पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/२७७

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२४४ नापान १५.३मे १८६७६. तक जापानी माहिताको मयूध | कर लेते हैं और उम मम को सहज माफ तोरमे Fट :.. की यति हुई। 'फुजिवारा कोया ने ( १५६०-१६१८, कर सकते हैं।" । ई. । जापानम चीनके 'चु-हि' नामक दानिकको जापानी चित्रकारोंकी रेखागको एक पृथा मापा अन्यों का प्रचार किया था। 'क्ष्यामि रासान'ने (१५८७/ है। पहाड़, मदी, समुद्र, सक्ष, पत्थर पादि पिभिव पदा. १६५७ ई०) दर्शन मम्बन्धी प्राय: ७० ग्रन्य रचे धै। याँको विशेषता प्रकट करने के लिए ये विभव प्रया: 'कैयरा-एकेन'ने (१६३०-११४९०) नीतिशास्त्रका पोका प्रवलम्बम करते है। ये दो एक बार अपी फेर प्रचार किया था। 'भाराई हाफूसकि' (१९४७-१७२५/ कर नितारा नगण्य यममे भी, जो हमारी दृष्टि पाक- १०) जापानको प्रमिह ऐतिहासिक, दागनिक, राजनीतिम पित नहीं करती, अपूर्व सौन्दर्य मर देते हैं। यह और प्रथनीतिश विधान । इन विद्वानोंकी कोगिरासे यात अन्य देशोंक दियकारमें नहो पाई जाती। . आपानी माहित्यको यथेष्ट उखति हुई थी। इस ममय वापानमें एक ऐमा मेवीभाय है, जिममे उन मोगी . पया-माहित्य या उपन्यास मादिका काफी प्रचार था। ने विवके समस्त पदाको सुन्दर बना डाला है। जापानमें ईमारी १७यीं शताप्दीमें बच्चों के लिए नाना | जापानी लोग यथार्थम सौन्दर्य के उपासक है। जापान प्रकारक साहित्य अन्य रचे गये थे। देशन जापानियोंको सौन्दर्यप्रिय यमा दिया है। मावा . . वर्तमानगुगर्म जापान पर पाचात्य मभ्यता, विज्ञान | देश मानी एक ससमीरों की किताब -मके एक पौर साहित्यमा प्रभाव खब ही पड़ा है। बहुतमे अंग्रेजी छोरमे टूमर छोर तक चले जामो, गाल म होगा. मानो ग्रन्योका जापानी भाषा अनुयाद हो चुका पौर हो सयोरके पत्र उलट रहे है। . रहा है । 'ल्मों के Contract Social-के जापाना। जापानके प्राचीन चित्रकारों में, अधिकार कोरियन भाषामें पनुवाद होने पर, जापानमें मामाजिक और | गिस्पियो के नाम देखनमें याति। उस समय राजकुमार राजनीतिक आन्दोलनका सतपात हुआ था। इ.सडेरन, 'पोटा'ने उन लोगों को यपष्ट एसाहित किया था। लिटन, डिमरेली, रायकन, मेक्सपियर, मिल्टम, दुर्गनिभ, उन्होंने अपनी तसबीर भी खींची थी। नारा गुगर्ने (८ का इल, दादर, एमरुन, हगी. हाइन, डिकुन्मि, | मे ०८४ ई. तक ) पीक सुन्दर चित्र बनाये गये थे। डिकेम्स .. कोरमर, गैटे प्रभृति पायात्य लेखकोंने जापान होरिवनि-मन्दिरमें भी उस समय बहुतसे चित्र पीये - पर अपना ययेष्ट प्रभाव डाला है और उनके प्राय: मभो | गये है। ये चित धमार पजामा चियके ममान है। • पन्य पन दित हुए हैं। जापानमें मौलिक साहित्यका पनान्ताको १ नं. कोठरोम प्रवेश करते समय दर सूवपात भी फिलहान हो चला है। याजेक बाई पोर बोधिमत्वको जो मूतिर, उमके माध न.पानमै विरा-जापानियों में यह एक बहा भारी रिजि' मन्दिरको बोधिसत्वको मूर्तिका साहस। गुपये किसी भी चीनको बोटी समझ कर उसको नारा युग वा घोषयुगके बाद 'पममय मो' ६८ पता नहीं करते, सभी पोजोम हमें एक प्रकार चित्रकारों का युगए। इनमें मांगे प्रसिद्ध चितकार का मोदय नजर पाता है। तो वोर पुरुषमें सटाको / नामोका' थे, ओटयों गताग्दीम हो गये। ओमहिमा प्रकाशित हुई, यह पशु और पनी था। यह पिता नाम "माधिका ससान" ! म फोट और पानी में भी विद्यमान | पा छोटा पीर पर्यत गिपरके अपर मेधावान वि और फरहा पया यदा मना हर पीर या प्रसुन्दर, जापानी पिव जन पत समे गिर रसा, ऐमा ER दिलमाया कामिए ममी समान वागवाधार्य गया। पक्षमाद्रमाय सिपी -"मापामो लियो पिने वादोमा चियकारों का युगए। ये . १६ पौर पसन्दर, स्थग पोर मर्य मय पर मसः दरबारका हल पोर मराट, उमराव का पित ६ गोचर और वीर समस्त पदार्याका मम मापते ।