पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/२४४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

नातिपत-जाति (तो) फल २१०

'भगवान् मनुने आतिधर्मका विषय इस प्रकार लिखा। मे १३५ पूर्व देशा० तक पोर ३.मे ७० उत्तर पना.

-यजन, याजन, अध्ययन, अध्यापन, दान और प्रति तक इस पतामीमाके भीतर उत्पन्न होते हैं। मनकास प्रह, ऐसे इह प्रकारका ब्राह्मणोंका जातिधर्म है। होपपुञ्ज जिनोलो, मेराम. याम्योयाना, दम्मा, निऽगिनोका - क्षत्रियका जातिधर्म प्रजापालन, दान, यज, अध्ययन और परिमाण प्रादि कई स्थानों में यह न जंगलो तौर पर विषयमै धनासक्ति है। पशुपालन, दान, यज, अधायन, पाया जाता है। इन सोपोंके मिधा और कहीं भो यह. वाणिज्य, कुसीद (सूट ) और शापि धेश्योका जातिधर्म ।। वृक्ष नहीं उपजता । परन्तु मनुोंने जगह जगह इसके इन्हीं तीनों वर्गीको शुश्रूषा और अनुसूया करना शूद्रका | पौधे गाड़े हैं और जायफल के खानवाले पशो मोबहुत दूर जातिधर्म है। जा कर इसके बीज डालते हैं, जिममे अनाव भी इसका नातिपत्र ( स० पु०) जावित्री। प्रमार हो रहा है । जलवायु और महीसे उपयोगी होने जातिपत्री ( स्त्री० ) जातः पत्री ६ सत्, गौरादित्वात् । पर यह न सहजहोमें बढ़ता है। शिङ्गापुर के मम प्रधान्त- डीप । गन्ध ट्रष्यविशेष, जाविवो, जातिफलका त्वम् वर्ती ताट दीपम पहले जायफल पैदा होता था, पोन्न. विशेष । गुण-लघु, खाटु, कटु, उण, रुचिकारक न्दाजीने उसकी उवतिके लिए १६३२ ई० में साने टसे एवं कफ, कास, वमि, खास, टष्णा, समि पोर विप | वान्दा दीपपुञ्जमें इसका बगीचा बनाया। तभीसे पाश मायक होता है। तक बान्दासे प्रचुर जायफल नानादेगों को रवाने दो जातिमवाल ( स० पु० ) जातिकिसलय, जायफलका रहे है। पत्ता। ईसाको १८वीं शतान्दोके पन्तमें अंग्रेजोन बनिन, जातिपर्ण (सं० पु० ) जावित्रो। और प्रिन्स एडवार्ड होपमें इसकी खूध पायादो की घो; मातिपाति (Eि स्त्री०) जाति वर्ण, आदि। उसके बाद क्रमशः मलय, गिङ्गापुर, पिनाइपौर यसमे जाति (तो) फल (मं• लो०) जाताख्या फलं मध्यपदलो। बोजिल और भारतीय होपपुश्चमें इसकी खेती होने लगी। कर्मधा। जातोफल, सुगन्ध फलविशेप, जायफल । कलकत्ते के उहिद-विज्ञानविषयक्ष उद्यान में भो उमके संत पर्याय-मातीकोप, फल जाति, फलजातो, वृक्ष उत्पन्न हुए हैं। बेशुलेन दीपमें अब भो प्रचुर जाति. कोपक, कोश, जातिकोष, जराभोग्य, जातोकोश, जाति. फल उत्पन जोते है। इस समय प्रधानता बान्दा और फल, जातिशस्य, भाल क, मालतीफल, मनमार, जाति. वह लेन इन दोनों स्थानोंमे अधिकांग मातीफन्त नाना- मार. पपुट, समन:फल । देगोको जाते हैं। वर्तमान गताप्दीके प्रारम्भम पिनाइ 'भग्रेजीमें इसको नाटमेग ( Nutmeg ) कहते है। घोर गिङ्गापुरमें ही अधिक जायफल उत्पन होत इसका पंगानिक नाम माइरिटिका झपास (Alyri | थे । वान्दाम भी वहुत जायफन सत्पन्न हुए थे, किशु stica Fragrans) है। इसके सिवा इसको 1.1 १८६०१०में वे सब उद्यान एकबारगी नर हो गये। Officinalis, M. Moschata, M. Aromatical चीन देशमें भी इस ममय इसकी पायादी की जा रही मादि भी कहते हैं। है । भारतवर्ष के नीलगिरि पर्वत पर और मि इनमें . बातिफल या नायफल एक प्रकारके पक्षका फल | इसको ऐती हो रही है। वधुतोको पाया है कि, है । यह मनोहर पक्ष हमेशा उज्ज्वल म्यामवर्ण, निविड़ अंग्रेजो राम्पके भीतर लामिका होपने ही भविपमें प्रचुर । पयासत और ४०५० फुट तक मचा होता है। इस जायफन उत्पय होने लगेगे। नातिक बहुत तरह के हो फन्त देनमें जातिफलके ___सामस्थानमें ये मध वृष नयम वर्ष में पूर्व पयग्यायो मम्प पर्ण पनुरूप माल म पड़ते हैं। किन्तु उनके गुम | प्राप्त होते हैं, और करीव ७५ वर्ष तक जीवित रहते लमीन पाममानका भेद है और ये यथार्थ जायफल | है।पका जायफल देपनमें पपरोटके समान होता है। से साबूदार भी नहीं होते। पमन्त्री नायफल १२५। इसके उपरका शिनका पक कर सूर्ण ज्ञाने पर यह परा Vol. Vil. 55 .. . ...