पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/२४८

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जांती-जातू. २२१ यरोपका स्पपानिस जैसमिन ( Spanis Jasmine ), नक, पग्निकारक, जीर्थातीमार, प्रामान, पाशेप, गन नामक पुष्प पस जातोपुष्पके समान है। जो फ्रांसम | और शामवासनायक, वल्प, दन्तयेष्ट, पौर प्रणरोग- अधिकतर पैदा होता है। वहाँ एक परत सूअर वा | नागक है। गायकी चरबीके अपर लगातार नये नये फल बखेर जातीफला (स' स्वी. ) भामलकी रचपावालाका • कर वह घरबी सुगन्धित को जाती है । इस घरबीके | पेड़। साथ थोड़ी बहुत स्पिरिट मिला कर कुछ दिन रख जातीफलादीयटी ( म० सी० ) पजोपायटो, एक प्रकार. देनेसे सुगन्धित एम टम् बन जाता है। घरवोके बदले की दवा जिसके पानसे जीर्ण रोग जाता है। इसकी एक साफ कपड़े पर तेल पोत कर उसमें फूत बांध देनेसे प्रस्तुतप्रणाली-जातीफमा, लव, विप्यन्ती, निगंगड़ो, धुम्त र. भी तेल सुगन्धित हो जाता है। कुछ दिन ऐसा करके बीज ( धतुगका बीज ), हिङ्कन और हिरण चार इन पोछे निचोड़ लेनेसे चमेलो का तेल बन जाता है । मनो. माको दशवर बराबर लेकर नम्बीर नीयूके रमसे गोली . हर सुगन्धिके कारण यह फल यगेप और भारतवर्ष में बनानी पड़ती है। २ या २ रत्ती परिमाणको गोनी सर्वत्र ही श्रादरणीय है। प्रति दिन सेवन करने पजोग रोग जाता रहता है। वैद्यक मतसे-यह शीतल है। इसकी पत्तियों का | नातीय (स० वि०) जाती भव-छ । १ मातिभय, जाति . रस पौनसे सब तरहका चर्मरोग, मुखचत, कर्णस्राव | सम्बन्धीय, जातीयका, जातिवाला । २ तक्षित प्रत्यय .आदि जाता रहता है। महम्मदीय हकीमोंके मतसे आती- विशेष तहितका एक प्रत्यय । . च.हलका, दस्तायर, शमिनाशक, मूयकारक और जातीयक (सं० वि०) जातीय स्वाय कन् । जातीय, जाति • रजोनिःसारक है। किसीका कहना है कि, इसके फनका) घाला। प्रलेप कामोद्दीपक है। युक्त प्रदेशमें इसके फल तथा तेल भातीयता (सं. स्त्री०)जातिल, जातिका भाव । चर्म रोग, मस्तकवेदना और दृष्टिगशिक दीर्यस्यमें पीर | जातीरस (म0पु0) जात्वा रस व रयो यस्य । बोम्म पत्त दन्तशूलमें दिये जाते हैं। नामक गन्ध ट्रष्य । 5. इसकी पत्तियों को चबानेसे मुखको श्ल मिक झिली- | नात (भव्यय ) जन्मान प्रपोदरान साधुः । १ कदाचित् । .: के धत पारोग्य ही नाम है। पत्तियों को धोमें भिगो। २ सम्भाविनाय । ३ निन्दाय। .. कर लगानसे भी उक्तरोग अच्छा हो जाता है। सस्य | जातक (मं० सी०) लातु गहित निन्दित' के मन शरीर पर इसका तेल लगानिसे चमड़ी कोमल और | यस्मात् । हिमा, हिंग। निरापद हो जाती है। इसकी कली नेत्ररोग, अण, नातुकपपिका (म. स्त्री०) गाफ जातोय च भेद, . विस्फोटक पौर कुष्ठको नष्ट करनेवाली है। (राजनि०)/ गाफ जातिके एक वृक्षका नाम । . २ पामलकी, पांवला। ३ मालती । ४ जायफल । जातकपर्षी (म स्त्री.) हविशेष, एक पद।

(हिं: पु०) ५.हायो। ..

माराज (मं• पु०) जात जन् ह । गर्भिपीका पभिन्ताप, माती (भः वि०) १ व्यक्तिगत । २ निजका, अपना। गर्म यती ममीको पछा। भातीकोग (स.पु.) जातिफल, जायफन्न । लातुधान (म.पु.) धीयते मविधीयते इति धान समिः जातीपत्रो (स.सी.) जायित्री, जायत्री। धानमस्य नातुदित धानमवि धानमस्य वा। राधम, लातीपूग (.पु. ) जातिफल, जायफन्न । निगाधर, पसर । मातोफन्त (म.ली.) भात्यास्य फल । जातिफल, जातप (म० वि०) अतुनी विकार प्रति पण पुन । आयफल । . . जतु निर्मित नामका बना पा। जातोफलतेल (म.की. ) आतीफनस्य तेल, तत् । जापू ( म० ही. ) भान सुर्यति हिनमित ये शिम् पुन: .: मासिफस नेए जायफलका सेस । इसका गुण-उत्त- पद दीर्घः। वप। ____Vol. VIII. 36