पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/२७८

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नापान २४५. . इसके बाद 'पसन सेम्ग पार पन्यान्य चित्रकारों । कुछ योगेय चित्रकारों पर भी लापानी मिस्तका का युग है मेगु एक प्रतिभागानो और उसकीरिक प्रभाव पड़ा है। उम सम्प्रदायको Impressionist दृश्यचित्रकार थे। कहते है। रम सम्प्रदाय के प्रधान गिस्पोका माम ईसाकी १६वीं शताब्दी प्रमिद 'कालो' चित्रकारों: Whistlhrel का युग प्रारम्भ हुपा। 'कालों जापान के विराकी ____भापानमें चियकताका प्रादुर्भाय प्रधामम: वोधर्म के मुग्ध कर दिया था। पाज तक उनके चित्र मम्मानको प्रभावसे हुआ है, इसलिए उमका पन्तरतम मसाप दृष्टिसे देखे जाते हैं। इनके चित्रों में रेखाको हदना, पाध्यामिकता है । यहो कारण कि जापानो धित. वर्णको उज्ज्वलता तथा पालाक और छायाको विशे. कलाम याचिवको कम स्याम मिना । पता उन्न योग्य है। ____भापानके माचीनतम व्यक्तिकारका नाम था 'काली' सम्प्रदायमेमे 'कीरिन', 'पोकियो पादि पोर 'सोवा' मममय ये स्पादित जन्मदाता माने हात भी कुछ सम्प्रदायोंको सृष्टि दुई थो। कोरिन' सम्प्रदायके है। "कियोतो'के निकटस्थ 'साकायामा मदिर मई चित्रकार लाख पर चित्र बनानौ और 'ओ'को' चित्र । घनाए पुए चार चिय-ग्रन्य महोत दुपापले पोर कार स्वाभाविकता लिए प्रसिद्ध थे। इनमें 'सोमन'ने | दूसरे अन्य मेंढ़क, परगोग, सियान पादिक व्याचित यदरकी और हिदो ने गैरकी तसबीर मना कर हैं। तीसरेम मोड़, घोड़ा, गेर पादिक तथा घोष धर्म अपना नाम कमाया था। मभुपके व्यापित है। इनमें मेंढ़क पौर परगोगको पहले जब जापानका यरोपके साथ मम्प था, उस लड़ाई मेट्कोको कुरतो वगैरह देनेके लायक है। समय मापान के लोग यशपके पाक् सिक्यो देख कर एक चितम खरगोशको धर्मगार पढ़ने दिपनाया गया यहां तक मुग्ध हो गये थे कि उन्होंने अपने निस्पको है, जिसे देख कर पिना रहा नहीं जाता। प्रबहला कर यरोपीय शिल्पका पादा किया था। जापानके वर्तमान प्रधान चित्रकारों में पन्यतम इनमें 'गाहो' प्रधान थे, ये दृश्य चित्र बनाते थे। योयुता 'नाकामुरा फुमेन'का कहना है कि "लापानी प्रोकियो समयमें आपानी तमयीर जनसाधारणको चित्रों में एक प्रधान दोष यह है कि जोयजन्तुपों की सम्पत्ति हो गई थी। मके स्थापयिताका नाम 'माता ससमोरोम वास्तविकता या स्याभाषिकता नहो पाती। है।' था। इन्होंने लकड़ी के इलाकमे तमयोर छाप कर मका कारण यह कि चिय नोवमा अगषों को देन वैसे में बचो यो । दनन्दिन जोवनको छोटो छोटो। पर नों, पक्कि मनको कल्पनाम पीरात घटनामों के तथा नाटकके अभिनेता मोर सुन्दरी रमणि | परन्तु 'तोषा' ऐमाम करते थे। वे पमम्तो भोपयो देय यो को नमबोरे व शिकतो यो । साधारण मजूर लोग कर ही उसका विमोचते थे। यही कारण है कि वे भी बन सघागेको खरीदते थे। 'भोकियो के प्रयवर्ग अन्तुपो के इप, विषाद, भय पादिको समह पालन परिममें भी नापामो चिताका यथेष्ट प्रचार हो गया। बगा गये, जिममें प्याको तो पो भी पच्चोहार 'मा किन्तु जापान गियी मम्प्रदायमें 'पोकियोका । परिस्फुटित कर दिखाया है।" विशेष पादर नहीं है। उनका कहमा है कि, व पानशम भावानमें 'सोया' प्रयति म्या सापकी चीज है, उममें चिपकाको प्रमलो योग चित्रों का पय प्रचार मानिश व्यापियारों में नहीं। मयमे पासान कोवायसो कियोतिका'ने पाया। स समय ओवित गिस्पियोंमें यह चिवकार, 'टारको ने जापानमें पायात्य रोति पनुमार प्यापिका बासन्। ये भारतवर्ष में एक धार घूमने पाये थे। प्रवर्तन दिया। की विपने यूरोप मनसे लापानी स्पिकमाझी बागनमें गैदन-भारतवर्ष में पोरधर्म की पति ना कोनके पाम तमे गियो गिमा प है। लेने पर मा, जापामने भारतसे धोधन पर महो . Vol. 1111. .