पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/२४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

जपयजनवरा कर सकते थे, किन्तु पक्ष मालासे वैसा करनेका विधान जपापुष्प (स' लो० ) जवा, अड़हुल । न था। परवर्ती कालमें रुद्राक्ष आदिको बनी माला हो जपारना (म. ली.) जयापुष्प, अड़हुलका फूल । • करमाला मानी गयो। तदवधि सर्वत्र सपनालाको जमिन (म त्रि०) जप पिनि । जपकारी, जप करने व्यवस्था हुई है। | वाला। (नीलतन्त्र ७म पटल, मातृकाभेदतन्त्र १४ पटल, 'जाम ( स० वि०) जपतजो जप किया गया हो। वृहन्नीलम ४ पटस, फेत्कारिणोतन्त्र साधारण पटक और । जप्त (हिं-पु. ) जन्त देखो। . कुशव प्रभृति तन्त्रमें भी अपभालाका विवरण दिया हुआ है) जलवा ( स० वि०) जप-तव्य । जपनीय, जो जपने योग्य हिन्दू, मुसलमान, जैन, बौड और ईसाई समौ जप- हो। मालाका व्यवहार करते हैं। मुसलमानों की तसवीमें | जम्य ( म० मु०) जप:यत्। १ मन्त्रका जप । (नि.) १०. गुरिया होती है। अपकालमें वह अन्ना (परमेश्वर) २जपनीय, जपने योग्य । के १०० नाम लेते हैं। जैनौको अपमालामें कुल १११ जप्ये खर ( म० को ) एक प्रसिद्ध सिद्धपीठ । मीती होते हैं जिनमें १०८ पर तो णमो अरहन्ताण" .( वृहन्नीलतन्त्र) आदि मन्त्र जपा जाता है और अवशिष्ट ३ पर "सभ्य- जफा (फा० स्त्री०) सख्ती, अन्याय और अत्याचारपूर्ण दर्शन शानचारित्रेमी नम:" जपते है। ब्रह्मदेशक बोहको व्यवहार माला १०८.गुटिका रहती हैं। हिन्दू लोग आपकालमें | जफाश (.फा. वि०) १ सहिष्ण, महूनगोल। २ परि- कभी कभी गोमुखी व्यवहार करते हैं। इसका प्रमाणा | थमी, मेहनती।। भाय है। यहूदी और पुराने ईसाई माता फेरते थे-या | जफोर (दिस्त्रो०) जफील देखो। नहीं ईसाइयों में सिर्फ रोमन वाथलिक तसवी इस्तेमाल जफोरो. (अ. स्त्रो०) मिथ देश होनेवाली एक प्रकारको करते है। उनकी तसवो घचोसे बनती है। मुसलमान | शोगेकी तस्वी रखते हैं। वह कन्दाहारमें बहुत अच्छो | जफौल (अ. स्त्रो०) १ सोटोका शब्द । यह शब्द कबूतर. मनायी जातो है। बाज कबूतर उड़ाने के समय अपनी दो अगुलियोंको ___ भारतवासियों में अष्टोत्तर शत जप करने में १०८, मुंहमें रख कर करते हैं। ३ सोटो, वह जिससे मोटो गुटिकाको माला प्रस्तुत करते हैं । किन्तु :नसमे अधिक वजाई जाय। या न्यानसख्यक जपमें ५० गुटिकाको हो माला प्रशस्त जब (हि: कि०वि० ),जिस समय, जिस वक्त । है। मालाको वन धादिमे गोपन फ़र जप करना। | ज़मड़ा (हि.30 ) गालके भीतरका अंश, कला। चाहिये। कारण उसको खोन कर जप करने से मनसिहि जबदी (हि.स्त्री०) हेलखण्ड में होनेवाला एक प्रकार• नहीं होतो.। .का.धान। जपयन (सं० पु० ) जप एव यनः । जवरूप यज । इसके अवर-(-फा० वि० ) १.गतिमान, बली, ताकतवर दृढ़, तीन भेद है-वाचिक, उपांशु और मानस । जप देखो। मजबूत।। ज़पस्थान(सली.) जपमान स्थान, वह स्थान जहाँ | जबरजह (१० पु. ) पोले रंगका एक प्रकारका पवा । यिन किया जाता हो। जप.देखो। जबरदस्त (फा० विशक्तिमान । जाहीम (स0पु0) जपयजा जबरदस्ती.(फा० स्त्रो०.) १ अत्याचार, सीनाजोरी । ___ोरपत्येनो याजनाध्यानः भ्यतम् ।" (मनु.१०।१५१)(.कि.वि.)२ बलपूर्वक,,दबाव डाल कर । जपा ( स० स्त्रो) जप प्रच-टाप। जवामुष्प बघ, जबरन् (:फा०कि..वि.) बलपूर्वक, इच्छाके विरुद्ध, भइलका पेड़ । २ जवापुष्प, नवाबदहुल ।। बन्तात् । अपाकुसुमसलिम (ससी .) हिना न । सवरा, दि० वि०) १ शक्तिमान, वली, ज़बरदस्त (४०) कपास