पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/२८२

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मामान २४४ - नापानियों के मृतदेह-सत्कारमें भो यर्धेट गिध्य | पूजा करते हैं। वर्ष में एकवार उनको पूजा को जातो पाया जाता है । जानो रोतिके अनुमार मुरदेको २५ है। किमो पिता पधवा माताको गचोने पर कई घण्टे तक धरहो में रखना पड़ता है। इस समय मृतः । वर्ष तक उनको प्रतिमाम पूजा को जामो। पोछ व्यतिके परलोक मङ्गल के लिए पुरोहित फन, पिटक, वर्षात पकधार पूना को जामो । धूप श्रीर प्रदीप द्वारा पूजा करते हैं। इस पूजामें फूलों जापामिरों में पाम कर लिया पर सुबह उठतो पादिका व्यवहार नहीं होता। हां. जिम डोनोवा और पपना काम करने लग जातो।। धकममें मुरदा रहता है, उसे फलों मे अवश्य माने जपानको तरह पादुकापोंकि विविध पोर विषिय है। इस पूशाम चोदधर्मावलम्बो पुरोहित चौम भाषा विभाग पोर कहीं भी नहीं है। देगोय पादुकाएं मन्त्र पाठ करते हैं। मुरदा पुरोहितके सामने, एक | प्रधानतः ६ मामि विभव है- 'गटा'-यह पड़ा। सुरम्य मन्दुक या डोनोम रकला जाता है पर अपग्मे को मांतिको होतो है, किन्तु रममें खूटी नहीं होती। एक बहुमून्य पम्त टक दिया जाता है। मसव्यति यही प्रधाम ममझो पाती है।पहन कर मोग पामोय स्वजन माफ सुथरे कपड़े पहन कर धारी १२० मील तक पल मकी है। २ 'पमोदी- सरफ धैठ जाते हैं। देखनेमे यही मान म होता है, मानो हमको गठन 'गेटो' के समान हो है फर्क मिर्फ इसमा किसीहत पूजन का अनुष्ठान हो रहा है। किमो के हो है कि, उसके नीचे लास पंगुश लम्बे दो पाये नगे मुवमे गोश या दुश्व प्रकट नहीं होता ; सभी रोजको | रहते हैं। रमका प्यपहार मि घरमातशे दिनों में हो तरह प्रमवचित रहते हैं। जापानियों का सिद्धान्त है। होता है। ३ 'योरो'रमको पातति ठीक वर्मा. कि शिमने जर लिया है, वह मरेगा पयग्य हो' फिर । खोपर जैमी है। फर्क इतना ही कि धर्मा पोपर उसके लिए दुःख या मोक करना या है। ऐसी दशाम चमड़े को होतो है पर यह पूमा वा कमषियोंकी। चित्त उसके परलोक सुधारने या मङ्गलके लिए ४ 'धारामो-सको मक 'जोरी' मोही। फाममा करना हो युधियुप्ता है। साधारणतः जापानो मिर्फ इममें थोड़ोमो रसो नगी पती, जिमे रमे सोग मृतष्यतिको उसके जन्म-महान ममाधिस्य करत बोध कर घमना पड़ता है। चमते ममय रममें पोपरकी हैं। यदि किसीको मृत्यु दूर देगम' हो, तो उसका तरह पावाज नहीं होती। इमे किमान मोग समाते दाह किया जाता है तथा उसके दांत और कुछ केश) हैं। ५ फागुट'-यर जाड़ों में बर्फ के पामे समस्यानमें गाड़े जाते हैं। जग्म-भूमि जापानियों के बनने के लिए व्यवाहत होती है। "मेहा" इनके लिए कितनी मिय यस्तु है. या यात अपरके दृष्टान्तमे। मिवा आपानमें पोर मो बहुत तरह के विदेयो जहाशा सनही समझ सकते। प्रचलन है, जो बनते वदों पर पादर्श विदेशका है। __समाधि शेष होने पर ।। दिन तक प्रगीच रहता। जापानमें प्रतिवर्ष भत्व मंग्याकी पपेशा अमला और समाधिस्थानमें प्रति माम पिटक वा पन्यान्य माप पधिक दुपा करती मोमे मानम रोमकता पापय्य भेजे जाते हैं। माता प्रयया पिताको मृत्य। है कि जापान लोकमख्या किस तरह पढ़ रही। होने पर एक फाह पर पुव चमके नाम लिए कर घरकै या ठोक कि दरिद्रके व्यादा समानशा होना दुर्भाग्य- एक कौनमें स्थापित करता है। प्रतिदिन सुबह माम का पिन ममझा जाता , कि जापानम मनामको सम ग्यानमें कुछ नाथाप दिया जाता है।म तरह गिया दोषाका मार सिर्फ पितामाता पर से सापाममें पूर्व पुरुषों को पूमा पनि । प्रत्येक रसायनिक सामाजिक महायताकी भी यह सम जापागोके मकान में पिरपुरुषों को जानिए पकात घाया है। यही कारपशि की मोदरिष्ट्र म्यान निर्दियह माना : उपकरणारा उनकी मन्तान पापप्प पा मिचा-टोचा भाव परिचित पूना की जाती है। ये पूर्व पुरुषों को देयता ममान ! महोसतो। १८२१ में मिसेम मार्गरेट पारगार __VoL Pul. 63