पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/२३०

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२.५ नाति "गृत्समदस्य शौनकचातुर्य प्रवर्तयिताभून् !" (विष्णुपु० । क्षत्रिय से पहले पहल तीन वर्षीको उत्पत्ति हुई। ४.८१) हरिवश २०वें अध्यायमें लिखा है कि, गुनक | प्रधान प्रधान पुराणों के मनमे वितथक पांच पुत्र थे- गृत्समदेयके पुत्र थे। इन्हीं शुनकसे शोनक ब्राह्मण, महोत्र, महोत्त्व, गय, गर्ग और महात्मा कपिल । महोत्रके क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र इन चार जातियों की उत्पत्ति | दो पुव थे-काशक और राजा प्टरसमति। इन गृह- मतिपुत्रगण ब्राह्मण, क्षत्रिय धीर धगा मातोय थे। "पुत्रो गृत्समदस्यापि शुनको यस्य शौनकः । "काशकश्च महासत्वस्तपा गृहममातिनृपः। ब्राह्मण : क्षत्रियाश्चैव वैश्याः शूदास्तथैव च ॥" तथा गरसमते पुत्रा ब्राह्मणाः सनिया: विश:।" (हरिवंश २६०) हरियंस १२.)- मामागडपुराण आदिम भो यह लिखा हुआ है। क्षवियमे पहने पहन दो वर्ण को उत्पत्ति हुई। भाग हरिवंशक ३२वें अध्यायमें लिखा है- ग्रयाण्ड पुराण में लिखा है- "वरसस्य वत्सयभूमिस्तु भार्गभूमिस्तु भार्गवात् । "वेनुहोत्रमुताश्चाी गाय: नाम! प्रजेभरः। . पते त्वगिरसः पुना जाता शेऽथ भार्गवे। गार्गस्य गर्गभूमिस्तु वासस्य यस्सो धीमता । माह्मणाः क्षत्रिया: वेश्याः शूदाश्च भरतर्षभ।" ब्राह्मणा: क्षत्रियाश्चैव तयो पुप्रा: प्रधार्मिकाः।" वत्मासे वत्साभूगि और भार्ग वसे भर्गभूमि तथा वेनुहोवके पुन राना गाय थे, गाग्य मे गगंभूमि भार्गवके यश अङ्गिरम्के पुत्रगण्य ब्राह्मण, क्षत्रिय, घेश्य और वत्मामे धोमान् वत्स्य जनमें थे । इन दोनों के दो पुत्र और शूद्र उत्पन्न हुए। सुधार्मिक और चत्रिय थे। पुराणों के मतमे प्रायुके पुत्र राजा नहुप थे। इनके पत्रोपेत ब्राह्मण वा सत्रियवंशमें याहाण । लिसरायमें ययाति, ययातिके पुत्र धनु और अनुगे अधस्तन बादश• लिखा है- पुरुप वनि उत्पन्न हुए थे। विशुपुराणके मतसे इन्हीं "हरितो युवनाश्वस्य दारिता यत थारममाः । पलिको यो के गर्भ मे घना वगा, कनिङ्ग, मध्य पोर पुगड एतेहपपिरसः पो क्षत्रोपेता द्विगातयः ॥" ये पाव पुत्र जनमे, जो वालेय क्षत्रिय थे। ब्रह्माण्ड क्षत्रियराज युवनासके पुत्र हरित थोर हरितके पुव. और मरसापुराणके मतमे इन्हीं बलि राजाले समयसे हो । गण हारित थे। पनिरसके पक्षमें ये वोपेत वामपके 'चार वीको उत्पत्ति हुई है। नामसे प्रसिद्ध है। विष्णु पुराणके ( ४३IR ) टोकाकारने स्य पुत्र सन् यसकाऽगरैर्गहीत: इन्द्रेण मोचितः । पश्चात्त इन्हीं हारितके विपयम लिखा है।- दूचनेनय भृगुफले शुनकपुनो गृत्समदनामाऽमन् । तथा चानुक ___ "यतो हरितादारिता अंगिरसो द्विजा हरितगोत्र " मणिका 'य: भोगिरस शोनहोने भूला भार्गवः शौनकोऽभवत् | हरितमे अग्निरम झारितगण उत्पन्न हुए येती शरसमदो द्वितीय मलमपश्यदिति । गृत्समदः शौनको भृगुता | हारित गोवप्रवर। गतः । शौनक्षेत्रो प्रकृस यः आंगीस उरपते ।" मागवतमें लिखा है, पुरुरवा के पुत्र पायु, पातुके पुत्र इस महलको गृत्समद ऋपिने दिखलाया था अर्यात उन्होंने | राम, रामक पुत्र रभस भौर इनके गमोर पोर पक्रिय पहले उसे प्राट भिगा था। ये पहले भागीरसवशीय शुनहोत्र के उत्पन हुए थे। उनकी पयोमे माशापजनमे थे। पुत्र पे । असुरगण इनको पका ले गये, इन्द्रने इन मुक्त किया। ___ "रामस्य रममः पुत्रो गम्भीरत्याशियरततः॥ फिर उस देवत के कथनानुसार उनके गृाकुलमें शुनकमुत्रका तद्गोत्रं प्राविग्मोर शमनेगा।" (ARIR.) 'गरमद नाम हुआ। गौलिए अनुकमणिका लिता है कि पुरुमे प्रपस्तन पधस्तन यारहवा पोहोंमें महाराज गुनसमक्ष मास्तर, भोगिरफलमें अनहोत्र के पुत्ररूपमें जER | अप्रतिरथ जनमे थे। विणुपुराणमें निश- . प्रहण करने पर मो भार्गव और पुनरुपुत्र हुए ये उपा द्वितीय ___"अनिस्यात् यः रास्यानि मेधातिषिः । यतः कामायन मरत दिखाया गा! . . . झिंत्रा बभूवः।" (१९१२) . Vol. Vill. 2