पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/२६९

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२५४ भेजा । सिकेन'के परामर्श से दूत भगा दिया गया। उपनिवेश स्थापन कर रहनेका अधिकार मिला । पोना , फिर क्या था, सुबलाईग्वा ३० हजार सेनाकै माय न्दाजी पर नानाप्रकार कर लगाये जाने पर मी, झापाम . जहाजमें चढ़ कर जापान पहुंच गये। किन्तु होजोटोकि साथ वाणिज्य कर के प्रयोपार्जन किया था। जापानियोंने मुनि ने अपने पराकमसे उस सेनाको जमीन पर उतरने घेषणा कर दी थी कि “अन्य कोई यूरोपीय जाति यदि . नहीं दिया । भागिर उन्हें लौटना पड़ा। लौटते समय ! जापान में पदार्पण करे, तो उसे मृत्य का दाह दिया। पाँधी चली, जिमसे पक जहाज डूब गया। इस घटना- जायगा।" माय ही जापानियोंको भी विदेश जाने । के बाद ही जापानने शव के पाक्रमणमे बचने के लिए निए मुमानियत.यो। मध्ययुगमें जापानियोंने एक योर. 'डाकूता' बन्दर पर कड़ा पहरा लगा दिया । १२८१ ई. उदय-साहसी जाति के समान पजात समुद्री जहाज में खुबनाईखाने पुनः जंगे जहाज मजे, जिसमें एक चताये। चीन, श्याम ओर तो क्या प्रशान्त महामागर- लाल मेना घो। किन्तु 'होजीटोकिमुनि'ने कौगनसे हो कर मैक्सिको तक पहुंन कर इन्होंने व्यवमाय किया . उन्हें भगा दिया। इसके बाद फिर किसी भी विदेशोने था। किन्तु इस समय उन्हीं अधिकारियों ने उन्हें बाहर जापान पर पाक्रमण नहीं किया। इस युद्ध के कारण, जाने के लिए रोक दिया। इतना हो नहीं, बल्कि ५० रनमे जापानका विवरण मबसे पहले पाचात्य जगत्को मालम च्यादा माल तादनवाले जहाज का भी बनना बन्द कर पाया। दिया गया। विदेशियों में विशेष शत्रुता हो जाने के कारण . १२३३ ई में सम्राट् 'गो-देगोसेवो' होजोंके कवलमे। ही, विपद की पागामे जापानियोंने भपनको इस तरह अपनी रक्षा कर राष्ट्रीय चमताके यथार्थ अधिकारी हुए धरने बन्द कर रखा था। यही कारण है, कि विदेशीय पोर 'मोगुन'का पद इमेगाके लिए उठा दिया। किन्तु । ऐतिहामिक जापानियोंकी विशेष निन्दा किया करते है। इसके बाद सम्राट सिर्फ छ वर्ष ही राज्य कर किन्तु हममे-भारतयासियों में यह छिपा नहीं है कि विदे. पाये थे। गियोंका आगमन कभी कभी कमा भीषण रूप धारण ई की १६वीं शताब्दीके पन्त और १७वीं शताब्दीके | करता है घोर अतिथिमत्कार के बदले जातिको मेमा कठोर प्रारम्भमें आपानियोंने पोर्तुगाल, स्पेन, इलेण्ड और प्रायशित्त करना पड़ता है। रातरां हम तो यही कहेंगे लण्डन पादिके याणिन्य-जहाजोंको सादर अपने देशमै कि जापानियाने उम समय बड़ी युद्धिमानीका कार्य पाने दिया था। इस समय विदेशियोंमे जापानको किया या नहीं तो प्राज उनकी भी भारतवामियोंकी शोषण करनेकी यथेट चेष्टा की थी; तथा जेसुइट नामक भांति शोचनीय दुर्दशा होती। रोमन केयलिक-मम्प्रदायके ईसाई पादरियोंने पोर्तगाल ___२२० वर्ष तक जापानियोने वहिजगत्मे कुछ भी पौर म्पेनके यणिकीके साथ जापान पहुंच कर वहां | सम्बन्ध न रक्लाया। इम शोचमें जापानको निन उच्च साई धर्मका प्रचार किया था। फस्ततः जापानमें प्रायः, सामाजिक सभ्यता, कला पोर माहिताका विकाग पा . मभी येसीके लोग, जिनकी संख्या १. साखसे कम न ) था पोर उसी में यह मन्तुट भो था। उमममय यूरोपने .. होगो, ईसाई हो गये थे। परन्तु जापानके अधिकारियों- शिम्प वाणिज्य, राजनीति पीर गुहविद्याको समाधारण को सन्देश दुपा, कि सम्भय है ये धर्म प्रचार करते करते 'उति की थी। किन्तु जापानने उमका अनुसन्धान । राजनैतिक पान्दोलन उठा पौर जापानको स्वतम्बता करना भावश्यकीय ममझा। . कीन में। इसलिए ये पादरियों के मिका खड़े हुए। पाठवें 'मोगुन' जोगी मुनि के शासनकाल. रोमन सम्राट नरोकी तरह ये भोईसाई धर्म पाद: (१६-१७४५ १०)- जापानको नाना प्रकार में - रियोको सत करने मगे। पाविर पादरियो मार भगाया, उति हुई थी। उन्होंने फिजल-पीको इटा कर ... गया। या तक कि, विदेशी वषिको तकको जापान में मितमायिताको स्थापना की थी। इसके मिया जमीनी . स्थान न दिया गया; सिर्फ पोसत्दाजीको एक खुद | उपजाऊ बनाने के लिए भी उन्होंने काफी कोपिक की यो.