पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/२५४

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नानमो-नानवर २२५ में १३३९ गांव है। मालगुजारी प्रायः १ लाख ४२ जानजोको ममम्त पर्य मम्पत्ति भन दी। इसके बाद हजार है। यहाँ जङ्गल और पहाड़ बहुत है। माधवरावने जब निजामको सहायतामे जानजोको परा जानजी--प्रामाम प्रान्त के शिवसावर जिन्लेको एक नदी। जित कर दिया, तब उनको मधिको प्रार्थना करनी झांजी देखे।।। पड़ी। सन्धिके अनुमार उन्हें प्रतारणामे ग्राम समस्त जानजी निम्बलकर-करमोलाके एक महाराष्ट्रामन राज्य हो लौटा देना पड़ा । पौछे ये पेगवाको धोनतामें का। इन्होंने निनामके पक्षसे मिमियों के माथ यह मूनाके राज-प्रतिनिधि नियुक्त हुए । १७०२ ई० में रनको किया था। इनके पिताका नाम थारम्भाजी बाबाजो। मृत्यु हुई। इन्होंने कर्मान्ता-नगर स्थापन किग या और वहां एक जानदार (फा० वि०) मजीव, जिम जान हो। दुर्ग बनवाना प्रारम्भ किया था, जिसे वे पूरा न कर कालिका जानना (हि.क्रि.) १मान प्राप करना, पमित होना, सके थे । जानजीने उस दुर्ग को पूरा बनया दिया था। वाकिफ होना। २ सूचना पाना, अवगत होना, पता यह दुर्ग अभी तक मौजूद है। पाना। ३ अनुमान करना, मोचना। जानजी भीमले-बरारके एक महाराष्ट्र शासनापा|| जानन्तपि (सं० पु.) प्रत्यरातके वंशको उपाधि । इनके पिताका नाम था रघुजो भीमले, जिनकी 'मेना- जानन्ति ( म०पु.) ऋग्वंदियों के तर्पणीय पि। साह-वा' उपाधि थी। १७५३ ई में रघुजी भीमने | जानपद ( म० पु.) १ जनपद मम्बन्धी वस्तु । २ देशस्थ, ने पिताके मिहामन पर प्रारोहण किया। फिर वे जनपद के नियामी, लोक, मनुष्य । ३ देश । ४ कर, मान. गया के जरिये विहपद पर प्रतिष्ठित होनेके अभिप्रायसे | गुजारो । ५ मितासराके मनमे लेख्य या दमावेजके दो पूना गये। उन्होंने पेशवाको मतारा राज्य के वन्दोवस्तके भदौमसे एक। इमर्म प्रजावर्गके परस्पर व्यवहार लिए वापिंक लाख रुपये देने और महाराष्ट्र राज्यको सम्बन्धीय लेख रहता है। यह दो प्रकारका होता है- रक्षाके लिए १० हजार प्रवारोहियोंसे सहायता करने । एक अपने हाथमे लिखा हुपा और टूमरा अन्य व्यक्षिक का वचन दिया । इसके बाद पेशवाने जानजीको 'सेना। हाय हा लिखा हुआ। सा सवा'को उपाधि टेकर यथारोति अपने पद पर | जामपटिक (सं० वि.) जनपद ममन्यो। प्रतिष्ठित कर दिया। इससे पहले १७५१६०में जानजीने | जानपदी (मं• स्त्रो०) जनपदस्य श्य, जनपद-प्रण लिया अन्नोवो वाक साथ यह मन्धि कर मी थी कि, महा- डोप ।१त्ति । २ अप्सराविशेप, एक अराफा माम। राष्ट्रों को उडियाके राजस्वमसे एक निर्दिष्ट अंश मिलेगा। देवराज रन्ट्र गोतम गरबानको कठोर तपस्याम भयभीत पेगमा बालाजोरायने त सन्धिका अनुमोदन किया | हो गये थे। इसलिए उन्होंने पिका तप भंग करने के लिये रमी पाराको भेजा था। जानपदोको देमंगरक्षान्ने १७६३ ई में जानजो को प्रतारणासे गोदावरोतौरके मोहित हो कर जो एकपात किया उमसे सप पोर युइमें निजामको पराजित हो जाने के कारण जानजोक | कापो की उत्पत्ति दुई। (महाभारत पारिप ) कप देती। निए बहुतसा स्थान छोड़ देना पड़ा था। परन्तु १०६६ / जानवाज (फा. पु.) यसमटेर, वान टियर। में निजामने गया माथ मिल कर उसका: जानमाज ( फा० पु.) समसमानीक नमाज पढ़ने का एक पुनः पधिकार कर लिया था। पनला कालोन, नमाज पढनका फर्य । १७६८ ई.में पेशवा माधवरावने रघुनाथरायको जानराज्य (स.को.) राजत्व, प्राधिपत्य, पधिकार। महायता पहुंचाने में अपराधम जानजोको दगड देनेके | | जानराय (हि.पु.) प्रत्या भानी पुरुप, गुमान | पभिमायमे यावा को। पेशवाके यरारकी सरफ पहुंचने | जामराय माध-हिन्दोके एक कवि। . पर जानको परिमकी तरफमे नटरी मटने पूनाको | आनयर (फा• पु.) १ प्राणो, भोय। . ३ पण, तु. तरफ बढ़ने लगे। पूनाने उपस्थित होने पर पधियामियोन वान । (वि.) मूतै, भट। Vol. VIII.87