पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/२६१

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२२८ ". जापान जापानके दक्षिण भागमै कभी कभी बर्फ गिरती है।। रहता है। यह इतनी बदबू फैलाता है कि चिड़िया तर परन्तु शीघ्र ही वह गल जाती है। थोड़ा जाड़ा पड़नेसे उसके पास नहीं फटकती। वर्षा होने के समय यह तापमानयन्त्रका पारा ३५ डिग्री नीचे उतरता है और पहाड़ बहुत खतरनाक है। मालूम होता है, मानो सारा गीमकालमें ८८ डिग्री ऊपर चढ़ जाता है। यहां गर्मी पहाड़ आगमें झुलस रहा है। इस पहाड़ के पास एक की शिद्दत ज्यादा नहीं रहती; क्योंकि दिन में दक्षिणी और मानकुण्ड है। इस उपा प्रस्रवणमें नहानेसे उपदंगकी रातमें पूर्वी हवा चला करतो है। जापानको ऋतु प्रायः सब पीड़ा जाती रहती है। अत्यन्त परिवर्तनशील है। बारहो महीने पानी बरसा उस झरनेमें नहानेसे पहले 'प्रोवामा' प्रस्रवणमें करता है। वर्षा ऋतुमें अत्यधिक वर्षा होतो है और नहाना पड़ता है। मान करनेके बाद गरम चीज खा साथ ही खूब आंधी चलतो है। कर गरम कपड़ा ओढ़ सो जाना चाहिए, जिमसे पसीना :: जापान-साम्राज्य के निकटस्थ समुद्र में जैसा जलस्तम्भ निकलने लगे। होता है वैमा अन्यत्र कहीं भी नहीं होता। भूमिकम्प जापानमें बालू, कहवा, मूली, तरबूज, तरह तरह- और वजपतन तो वहांको दैनिक घटना है जापानमें | - को खाने लायक सल्ली और घास वगैरह बहुत ज्यादा एसा कोई भोमिहीना नहीं जाता, जिसमें भूकम्प न होता| उपजती हैं। सन, ऊन, रुई, शहतूत, प्रोक, देवदारु हो। भूकम्प अपेक्षाकृत अधिक समय तक ठहरता है | आदिको भी काफी उपज होती है । नीबू, नारङ्गी, अंगूर, और बहुत अनिष्ट करता है। जमीन हिलनेसे आलोक, दाडिम, अखरोट, अमरूद, पिच, चेरी आदि सुस्वादु फल मञ्च तक गिर पड़ता है। इसलिए वैज्ञानिक उपायसे भी अधिक पाये जाते हैं। जापानी चायकी सेती अच्छी पालोकमञ्चोइस प्रकार लगाया जाता है कि सब कुछ हिलने तरह करते हैं। प्रायः देखा जाता है कि परती जमीन पर भी वह ज्योंका त्यों बना रहता है। जापानियोंको तथा धानके खेतोंके चारों तरफ चाय के खेत हैं। जापा. भूकम्पके जोरसे शरीरके सम्हालनकी तरकीब वाध्य हो कर नियोंके घर पर किमी बन्धुके पात वा जाते समय वे उमे मोखनी पड़ती है कारण उसमें चोट लगनेका डर रहता चाय पिलाते हैं। है। पहली हिलोरमें ही घरसे बाहर निकल आते हैं। ____ जापानमें चाय की उपज होने पर भी चीनदेशमे यदि उस समय किसो खास सवबसे ऐसा न कर सकें, | ज्यादा नहीं होती। यहांको चाय अन्य देशों में नहीं . तो छोटे छोटे बच्चोंके सिवा नौजवान और बुट्टे लोग | जाती। जापानमें शहतूत बहुत ज्यादा उपजता है और एक एक वालिदा मस्तक पर रख धीरे धीरे पासके शून्य | उसमे तरह तरहके ऊनी कपड़े बनाये जाते हैं। यहां स्थानमें पहुंचते हैं और उसे जमीन पर पटक कर उसके | एक प्रकारका बारनिशका धन पाया जाता है जिसमे बीच में बैठ जाते हैं। पहले जापानियोंका विश्वास था | दूधकी नाई एक प्रकारका सफेद रम निकलता है। इस कि पृथिवीके नीचे कोई बड़ी तिमि है। उसके हिलत | रसमे वे अनेक तरहक पात्रों में पालिश करते हैं । जापान ही जमीन हिलने लगती है और जहां वैसा नहीं होता, | का कोई भी व्यक्ति बारनिगक काम करने में लगाता. वहां देवताओंका विशेष अनुग्रह है। नहीं। दरिद्र वा भिक्षुकमे ले कर अत्यन्त धनी सम्राट जापानमें भाग्न यगिरियोंकी संख्या अधिक होनेके तक वारनियका काम करते हैं। सम्राटके प्रामाद में मोने कारण ही जल्दी जल्दी भूकम्म हुआ करता है। और चांदी के पावकी अपेक्षा जापानो वारनिगमे पालिग सिकुफेन शहरमें पहले कोयलेकी एक खान थी। किये हुये पात्रोंका ही अधिक आदर है। कृषि कार्यका कर्मचारियोको असावधानोमे एक दिन अचानक उसमें भी यहां यथेष्ट समादर है। कृषि कार्यम उत्साह यदानके भाग लग गई। उस दिनसे बराबर उममें प्राग भवका | लिये सम्राट्की पोरमे ऐंमा मादेश था कि 'जो मनुष्ण करती है। 'फेमी' नामक पर्वतसे दुर्गन्धमय काला धुन परती जमीन में खेती करेगा दो वर्ष तक उम नमीनकी निकलता है। 'उनसेम' पहाड़ भी सर्वदा धूनां छोड़ता। ममूची फसल उसी मनुप्पी होगी और जो मनुष