पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/२९९

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नारणवौज-जाम्यो ( Calcination) वा 'मोक्सिडेशन' (Oxidation) नारडयो (म' स्त्रो०) एक वीयि, ज्योतिपमें मध्यमार्ग कहा जा मकता है। धातुवाको वायु द्वारा उत्तर की एक वीथिका नाम । इसमें विशाखा, अनुराधा भोर करनेमे वह धारा वायुमें स्थित अक्सिजनको खींच कर ज्येष्ठा नक्षत्र हैं। (विष्णुपु० टी० २१८८०) लेकिन वराह उमी धातुके मोरचे ( जंग )के रूपमें परिणत हो जाती | मिहिरके मतसे इसमें यवणा, धनिष्टा पौर शतभिषा है। फिर अम्त प्रादिके माथ मिलाये जाने और ऋतु नक्षत्र रहते हैं। (हन्स० ५॥) प्रादिकं परिवर्तन होने पर उममे एक नवीन पदार्य जारभर ( स० पु.) मा विभति पोपयति, भृ-पचा. उत्पन्न होता है। फिर उसे देखनेमे यह नहीं मालूम | दिवादच । जारपोपक । होता कि, वह धातु है। यह ही धातु-जारणका मूल नारा (हिं. पु.) १ मोनार प्रादिकी भट्ठोका एक भाग। . सूत्र है। प्रवाल यादि किसी किसी वस्तुको उत्तम करने | कोई चोज गलाने या तपाने के लिये इममें भाग रहतो पर उममेमे हान्न अङ्गारक वाप्य निकल जाती है और | है। माथोकी हवा पाने के लिये इसके नीचे एक छोटा . कठिन प्रवाल आदि भम्म रूपमें परिणत होते हैं। वैद्य | छेद होता है । २ जाला देखो। गण भिम प्रणालीम जारगा करते हैं. उसमें भी नि:मन्देह । जाराशा (म. समो०) भारस्य पागदा, तत् । उप. ये मय मूल प्रक्रियाएँ होती है। हाँ, उसमें पानुपनिक पतिको पाशका। और अन्यान्य कुछ परिवर्तन अवश्य होता है। विलायत- जारिगी (म० स्त्री०) कामुकी, दुरिता स्त्री, खराय में धातुका जारण प्रादि रासायनिक उपायमे महलहीमें | चाल चलनकी औरत । हो जाता है। परन्तु यह नहीं कहा जा सकता कि, भारित (स• वि० ) नृ णिच्-त । १ शोधित, शुद्ध किया वह पंचक जारणके ममान गुणसम्पन्न होता है या नहीं। हुा । २ मारिन, मारा हुमा, कतल किया हुआ। जारणवीज (म० ली० ) १ रसजारणार्थ वीजद्रवा- जारो ( स० स्त्रो० ) जारयति ज गिव अच् गोरादित्वाद भद। हो । भोपधभेद, एक प्रकारको दया। जारणी (म० स्वी.) गारणं स्त्रियां डीप् । स्थ ल जीरक, | जारो (अ० यि० ) १ प्रवाहित, माना छुपा । २ मन बड़ा जीरा, सफेद जीरा। लित, चनसा सुपा। जारता ( स० स्त्री०) जारस्य भावः तल् टाप् । उपपतित्व, | जारी (दि. पु.) १ झरवेरोका पोधा 1.२ एक प्रकारका यार वा पाशनाका नाम। . गोत । मुमलमानों को स्त्रियों से मुहर्रमके प्रवसर पर जारनिनेय (म पु०स्तो०) जरत्या अपच टक् । कल्याण्या- ताजियों के सामने गाती है। ३ परस्त्रो गमन, जारको दौनामिनद् च । पा ११२६ । इति इनङ् । जरतीका पुत्र ।। क्रिया वा भाव। । शारत्कारव ( म पु० ) जरत्कारोरपत्य' शियादि जारु (सपु.) ज उण् । १ जरायु, वह मिशी जिममें त्वादण । जरतकारुका पुत्र । बचा बंधा इमा उत्पन्न होता है, भावल, खेड़ो । (नि.) जारद-सम्बई प्रदेश अन्तर्गत बरोदाका एक उपविभाग। २ लारक ।' इसके उत्तर रेयाकाण्ठ। एजेन्सो, पथिममें यरोदा उपवि. नागज (स. लि.) मारो जगयी जातः जार जन-ड। भाग, दक्षिण में दामई उपविभाग और पूर्वमें एलोल जरायुजात, मिलोमे उत्पय, मनुष्य इत्यादि। जिला है । क्षेत्रफल ३५. वर्गमोल है। यहाँको जमीन- मारुधि (म. पु. ) जागरिको दृश्य दो धोयर ममसन और चारी पोर जंगलमे घिरी है। विश्वामिती..ऽग्निन् पा-माधार कि, उपर। सुमेरु कर्णिकागर. मूर्य और जाम्ब नदी यही प्रयाहित हैं। यहाँको | भूत पर्वतविगेप, भागयतो अनुभार एक पर्वतका नाम मिटो कालो प्रथया पोलो होतो है। कपास, बाज़ा जो समग पर्वत के पत्ते का केमर माना नाता है। पीर ज्वार ही प्रधान उपज है। मारती मगर. इस (मागवत 10) उपविभागका सदर है। नायी (म' श्री.) नवधन असर मिर्पण tri, . ,