पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/२३८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

नाति २११ अधिकार करने पर बहुत प्रादिम अधिवामी उनके के अनुसार कार्यामे की गई। इसके बाद भगवान्ने माय मामिले थे। ये भी कर्म के अनुमार चातुर्य में | शूद्रोंके दो भेद किये-एक कार पोर टूमरा पकाए । शामिल किये गये थे, इसमें सन्देह नहों। किन्तु कृष्ण | धोबी, नाई पादि कारु कहलाये और, इनसे भिव वर्ण आदिम जातिके लोग जितने भी घार्य जातिके | पकार । कार शूद्रों को भी दो भागों में विमला किया- विरोधी इए, वे सभी शूट्र कहलाये। स्पृश्य पौर पस्पृश्य । इसके बाद भगवान्ने सम्राट पदसे वर्ण शन्दमें विस्तृत विवरण देण। । विभूपित हो तवियो को युद्ध करने मोर वग्यो को पर- दमी प्रकार आर्योमे भी बहुतमो अनार्य नातियों को दैग जानेको शिक्षा दो । माथ हो स्थलयावा पोर जल उत्पत्तिको कथा सुन पड़ती है। ऋग्वेदके ऐतरेयः | यात्रा वा ममुद्रयात्राका प्रचार किया। ब्राह्मण (७१८) लिखा है- विवाह पादि सम्बन्ध भगषनानकी पाजाके पनुमार "तस्य ह विभामित्रत्यकशतं पुत्रा आशुः पंचाशदेव उयायांसो | किये जाते थे। इन्होंने विवाह के नियम ईस प्रकार मनाये मधुच्छन्दसः पंचाशत् कनीयांसः तो उपायांसो न ते कुशलं | थे। शूद्र-शूदको कन्यागे विवाह करे, घग्य योग्य मेनिरे । ताननु व्यजहारान्तान् पः प्रजा मक्षौति त एतेन्धाः | और शूद्रकी कन्यामे विवाह करे एवं इलिय-वविय, पुण्डाः शवरा: पुलिन्दा मृतिवा इत्युदन्त्या बहवो भवन्ति वैश्य और शूद्रको कन्यासे विवाद करे। इनके समयमें विश्वामित्रा दस्युनो भूयिष्ठाः।" | वीचित जीविकाके सिवा कोई भोपन्य जीविकानीं उन विश्वामित्र के एक सौ पुत्र थे, उनमेसे पचाम तो कर सकता था। मधुच्छन्दाम उममें बड़े और पचाम उनमे छोटे थे । अनन्तर मगवान ऋषभदेयके पुत्र भरत चक्रवर्तीने ज्य पुत्रों को इसमे (शुनाशके अभिप कमे) अच्छा अपनी लक्ष्मोया दान करने के फलमे एक दिन समस्त महों मास्न म हुआ। इस पर विश्वामित्रने उन लोगों को मजाको निमन्त्रण दिया और राजप्रासाटके मार्ग में घास अभिशाप दिया - "तुम्हारा वंशजगा मभी नीच जातिक प्रादि वो दी। इनका पभिप्राय यह था विश, जो व्यक्ति होंगे।" म कारण विश्वामित्रके वशके अन्ध.. पुण्ड | दयालु और उन्नागय होगे. वे जोवाहिमामे बचने के लिए गयर, पुलिन्द और मूतिवगणा भ्रष्ट हो गये और विग्वा. ! हम मार्गमे न पा कर अवश्य हो पन्य मार्ग का प्रय. मित्रके पुत्रोंकी दस्य भूयिष्ठों में गिनती हुई। लम्बन करेंगे और वे ही वर्ष येष्ठ माधप्प होने के योग्य . पायात्य लोग शरमादिको द्राविड़ गारवासे उत्पन। होंगे। अनन्तर जो लोग उस मार्गमे न पाये, उ यसो. अनार्य जाति बतलाते हैं। किन्तु ये प्रार्य जातिमे ही पवोत दिया गया और व्यापार, मेनो, दान, स्वाध्याय उत्पन्न हुए हैं। प्रामण, क्षत्रिय, घश्य और थर आदि प्रादिका उपदेश दिया गया। माय ही यह भी कहा शादोंमें अन्यान्य विवरग देराना चाहिये । कि-"यद्यपि जातिनामकर्म के उदयमे मनुष्य-जाति जैनमतामुमार-यतमान कम्पके भवमर्पिणोकात के एक हो है, यावि जोषिकाके पापयमे यह भित्र भित्र रसाययुगके पन्त पौर चतुर्थकाल के प्रारम्भमें प्रादि चार वर्णीम विभा हुई। पतएव हिल जातिका सोर्थ र थोपभनाय भगवान्ने पहले पहल क्षत्रिय, मम्कार सप पोर गास्प्रधानमे ही कहा गया है। तय वैश्य पौर शूद् न तोन वर्णका प्रवर्तन किया। जिन्होंने पोर जामसे मिमका मस्कार नहीं एपा. यह मिर्फ मन धारण किये, ये मत्रिय । जिन्होंने | जातिसे हो दिल है। एक बार गर्भ में पोर टूमरो बार खेतो, व्यापार और पशुपालनका मार्य किया, वे वय | क्रियानों मे, म प्रकार दो जन्मो से जिमको उत्पति माहलाये। पोर इन दोनी यकी सेवा करनेवाले शूद्र हुई हो, वह दिल है पर्यो किया पोर मन्त्र रहित कहलाये। मप्रकार योऋपमदेवने तीन वर्णीको स्थापना | वह कैयन नाम धारण करनेवासा दिम, यास्तविश यो । रमके पहले वर-व्यवहार नहीं था। यहीमे वा नहीं।" पक्रवर्ती कारा मकार किये पाने पर प्रभा व्यवहार पसा और उसको कल्पना मनुचोंकी पात्रोविज्ञा- ! भो हम वका खूब पादर करने लगो। इस वर्ष