पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/२२६

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जाति स्फुटता उत्पन्न होती है। फिर स्फुटता (स्फोट )-मे । रूप तात्पर्य को छोड़ कर धानररूप कल्पना कर यह वडिका बोध होता है। कहना कि-"क्या ! तुम बन्दरका जूठा खाते हो। "कैश्चिय कयएवास्याप्यनित्वेन प्रकलिताः।" इत्यादि दोषारोप करना। छल देखो। इस प्रकार के कोई कोई ऐसी भी कल्पना करते हैं कि, व्यक्तियां | वाकछल, मामान्यछल और उपचारछन्लों मे रहित नो सो जातिको ध्वनि हैं। जातिको जो स्फोट कहा गया मदुत्तर, पर्यात् वादिद्वारा संस्थापित मतमें दूषण लगा. है, वह वाक्य वाचकका म्वीकार कर कमा गया है-- नर्म असमय अयवा अपने मतके लिए हानिजनक जो ऐसा समझना चाहिये। उसर, उमे जाति कहते है। यह जाति पदार्थ २४ १४ नैयायिक मतमे पोड़श पदार्थके अन्तर्गत नाति प्रकारका है। जैसे- भो एक प्रकार पदार्थ है। गौतमसूवमें इसका लक्षण साधर्म्यमम, वैधयं सम, उत्कर्ष सम, अपकर्ष मम, इस प्रकार कहा गया है- वर्यसम, अवयंसम, विकल्पसम, माध्यसमा मामिमम, 'समाना प्रसयात्मिका' (गी. २११४) अप्रामिसम, प्रसङ्गममा प्रतिदृष्टान्तसम, अनुत्पत्तिमम, जिस पदार्थ में समानताका जान हो, उसे जाति | संशयम, प्रकरणसम, हेतुमम, उपपत्तिमम, उपलब्धि कहते हैं। जैसे-मनुष्यत्व, पशुत्व आदि। सम, अनुपलन्धिसम, नित्यसमा पनित्यसम, कार्य मम, मान लो, एक यादमो बाप है और दूसरा शूद्र ! ये २४ प्रकारके जाति पदार्य है। है, इन दोनो को समान या एक कहना हो तो, किस | । प्रभाकरके मतमे-पाकृति हारा व्या पदार्थ को ही तरहसे कहा जा सकता है. दोनों का धर्म भी| जाति माना जा सकता है. गुणत्वादिका जातित्व नहीं। पृथक् पृथक् है । ब्राह्मण सन्ध्या-पूजा करता है, नेयायिको के मतमे गुप्पत्व प्रादि भो जाति हो शूद्र उसको मेवाम लगा रहता है। ब्राह्मणके गलेमें | सकते हैं। तकप्रकाशिका जातिका लक्षण इस प्रकार यज्ञोपवीत है पौर शूट्रले गलेमें माला। ऐसी दशामें लिखा है। -'निरप'नेऽमवतम्।' दोनों मनुपा हैं. इस आधार पर उन्हें ममान कहा जा जो पर्दाथ नित्य पर्थात् मोर प्रागभावरक्षित सकता है। मनुपात्त्व दोनो में है, इसलिए ममुपारत्व | सया समवाय मम्बन्धमे पदामि विद्यमान है, उसे जाति जाति हुआ। करते हैं। जैसे-द्रव्यत्व, गुणत्व, घटत्व, कर्मवत्यादि। समानताका भान जिससे हो वह जाति है, इसीलिए ___घटत्व पर्यात घटगत जो एक विलक्षण धर्म उसका दूसरा नाम सामाग्य है। नाति कहनेमे जिसका है पर नित्य है।.क्योंकि घटके नट हो जाने पर मो बोध हो, सामान्य कहनेसे भी उसोको समझना | घटत्व नष्ट नहीं होता। घटव सभी धौम विद्यमान है, चाहिये। क्योंकि एक घटके देसनेमे, फिर दूसरे घटको देखते से इम जातिके पनेक प्रकार लक्षण और नाना प्रकार ! घटका जान हो जाता है। यह घटत्व समयाय मम्पन्धसे भेद है। व्याप्ति निरपेन साधम्र्य और वधये हारा भी। विद्यमान है. इसलिए घटत्व जाति हो गया। (भाषITR- दोपोका कहना है, वहो जाति है । छन्त पादि प्यतिरेका रछेद) सिद्वान्तमुहावलीम भो ऐमा हो आतिका समय में दोपके लिए जो अयोग्य है, उमका नाम जाति है। लिम्बा है।भाषापरिच्छेदमें जाति व येपिर्यो विभत की स्वप्रतिबन्धक उत्तरको मो नाति कहते हैं । (गो. १०६८) गई है। ' यं विविध प्रोपरा परमेव च।" यता जिस पर्थ के तात्पर्य से जिम गन्दका प्रयोग ___मामाम्य पर्थात् जाति दो प्रकारको ई-एक पर. करता है, उसका यह पर्य ग्रहण कर, उमके विपरीत | जाति भोर टूमरो पपरजाति । व्यापक्ष जातिको परजाति अर्थ की कल्पना पूर्वक मिथ्या दोपका लगाना छत कह | कहा गया है, और पद्यापि कातिके नामगे मिदिर लाता है। जैसे-'हरिप्रमादमभक्षयामि।-मैं परिका नो द्रश्य गुण पोर कम इन तीनों पदाको जो माता प्रमादमण कर रहा इस मगर हरि शप्दका विना है, उसे भो परजाति कहते हैं। मत्तामति कभी भी Vol. VII.31