पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/२१६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

नामदेव- जाट १९३ माजलदेव-दक्षिण देशके एक प्राचीन राजा। इनका पड़ा है। किसोका यह भी कहना है कि जाट नम चेदिराज कोकलके वश पृथ्वोग वा पृथ्वोदेयके जाति चन्द्रसूर्यवंशीय है। अध्यापक सामन प्रमुख पोरससे दुपा था । बहुनसे शिलालेखमि इनका नाम पण्डितोंका कहना है कि, महाभारतमें जो मद्र और मिलता है । वहाँके ६८६ चेदिसम्बतके एक गिलालेख के | जाति कीका उम्मेख है, जाट जाति उन्हीं में शामिल है। पढ़नेसे मालूम होता है कि इनको माताका नाम राजला। इसके अतिरिक्ष कोई कोई कहते कि आटल. धा) उपमें यह भी लिखा है कि, चेदिराजके माय पूत है--किमी नित्रये गोकी राजपूतमाखासे उत्पन्न इनका मोहा था, कान्यकुञ्ज और जेजामुग्लिके गाहोने के कारण राजपूत-समाजमें इनका यथोचित सम्मान इन्हें मानते थे । इन्होंने सोमेश्वर नामक एक राजाको नहीं है । इम मतमे सहमत परिदतगण कहते है कि, पराजित फार कैद कर लिया था। पोछे उन्हं छोड़ भो । राजपूत और जाटौंमें जातिगत विशेष कुछ पार्थक्य नहीं दिया था। इन्हें दक्षिण कोगन, अश्व, खिमिड़ो, वैरा है; किन्तु व्यवसायकै तारतम्यानुसार इनमें सामाजिक गढ़, लतिका भानाड़ा, तनहारो, दण्डकपुर, नन्दावनो , प्रभेद पड़ गया है। राजपूर्तीके ३६ वंगों में जाटोंका भी पोर कुकट आदि मण्डलपतियों से कर और उपढोक नादि) उल्लेख है। पहले राजपूतगए इन लोगमि वैवाहिक माप्त होता था। हैहया राजवंश देखो। सम्बन्ध करने में किसी प्रकारको लज्जा नहीं करते थे। जामपुर-दक्षिणदेशका एक प्राचीन नगर। जाजल यद्यपि इस ममय इन लोगों के माथ राजपूतोंको प्रकाग्य देवने इस नगरको स्थापना की थी। विवाह प्रचलित नहीं है, किन्तु तयापि राजपूतगण वैवा- नाजिम ( १० स्त्रो०) विछानेके काममै पानेवाली एक । हिक सम्बन्धमें इनसे पूर्णतया विच्छिन्न नहीं हो सके प्रकार यी हुई चादर । जानम दे।। जाजी (स, स्त्री०) जीरक, जीरा । ___जाटोंकी उत्पत्तिके विषयमें एक प्रयाद है-एक जाज्वल्य ( स० वि०) १ मज्वलित, प्रकाशयुक्त । २ तेज दिन एक गुजर जातीय स्त्रो सिर पर पानीसे भरी एक गागर ले जा रही थी। उसी समय एक भैस रस्सी तोड़ जावत्यमान (सं० वि०) भृशं ज्वलति बल-यड्ः कर भागी जा रही थी। उस सीने पपने परमे भैसकी मानन् । १ प्रत्य ज्ज्वल, दीतिमान् । २ तेजस्खो, तेजवान् । रमीको दुम तरह दबाया कि, यह मैंम जहांकी नई माझालि (स.पु.) जम महात-घडत लाति-ला-डि दही रह गई। एक राजपूत राजा दूरमे यह दृश्य देश उवभेद, एक प्रकारका पेड़। रहे थे, वे उहा स्त्री पर बहुत ही सन्तुष्ट हुए और उसे जाट-१ भारतवर्षकी एक प्रमिद जाति। भारतवर्ष के अपने घर ले गये । राजपूत और इस गुजर जातीय जीके युक्तपदेश, पनात्र, राजपूताना और सिन्धमें अधिकांथ संमियणसे एक नवीन जातिकी उत्पत्ति दुई, जो इस भधिवासी जाट ही पाये जाते हैं। इन प्रदेयों के मिषा समय जाट के नाममे प्रसिद्ध है। अधिकांग बाट ही अफगानिस्तान, येलुचिस्तान भादि प्रदेशों में भी इनका अपनी उत्पत्तिके विषयों उक्त विपरम्पको सुनाया वास है । जाट मातिकी संख्या बहुत ज्यादा है। ये मित्र करते हैं। भिन्न स्थानों में भित्र भिव नामोंमे मसिड हैं। मतलब यूरोपीय विद्वानोंका कहना है कि, जाटगण भारतके यह कि, जती जिती, जीत, जूट या जाट इनमेंसे कोई| आदिम अधिवासी नहीं हैं। व्यतियारान्य के प्रधःपतनके भी नाम वो न हो, भारतवर्षमें सीन भताप्दी पहले समय पक्ठम् नदोके किनारे वलिया और सुरासानके उनकी संख्या पन्यान्य जातियों में कहीं पधिक थी। मध्यवर्ती स्थान स्किदीय (क) गण भारतकी तरफ जाट जातिकी उत्पत्ति विषयमें मौका एक मत नहीं अपसर हुए थे। इन लोगोंने कमगः भारतमें प्रवेग है। कोई कहते हैं, देवादिदेव महादेवको जटामे इस ! किया।इन (गक की एक मारखा मिन्ध देगमें पा कर | जातिको उत्पत्ति हुई है, इसीलिए इसका बाट नाम स्थायी भावसे रहने सगी पीर मेद नामकी इमरी एक ____Vol. VIII. 49