पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/२२

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जममाला १० मधा पर्व और मधामाका मधापर्व २ पर्य उस मालाके । करनेसे 'ल' पर्यन्त पचास बार चिन्ता होती है। वैसे मेर जैसे गिने जाते है। हो अनुलोमको चिन्ताके पीछे फिर एक बार विलोम अपके नियम-मधामाकै मलपर्व से प्रारम्भ कर अना- प्रोत् विपरीत कममें 'ल' से 'अ' तक एक एक वर्षको मिकाका मल पर्व ले कनिष्ठाके मल, मध्य तथा प्रय चिन्ता करनेसे सब मिला कर एका शतबार जप हो पर्व क्रममें तर्जनीक मल पर्यन्त जप करनेका नियम जाता है । इसके बाद और बार बार जप वा चिन्ता है। उसमें दश बार जप होता है। पाठ बार जपके स्थल करनेमें अष्टवर्ग के आद्य पाच ८ वर्णको चिन्ता करनो पर कनिष्ठाके मल पसे क्रममें तर्जनीके मल पर्व पड़ती है। तन्त्रक मतानुमार भकारने 'म' पर्यन्त १६ पर्यन्त जप किया जाता है। स्वरमें एक वर्म, 'म' तक २५ वर्ष में ५ वर्ग: 'य र ल.' (श्रीकम, हंसपारमेश्वर यामल, मुण्डमालातन्त्र) चार वर्ष में एक वर्ग और 'श प स ह ल' ५ वर्ण में सब प्रकार करमालामें करसल किश्चित् आकुञ्चित एक वर्ग होता है। सुतरां , क, च, ट, त, प, ध और कर इंगली परस्पर संलग्न भावसे रखते और जप करते ग नामसे मन आठ वर्ग हैं। पाठ बार जप था चिन्ताक है। इससे धन्यथा करने पर जप निष्फल होता है। सब स्थल पर भिन्न भिन्न तंत्र में अलग अलग मत दिया हुआ उंगलियों के धागे पागे और पर्व सन्धिमें जप करना और है । कोई कोई कहता है कि उक्त अश्यग के अन्त्यवर्ण मेरा लाधना बहुत निषिद्ध है। गणनाका नियम तोड़ द्वारा भो पाठ बार जप करने का विधान है। ( सनत्- जप करनेसे उसका फल राघस ले जाते हैं। अतएव कुमार, नारद, विशुदेवरतन्त्र ) अङ्ग हारा पूर्वोक्त नियममें अपरापर पङ्ग लोके सव अक्षमाला--तन्त्रसारमै लिखित है कि रुद्राक्ष, शाह, पर्व परी का संख्या रखते और जप करते हैं। पद्माक्ष, पुत्रशोक, चक, मुला, स्फटिक, मणि, सुवर्ण, विहम, रोग्य और कुगमूल इन यामे ग्रह योको अक्षमाला विश्वसारतन्त्रमें लिखा है कि जपको संख्या पोर प. प्रस्तुत होतो है। इसमें प्रङ्ग लोधारा एक गुण, पय धारा मख्या दोनों को रखना पड़ता है। अष्ट गुण, पुत्रजीवको मालासे दश गुण, भडमालामे तन्त्रके मतानुसार उदय पर हाथ रख कर सहस्र गुग्ध, प्रवाल तथा मणि रत्नादि उगलियां कुछ झुका यन्त्र द्वारा प्राच्छादनपूर्वक लप] निर्मित एवं स्फटिक मालासे दग सहसगुण, मौलिक किया जाता है। मालासे लक्षगुण, पोज मालासे दशलक्ष गुण, सुवर्ण ..तपडल, धान्य, पुष्प, चन्दन, मृत्तिका और अगली. मालासे कोटि गुण कुशाग्रन्थिको मालासे शतकोटिगुण पर्व इनसे जपकी संख्या रखना निपिद है। रतचन्दन, । और रुद्राक्षमालासे जप करने पर पनन्तगुगा फल मिलता लाशा, सिन्दा, गोमय और कण्डा इनको एकत्र मिला है। असलमें सब प्रकारको मान्ता मानव के लिये माति- कर गोलियां बनानी चाहिये और उससे माला गूथ कर । प्रद है। जपमख्या करनी चाहिए। ___ कालिकापुराएक मतानुसार रुद्राक्ष वा स्फटिककी वर्णमाला-'असे पर्यन्त सब पोको एक माला मालामें पुत्रजोव पादि मिलाना न चाहिये, उससे काम कल्पना करना वर्णमाला कहलाता है। 'च'के पहले और मोच विगड़ जाता है। भी एक 'ल' लगाना पड़ता है। सुतरां समष्टिमें ५१ रुद्राक्षको माला पत्र नाम, कुशग्रन्यियुक्त मालामे वर्ण हो जाते हैं। 'च' वर्णमालाका मेरु साक्षी जैसा सब पापी विनाश, पुरजोवफलको मालासे पुत्रनम्मद, कल्पना करते हैं। उसके पीछे एक फार मन्त्र चिन्ता कर रौप्य तथा मणि रत्नादिको मालासे अभीष्टसिद्धि पोर फिर वर्णमालाके सर्वप्रथम "" विन्दुयुक्त वर्णको भो} प्रवालको मालासे अप करने पर विपुल धनलाभ होता चिन्तन किया जाता है। इसी प्रकार एकबार मन्त्र है। वाराहीतन्त्रमें लिखा है-भैरवो विद्या, सुवर्ण, दिना और पीछे पीछे एक एकविन्दुयुत पणेको चिन्ता !. मणि, स्फटिक, गइ और प्रवालको मालाको व्यवहार Vol. VIII. 5 (सनत्कुमार)