पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/२७४

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आपान २४१ 'किन्तु इमम सन्देह नहीं कि जापान अपनी ससिका। हर एक चोजो के बनाने पोर नयन करनमें धरु को यथार्थ परिमाया यतमाना नहीं चाहता। । जापानका मिस और वाणिज्य- वर्तमान समयम १८१८ ई. में जापानो मोग २००० कारखानों में जापानने याणिज्यजगत्में श्रेष्ठस्याग अधिकार किया है। यम्बादि घनाले धे-रामायनिक पदार्ग मो यपेट आपानमें उत्पय गिम्पद्रव्यने पृथिवीमें प्राय: मर्वव हो। बनाते थे। विगेयतः भारतवर्ष में खूब पादर पाया है। जापान ____पिकार्य में भी जापानने काफो उपति की है। अपने अध्यक्ष माय और बुद्धिवनमे ७० वर्ष के भीतर प्रसा. १८.८०में जापानमें जिसनो पेतो मारो होतो थो, धारण उनति कौ है-पृथियो पर जितने खिलोने विकले | १८१८ ई.में धमसे दृती हो गई थी, किन्तु धानको है, उनमें करीघ चौदह माना माल जापानका ही है। खेती ज्यादा होने पर भो, य को पीर नोनको खेती पहले पहल जापानने 'चाय और रेशमका व्यवमाय घट गई है। चलाया था। उस समय फ्रान्स पोर इटलीके रेशमके सापानी माग-१८२. ई में संपरय'ने नियय कीड़ों में बोमारो फैन जानेमे, जापानो रेशमको खय हो। किया कि जापानो भाषा "उरस पालटायिक' जातियों ग्नपत हुई थी। पहले के पन्द्रह वामें जापानका रोज को भाषाकै पत्तगत है। सभोमे शम्दतत्वविदगण गार दमा हो गया। उसके बाट के पन्द्रह वाम उमका जापानो भाषाको सम्पत्ति विषयार गपणा कर रहे याम्पिश्य दशगुणा बढ़ गया। इस तरह जापाम दिन है। यदि जापानो लोग माननीय जासिक हैं, तो उनको दिन ममृदिशाली हो उपा-~उसने अपनी राष्ट्रीय गमा मापा माय 'कोरिय' पौर घोन भापका माहग्य प्यूच ही पढ़ा लो। १८५८ में जापानको पामदनी होना मम्भव है । इतिहामके पढ़ने में मालूम होता है पौर रफ्तनी चीजोका भूम्य था २ करोड ६० लाख | कि ईसाकी नो गाग्दो भी जापानो कोरिया के 'यम' या २६,५०,००० पोह: १८८५६ में इमसे दस लोगों के माथ यदुभाषाविदों को बिना सहायताके याता. गुना हो गश घोर १९१० ६०में उममे भी मो गुना बढ़ लाप नहीं कर सकते थे। इसलिए करना पगा कि गया। इसमें पाट १८२०१ में समका परिमाण १५१७ उम प्राचीनतालमे ही 'कोरिया' पोर जापानको गुग्पा हो गया । जगत्के इतिहाममें याग्विज्य मम्बन्धी मापा भिव भिव घो । जापान पाना प्रहर PATEL उति धन्यवे कहीं भी देखनमें नहीं पाती ।। पौर माहित्य के प्रक्षा करने पर भो, पात्र दो हजार गत युद्ध के ममय जब यो भौर पमेरिकाकी जातियां | वर्षसे दोनों की भाषा पधक हो रही । के. युवकार्य में महत्तयों तब बापानमे युवके उपकरणादि हिरे मायने प्रमाणित करना चाहा कि जापानो पहुंधा कर प्रसुर पर्यापार्जन किया था। जापानमें पार्य जातिको हो एक भया। परन्तु यह मत पभी मेली जाजका रोजगार व तेजोमे चम| सक मजनसम्मत नौंपा है। प्रशासनिक रहा था । १९९३९ में जापानमें सिर्फ ६ जहाजके कार. करना है कि धोनके मस्पर्गमे परने भी जापानमें एक प्याने थे, फिन्त १८१८ मार्च माममें यहाँ ५७ प्रकारकै पसर प्रचम्मित । शिन्तु यर म फिलहान भाजके कारखाने यन गये थे और मन यरोप पौर मर्प माना नह) दुपा। पमेरिकाके। जहाज थे । मम्भव म मिडास निषित करनेमे कि प्रायोन आपानने पचिमी देशाम इतना लाभ उठाते हुए मो। सम ममय में जापानियों ने .'कोरिया के पचर देवकर भारतका व्यवसाय गियिल नहीं किया । वमने महामा उमका पपने देगर्म प्रचार करने के लिए कोचिंग की थो, गाभिके पासहयोग प्रान्दोनमम भी कविम पहर (पा उल ममगायो का ममाधान हो जायगा। उमाद गाढ़ा) बना कर भारतमें मेजा पोर पर बहुत कम अब शापानने घोनसे कनफ दि धर्म और मारिन्य ' दामों में बिकने लगा। ममें मदद नहीं कि प्रापान / प्रहप किया, जय टम माय धीमा पपरों का भी परने ____Vol. VIII. GI