पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/२६७

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... २३२ मापान सम्राट जिम्मूके बाद ५६० वर्ष तक का इतिहास विशेष ४६६ १० मिकिडो-जायाकू' ने 'मिरागो' पर उल्लेखयोग्य नहीं है । इम व दशम सम्राट् 'सजिन | पाक्रमण किया था, किन्तु इसमें वे विशेष कृतकाय न तन्नो'ने मे ३० वृष्ठ पूर्वान्द तक राज्य किया था। होमके। ६६० ई.में चीनके 'टार'-गोय ममार इन्ही के समय में नापानके माथ 'कोरिया' का सम्बन्ध स्या 'कायो माड ने जापान के हाग रहिम 'कुदा।' राय - पित हुआ था। कोरिया के अधिवासियों द्वारा जब 'करक पर धावा करने के लिए जनपयसे वहुतमो मेना भेजो थी। .. राज्यके लोग बहुत तंग होने लगे, तब उन्हों ने सूजिनमे जापानियोंने 'कुदारा राज्यको महायताझे लिए वहां जा सहायता मांगो। इन्होंने ३३ खुटोय पूवोन्दम 'करक' । कर चीनकी सेनाको भगा दिया। परन्तु मे। अधिकार कर लिया; तबसे यह रान्य जापानके पन्त | चौनोंने जापानियोंकों परास्त फर 'कुदारा' और 'कोमा . भुक्ता हो है । उस समय मम्राट्ने प्रादिम अधिवासियों जोत लिया । इम समयसे ईको १६वीं शताप्दो सक को दमन किया था। पीछे ईसाकी २य शताव्दोम | दाम, नाना कारणों से जापानियोंमे कोरिया पर हस्तक्षेप नहीं कोरिया समाजो 'जिगो' के अधीन जापान द्वारा आक्रान्त किया। हुमाया। ग्यारहवें सम्राट् 'सुनिन'ने (२८ पृष्ट पूर्वाग्दमे | ___६५२ ई० में जापानको शासन प्रणालीका ( पोनदेग- के अनुकरणसे ) संस्कार हुआ। ७०१ १० 'नेको' ८. वृष्टान्द पर्यन्त ) एक भीषण कुप्रथाको उठा कर नामक पाईनको किताब प्रचारित हुई पोर उसके इतिहास में अच्छी प्रतिष्ठा पाई है। पहले, सम्राट्की | सात वर्ष बाद 'भारा' नामक स्थानमें नवोम राजधानो .. मृता, होने पर उनके साथ कुछ जीवित भृतीको गाड़ स्थापित हुई । इमो समय जापान को कम्ना भोर माहियने दिया जाता था। इसका उद्देश यह था कि 'परलोकरें | विशेष उपति को यो। 'नारा नगरमें वृदयको मूर्ति भी सम्राट्की वे सेवा करते रहेंगे।' सूइनिनने इस कुर्म इसो समय बनी थी। जापानमें इतिहास लिखने का स्कार के विरुद्ध घोषणा कर दी, कि "मेरे बाद और कोई | सूत्रपात मी इमो समय हुमाया । ७.४ ई० राजधानो भी सम्राट इस प्रकारका नगंस कार्य न कर सकेगा।" कोरियाका वृत्तान्त पढ़नेसे मालूम होता है कि नारासे पुन: 'कोयटा' लाई गई । राजधानो रम परित ईस.की श्री शताब्दीमें प्राय: जापान के साथ उसका | धर्तन बादसे हो जापान साम्राज्यको अवमति . ' विवाद हुआ करता था और उममें जापानकी ही जय | होने लगी। होती थी। जापान के विरुद्ध कोरिया के बहुत बार विद्रोह ___प्रथम युगमें जापानको ममाताने चीनमे बहुत कुछ . उपस्थित करने पर भी साधारणतः ६६८० तक जापानने | ऋण लिया था । जापानम बोहधर्म, चित्रविद्या, स्यावय. कोरिया पर अपना अधिकार प्रचण्ड रक्डा था। कोरिया विद्या प्रादिका प्रचार चोनमे हो हुमा था। धोना । विजय जापान के इतिहास में एक प्रयोजनीय घटना है। दर्शनशास्त्रों का अध्ययन करते रहने से जापानियों के ययोंकि जापान और चीन के संम्पगमें यही कारण है। चरित्रमें बहुत कुछ परिवर्तन हो गया था। 'कनफुचो' जापानमें घोनको लेखनप्रणालो पोर साहित्य नामक चीनदेशीय धर्म प्रवर्तकके धर्ममें नो पांच कोरियाके भीतर हो कर हो पाया था। चीन योगिष्टा है, उनको जापानियों ने अपने परिवर्म माम प्रभावमे जापानको अधिक उवति हुई थी। चोन कर लिया था । वे विटा ये है-१) राजति, (२) ' देशमे जुम्लाकी भोर दरजियोन पा कर जापानियों को। विद्यमशि, (७) मंयम, (8) भावभाव और (५) nि. गिस्प-विद्याको गिना दो यो । कहा जाता है कि समाद में वो। म विषयमें जापान के सुमसिंह पध्यापक .. 'जरियाको'ने (४५७-४८ ) चीन के दक्षिणभाग ) Inouse Testsu Jiroका कहना है कि "चोनके महर्षि दूत भेजा था पोर यह/से शिल्पियों को बुलाया था। को शिक्षा जापानम रसमी अधिक विम्त त पोर पर जापानको समानी निस्पकार्य में उत्साय बढ़ाने के लिए मूल है कि उमे जापानी ममाताका पाद' कहा जा स्वयमके कोड़े पासती पी। सकता है। इसके सिदा हमें यह भी न भूलना चाहिये शि .