पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/२४६

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नातिफलत्वक-जातिमन्न २१६ य रोपीय चिकित्सकमण्इलो भो बहुतायतमे जाया। मांठ, लया, कालाजोरा, कपूर, घड़, पोयला, कालो. फलो धक आदि काममें लाने लगो है। उनके मतसे- मोचं. पोपन, वंशलोचन, दारचोनी, तेजपात, मलायचो जायफल उत्तेजक, वायुनाशक और सब तरह उदरामय और नागकेशर इनर्मम प्रत्ये कमा २ तोला, भिहिचूप रोगमें फायदेमन्द हैं। ज्यादा सेवन करनेमे निद्रा पाती। ० पल और मवके बराबर घराबर चोनी एकत्र करके है। इसकी खुराक माधारणतः १०से २० ग्रेन तक है।) अच्छी तरह घोंटना चाहिये। यह जातिफलादिचूर्ण जायफलका भिगोया हुआ पानी में शान्ति करता है। ग्रहणी, बवामोर, पग्निमान्ध और प्रतिगाय (पोनस जातिफलसे तीन प्रकारके ट्रव्य औषधके लिए बनते- रोग) पादि रोगों में व्यवहत होता है। १ उदायो तैल, २ अर्क और २ स्थायी तेल। स्यायोल | जानिबाधक (सं० वि० ) जाताधकः, ६-तत् । प्राचीन यात, पक्षाघात (लकवा) और अन्यान्य वेदनारों पर नैयायिको के मतसे व्यक्ति का प्रभेद । भाति देखो। प्रलेपकी तरह व्यवहत होता है। जातिमायण (मं.पु.) जात्या जन्मना ब्राह्मण, २.तत् । ____इस देशके वैद्यगण जायफलसे उदरामयकी एक तपः स्वाध्यायादि गहित ब्राह्मण । तपस्या वेदाध्ययन पोर दवा बनाते हैं, जिमकी तरकीब इम तरह है--एक योनिइन ब्राह्मणत्वके कारण तपस्या पोर घेदाध्ययन जायफलमें एक छेद करके उममें जरामी अफीम (रोगी । रहित ब्राह्ममा जाति प्राण कहे जाते हैं। को अवस्था और उसके अनुसार उमको मात्रा होती। "तपः श्रुतं च योनिश्न त्रयं मादाग कारणम् । है) भर कर उसोके चूरमे छेदको बन्द कर देना तपः श्रुताभ्यां यो होनो जाति प्राङ्गण एव सः। शम्मा दि.) चाहिये। बादमें उम जायफलको घोड़ोमो मैदाको जातिग (मपु. ) जातः भ्रः, ६ तव । जाति लेई में भरकर गरम राख में भूजना चाहिये । इसके बाट वम जातिका नष्ट होना। उस जायफल और अफीमको वर्ण कर रोगीको (उनके | जातिभ्रंशकर (म• मो०) जातेभंग करीति कट । अनुसार) खुराक देनी चाहिये। यह बन्तकारक पौर। नव प्रकारके पापों में से एक पाप जिसके करने जाति यातनाशक होता है। पानी में घोट कर इसको फूले नट हो जाती है। भगवान् मनुके मनमे-माधएको स्थान पर लगा देनेमे आराम पहुंचता है। बीको पीड़ा देना अधुय, महसन, गराम पादि पोना मित्रके उदरामय रोगमें घो और चीनोके साथ जायफल दिया। माय कुटिलताका व्यवहार करना पोर पुरुष के माथ जाता है। मथुन सेवन करना जातिगकर है। (मन 110) इसके अलावा जावित्री पीर जायफल दोनो ही यह पातक ज्ञानक्षत होने पर मान्नपन प्रायथित राधने और पान प्रादिम मसालेको तरह खाये जाते है। और अज्ञानत होने पर प्राजापत्य माययित करनेमे ___ वैद्यक मतमें जायफलके कपाय, कटु, उन, गन । राहि होती है। प्रायशित देखो। रोगनागक, रक्तातिसार पोर मेहनियारक, दृष्य, दीपन, नातिमत् (म.वि.) समपदामिपिक, जिमने कथा लघु । (राजनि०) रस, विस, तीपण, रोचम, प्राइक, स्वर- पद पाया हो। पितकर, श्लेष्मा, वायु और मुग्डको विरसता नायक | जातिमन्त्र-नों के गर्भाधान मकारक होममें पढ़ा मामे- 'मथा मल, दोर्गन्थ्य, सता, मि, कास, वमन, म्यास. वाला एक मन्त्र । यह पोठिकामन्दके बाद पढ़ा जाता गोप, पोनम पीर दरोगनाशक माना गया है। (मावत्र है और उसकी पाहति देने के उपरान्त निम्तारकमन्य या या शूनको भो नष्ट करता है। (राज.) पढ़ा जाता है । जातिमन्त, यया- जातिफलत्वा ( स्त्री) जातीपत्री, जायित्री! " मयजन्मना कारण पर्व मना जातिफलादिचूर्ण-वेधकोला एक श्रीषध । इमको प्रक्षत गरम प्रपद्ये ॥ २ ॥ यो परम्पराः गरण पा ३ ॥ मणालो इस प्रकार है- जायफल, यिदा, चीतको नह पईस तस्य मरणं प्रपद्य ॥४॥ *नादिगमरम्प नगरपादुका (तगरपाठी), तालिगपत्र, सातचन्दन, पर प्रपद्ये ॥५॥ पमुपजनमः ये .