पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/२३९

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वाति मनुष्य प्रायः प्राचार्य होते थे और शेष जीवनमें , उत्पन्न हुई है। मो प्रकार मिरीय पार प्रयाग पधिकांश मुनिधर्म अवलम्बनपूर्वक अपनो यथार्थ | आति ममितिक भाषामे ठप्पय है। पार्य, पोर ममि प्रामोप्रति किया करते थे। तिक जातिके लोगों में शारीरिक सञ्चस वर्ष का मा . इसके कुछ दिन बाद भारत चक्रवर्ती भगवान ऋषभदेव पवश्य है, किन्तु रनको भाषापो म किमी तरकी महा के समवशरणमें गये और अपने वनों तथा ब्राह्मणवर्ग को गता नहीं पाई जाती। इस जातिके लोगों का धर्म पान स्थापनाका हत्तान्त कहा। भगवान्की दिव्यध्वनि हारा बहुत ऊंचा है। इनमें मस्तकको गठन यथामभप पूर्व इस प्रकार उत्तर मिला-"यद्यपि इस ममय ब्राह्मणों को | है। इनके शारीरिक पाभ्यन्तरोन यन्य पूरी तरह से कार्यः । पावश्यकता थी, किन्तु भविष्यमें १०वें तीर्थकर योशोतल कारी हैं । परवो लोग प्रत्यक्ष कार्य पुागत होते... मायके समयमे ये जनधर्म के ट्रोहो पोर हिंमक हो जायगे इनके शरीरका रंग भूरापन लिए पीला, नन्नाट असा तथा यज्ञादिमें पराहिंसा करेंगे।" (जन आदिपुराण ) पाखें बड़ी, नामिफाका अग्रभाग सूदम पोर पोठ पतने पायात्व मानवतत्त्वविदगण इस तरह जगत्का वर्ष, होते हैं । परवी लोग साधारणत: प्रत्यक्ष भमणगीन , । निर्णय करते हैं- होते हैं। किमी किमीका कहना है कि, परसोय रस पृथियोस्य मानयो पर दृष्टि डालनेमे उनकी मुख फालदो-शाखामे याइदियों की उत्पत्ति हुई है, तथा को यो, दैहिक उवति, मस्तक-गठन प्रादि वाध पाकार अफ्रिकाके मूर लोग पोरं फैमानाइट ( Canamite ) में बहुत कुछ वियमता पाई जाती है, किन्तु सक्ष्म दृष्टिले | नामक जाति भी भरवीय गाखामे उत्पन्न हुई है। देखा जाय, तो स्थानके पनुसार (पनेक विषयों में ) मभी | घातलास पर्वतके दोनों तरफ तुयारिक नामको एक मभी लोगाम सदृयता पाई जाती है । यह वैषम्य और | जाति वास करती है। ये लोग यद्यपि परवियों को सादृशा उत्पत्ति-मूनक है। यही कारण है कि, नो, अपेक्षा दुर्दान्त है पौर इनका रंग भी मेमा मावि मनुष्य जैसी पालसियालेसे जन्म लेता है. उसकी | अन्यान्य विषयों की तरफ हरि डालने ये परीय भावति भी प्रायः ये सी ही होती है। ये पम्यप्रयुक्त | शाखामे उत्पन्न हुए हैं। ऐमा हो मागम होता है। मानवगण साधारणत: पाँच प्रधान जातियोंम विभात ___ पार्य शारदामे उरपन मनुन पाने पक्मा नदी किये जाते हैं। जैसे- ककेशोय, मोजलीय, इयियोपोय | किनारे रहते थे। फिर वे यहांम भिन्न मिय प्रदेोमि चन या काफ्रि आति, पामेरिक और मलय । कोई कोई गये। एक अंग पारस्य देगमें और दूसरा पंग यूरोपमे . गेयोल दो जातियोंको मोजलीय जातिके पन्तर्गत यत. जाकर रहने लगा। जो काश्मीरफे उत्तर मध्य-पगिया. माये। वे कहते हैं, ककेमीय जातिके लोग पहले भीतर रहते थे, उनमेमे कुछ मनोमानिन्य को जानडे यारण कामीय सागर पोर लण मागरके मधायी पर्वतमाल भारतवर्ष में चले पाये। यूरोपीय विद्वानों ने प्रदविद्या म्यानमें रहते थे। मोङ्गलोयगण भालताई पर्यतर्क नुगोलन हारा यह गिराय पिाया है कि हिन्दू, पारमो. भूभागमें पोर चिपोपीय पर्याय नियोजाति पातमाम योक पादि तथा प्रधान प्रधान यूरोपोयगण ममो ए पर्वत-शताको मूभागमें रहतो थो। इन मम पार्य धगमे उत्पन हुए है। पार्य गागा जिसने भी जातियों की पादिम याममूमिका ययाय निर्णय करना लोगोंमे यूरोपखण्ड में प्रवेश किया है. उगम पकान बहुत ही फटिम या दु:माध्य है। कुछ मी हो, पमिहतो।। युरोपचे पयिम प्रान्तम झा कर रहने लगा, जो देर कामो या कहना कि ककमोय जातिम दो प्रधाम | नामसे प्रसिदपाधुनिक पाररिम, शोर, बैंक चोर (विमिय) मापापों को उगपति निर्ममे एक! पमेरिकाके लोग येस्ट जातिगे घरपन्न ए है। पोर . माता पार्य नाममे पोर टूमरो समितिक ( Semetic) / एक दन उत्तरमाउमें जा कर ररने लगा. भी .. मागमे मिहिन्दूपारमिझ, पफगान, भामंनो जर्मन नामरे प्रमिदम मानिदो भागोन पोर प्रधान प्रधान यूरोपीय मातियां पायंगासामे ! विभा। एभागमे गौरव, साग पोर नमार .