सम्वादु फल जाङ्गली (मनो०) क्रोध, कोक, के याच । उत्पन्न होते हो और हरिप, बारहमिधा भादि जानवर | जागोरपत्तन-टाका नगरका प्राचीन नाम । कहा जाता है कि मम्राट जहांगोरसे यह नाम रखा गया है। यह (हो हो, उस स्थानको जान कहते हैं। दाकनरो नामको देयो विराजमान हैं। देखो। जहां पानो और घास कम, वायु पोर पातप अधिक, पौर बहुत धान्यादि उत्पब होते हैं. उस स्थानका नाम है | जागड (म को• ) कुश्म, केमर । जाल। जागनि (म.पु.) जगन; जालभवः भादिग्राहा.

  • "आवार-शुभ्र च्वष स्वरूपपानी पादपः।

तया पत्त्यस्य जाइलमा १ प्यानग्राहो, म पैरा। समीकरौरविल्वापीकल ॥ २ विष, नहर रो, तोरई। सुस्वादः फलवान देशो कालो जागर: मनः ." जानी ( मस्ती ) जलस्य यति प्रा. नती .. , . (मुक्त) । होप.। विपयिधा, सोप विय उतारने को किया ।