पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/२२०

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नाट की कन्या के रूपमें अपनोर्ण हुई थी। इस भवानीको पोशाक अन्याय प्रदेशों के जाटोमे भिन्न है। इनसे -आराधना करनेके सिवा ये हिन्दू धर्म के और किसी भी प्रायः सभी लोग सिख-धर्मावलम्बी है। दिलो, भरत विधानको प्राहा नहीं करते। पौराणिक आख्यायिका- पुर प्रादिके जाटों में सभी लोगों को उपाधि मिहनहीं ओ में इनका बहुत कम विन्डाम है। एकमात्र प्रमादि । है; किमो किसोको मन भी है। सिन्ध, प्रदेगझे भार ईखरकी उपासना करने में इनका विशेष अनुराग कोम नामसे प्रसिद और बहुतमो छोटी छोटी शाखापोंमें पाया जाता है । इन जाटो में बहुतसो श्रेणियां विभा । ये लोग बड़े परियमी होते हैं। पर पादिको हैं। किसी किमी चैमेिं बड़े भाईको मृत्य के | पाल कर तथा हल जोत कर अपनी जीविका निर्वाह बाद उसकी स्त्रीसे विवाह करमेका नियम प्रचलित करते हैं। जिनके पास पपनो जमान नहीं है, किस है। विवाह के समय पान और पात्रोके माथे पर जमींदारके अधीन र कर हल जोती हैं और वेतन सिर्फ एका चादर रख दी जाती है, इसलिए इस विवाह स्वरूप उन फमलम मे कुछ मान होता है। ये अश्या गास को 'चादर चलन' कहते हैं। इन देशों में स्त्रियों को प्रतिक होते हैं। इस प्रदेभको शादी को स्लियो मोन्ट्य संख्या बहुत थोड़ी है । रुपये दे कर लड़की मोल लेनी । भौर मतीत्वके लिए सर्वत्र प्रसिद्ध है। पुरुषों को तरधन पड़ती है, मौलिए शायद त प्रदेशों में भाटरमीविवाद की स्त्रियाँ भी कठिन परियमी होती है। ये पर रहस्यो प्रचलित है। पञ्जाबके मुसलमान जाट भरैच और का काम बहुत करती है। कच्छ प्रदेशके प्रायः मभो गगाल नामको दो थेगियों में विभक्त हैं। गुजरात | जाट टोका रोजगार करते हैं। रिन्द्र जाट माधा. घऔर शाहपुरमै गण्डालों की संख्या अधिक है। ये अतिशय) रणतः एक ही विवाह करते है किन्तु मन्तान न होने हदकाय, साहसी और वलिद होता है। ये लम्बी दाड़ी से ट्रसरा विवाह भी कर सकते हैं। मेरठको सरफके रखते और उसे नौले रंगसे पंगते हैं। गुजरात और । जाट मतान्त कष्टसहिए, धीर और परियमी होते हैं। उसके पास-पास के जाट, वितस्ता नदी के तौरवर्ती उर्वरा साधारणतः ये लोग गान्तिप्रिय शेने पर भी प्रतिमा. प्रदेशको 'हिरात' कहते है। इसलिए और प्राचीन माधनके समय मतान्त उग्रमकति धारप करते हैं। प्रन्यों में नका कुछ विवरण नहीं मिलने के कारण ! सर्दारको पाला पाने पर ये लोग कठिन कठिन काम यूरोपीय विद्वानों ने इन्हें मध्य एशियाके श्रादिम अधि. तक कर डालते है । कभी मुंह नहीं मोड़ते। इनमें पासी बतलाया है। परन्तु जाटो को भाषाके साथ बहुत से ऐसे भी है, जो माम खाते हैं। युर-विद्या . मायाँको भाषाका प्रति निकट सम्बन्ध है और ये पनायी मायः ममो निपुण होते हैं। ये लोग हिन्दू हैं। किन्त और हिन्दी भाषामें बात चीत करते हैं। इसलिए ये प्राणों को बहुत पवना करते हैं। इनमें पञ्जावके यदि त्रिदोय जातिम उत्पथ होते, नो इनकी भाषा किम सिंह-उपाधिधारी जाट सी सबसे थे । ये नये तर विसुम हुई ? होते है। इनको देश सुडौल, दाड़ो लम्बी पोर हुन ___ मुसलमानों द्वारा पराजित हो कर न्याय राजपूतो. होती है। इनको मुखको सुन्दरता पति मोमनीय है। की तरह जाटोंने भी राजपूतानाम प्रवेग किया है और पार्वतीय पठानी को पपेक्षा ये पत्यधिक माहमी. महाधिकांश लोग खेतीबारी करते। भरतपुर बलिष्ठ पौर मंग्रामकुपन तथा पिव्ययसायी, कठिन पौर दोसपुर ये दोनों ही जाटराज्य । पचाय और । परियमो पोर परिमितथयो होते हैं। इनमें बहुत राजपूतानाम बहुत जगह हिन्दू और मुसलमान बाट सो लिया पढ़ी लिखो भो | ये गाय भैस पादि एक साथ रहते है और इसलिए उनके पाचार-व्यवहारमें | पालते हैं। एक स्थानका भनाज गाड़ी में रख कर मरे किमी किमी प्रग माग्य पाया जाता है। लाहौर । स्थानको ले जाते हैं। ये भूमिका स्वत्व हमे पशुप और गतके उयभागस्य जाटगण प्रायः सभी हिन्द।। रखना पसन्द करते हैं। जहां जाट ने प्रत्येक पजायके सभी जाटोको 'सि' उपाधि और इनको को भिष मिझ पापादी अमीन भी तो सभी