पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/३०३

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२६८ नालना यहाई-जालन्धर . निर्वामित हो कर कुछ समय के लिए इमो 'नगरमे । समुद्र ने उत्सर दिया, "हे देवादिन! यह मेरा गरी वास किया था। तब जालना एक मुगल मेनापतिका | नहीं है, मेरे पुत्र के मरजनेसे ऐमा गन्द उत्पन होता है। जागोर था। १८०३ ई में महाराष्ट्र युद्धके समय कर्नल ब्रह्मा ममुद्र के पुत्रको देख कर म यन्त विस्मित हो गये। टिमम्मनको सेना इमी नगरमें टिकी थी। यहां पत्थरको सब मनाने उने अपनी गोद में बिठा लिया। उसने बनी हुई सराय एक ममजिद, तीन हिन्दू देवमन्दिर उनको दाढ़ी इतने जोरगे खींचो कि उनको पाखाम और कई एक नगरको प्रधान अट्टालिकायें हैं। यहांका | पास् निकल पड़े और वे किमो तरह दाढ़ी न वाणिज्य वावसाय दिनों दिन झास होता जा रहा है। कुड़ा मके । तव समुद्ने मते इंसते पागे घट्ट पपने अभी सोने और चाँदीका गोटा और कुछ कपड़े भी तैयार पुरका हाय छुड़ा दिया । ब्रामा मागर-पुत्र के पराक्रममे होते है। जालना दुर्ग १७२५ ई० में निर्माण किया गया | अत्यन्त मन्तुष्ट हो कर बोले कि हम लड़केने मुझे भायात था। यह मन बहुत तहस नहस दशा में है। इसके | जोरमे पाकर्पण किया है, इमोलिये यह संमारम' उत्तरमें एक विम्त त उद्यान है। यहाँका फल बम्बई, जालन्धर नामसे प्रमिड होगा । ब्रह्माने उसे एक पोर मो हैदरामाद आदि देशों में भेजा जाता है। शहरसे प्राध वर दिया, कि यह वालक देयतायोंमे भो पजेय होगा मोन पशिममें मतितलाव नामका एक बड़ा सरोवर है। भोर मेरे अनुग्रहमे त्रिलोकका पधिपति कहलायेगा। इमीका जल नारके काममें आता है। यहां डाकघर, ' बड़े होने पर एकदिन दैत्यगुरु राक समुदके समोप डाक बगला और दो गिरजा हैं। जा कर बोले, "हे सागर ! तुम्हारा पुत्र अपने मुजवलमे जालना पहाड़-हैदराबाद राज्यको पर्वतयेगी। यहां विलोकका राजा होगा, इसलिये सम पुरखामापों के दोसतावादसे औरगाबाद जिलेको चला गया है। बरार- वागस्थान जम्बूद्धोपसे युछ दूर रह कर वाम करो को मीमाके निकट जालनाका पवंत या मिलनेसे ही और अपने पुत्रके रहने योग्य कुछ स्थान देकर इमका यह नाम पड़ा है। फिर यह मह्याद्रि पर्वतगे। वहां उसे एक छोटा राज्य प्रदान करो।" दैत्यगुरु एक के मिल जाता है। जालना पर्यंत २४०० फुट ऊँचा है। कहने पर समुद्र ३०० योजन दूर हट गया। यही जल- दौलताबाद चोटो समद्रपृष्ठसे ३०२२ फुट ऊँची पडती निर्मला स्थान पीछे जालन्धर नामसे मगहर हो गया है। है। इसकी पूरी लम्बाई १२० मीन है। (पद्मपुराण उत्ता.) जालन्धर-तनु और चन्द्रभागा नदो के मध्यवर्ती दुपयः ____उक्त कथा काल्पनिक कह कर उड़ाई नहीं जा । वा अवधि। पहले म प्रदेशका नाम विगत था। इम | सकती। इसके साथ एक माशतिक परिवर्तनका प्रदेशका प्रधान शारजालन्धर है। कोटकाङ्गड़ा (पयवा सम्बन्ध भी है। जालन्धर प्रदेश गङ्गा पौर सिन्धु नदक नागरकोट ) नामक स्थानमें एक सुदृढ़ दुर्ग था, विपद । उपत्यका प्रदेशके अन्तर्गत पड़ता है। पहले उक प्रदेश कालमें जानन्धरवासी उम स्थान पा कर रहते थे। | सम्प गएपसे समुद्र के मध्य था, बाद समुद्रशे हट जानेमे पापुराणमें जालन्धरके उत्पत्ति सम्बन्धमे एक यह मनुध की पायामभूमि हो गया है। . . सग्दर गस्प है-किसो समय समुद्रक पौरस और गलाके जालन्धर दानवका मृत्य, इत्तान्त अत्यना गोपनीय गर्भ मे जालन्धर नामका एक दानव उत्पन हुमा। हैं। उमे पर मिला था, कि अब तक उसकी शो उमके जनमते ही पृथिवी देवी कांप उठी। वर्ग, मत्य | सन्दाका परिव निकल रहेगा, तब तक उमे कोई नीत और रमासम्म उसके गर्जनमे प्रकम्पित हो गया। जब नहीं सकता। किन्त विशुने जालन्धर का रूप धारण “वामाका ध्यान टूटा तो वे तोनी मोकको व्याकुल देव । कर इन्दाको ठगा घा, मी थोड़े ममयके याद शिवजीने भयभीत हो गये। बाद वे ईम पर चढ़ कर ममुद्रके मामने जालन्धरको पराजित किया। पाशयका विषय यह या उपशिन हुए पीर ममुद्रमे पूछा, 'हे मागर! तुम क्योंकि परम्पर युद्धकान गियी जितनी मार मानन्धाक .. म तरहका गमीर पीर भयर गद कर रहे हो !! मस्तकको कारते जाते थे, उतनो बार फिर उसकाममाक